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जानिये पीवी नरसिंह राव के पीएम बनने की कहानी, सोनिया के लिए हैं 'नो-मैन'

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नई दिल्ली। पीवी नरसिंहा राव देश के ऐसे प्रधानमंत्री के तौर पर स्वीकार किये जाते हैं जिन्होंने देश में आर्थिक विकास को बुलंदियों पर पहुंचाया था। लेकिन राव के प्रधानमंत्री बनने के पीछे की कहानी थोड़ी दिलचस्प है। नरसिंहा राव कभी भी राजनीति में नहीं आना चाहते थे।

pv narsimha rao

नरसिंहा राव ने राजनीति से सन्यास का मन बना लिया था

नरसिंहा राव ने राजीव गांधी और इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार में काम किया था। वहीं राव को इंदिरा और राजीव का सबसे बेहतर उत्तराधिकारी भी माना जाता था। लेकिन 69 वर्ष की आयु में राव ने स्वास्थ्य कारणों के चलते राजनीति से सन्यास लेने का फैसला कर लिया था। राव ने तत्कालीन चुनाव में भी हिस्सा नहीं लिया था और वह अपने गृहनगर हैदराबाद जाने की पूरी तैयारी कर चुके थे।

शंकर दयाल शर्मा को पहले दिया गया प्रस्ताव

वहीं यह बात भी दिलचस्प है कि राव सोनिया गांधी की पहली पसंद नहीं थे। उस वक्त पीएन हकसार के सुझाव पर सोनिया तत्कालीन उप राष्ट्रपति डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा को प्रधानमंत्री बनाने की पक्षधर थी। लेकिन शंकर दयाल ने उस वक्त सोनिया का आभार जताते हुए कहा था कि मेरा स्वास्थ्य बेहतर नहीं और देश की सबसे बड़ी जिम्मेदारी को उठाने में मैं असमर्थ रहुंगा।

शंकर दयाल शर्मा ने भी किया इनकार

शंकर दयाल शर्मा के इनकार के बाद नरसिंहा राव का पीएम बनने का रास्ता लगभग साफ हो गया था। 21जून, 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद राव को पीएम पद के साथ कांग्रेस के अध्यक्ष पद का भी कार्यभार सौंप दिया गया। उस वक्त उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी अर्जुन सिंह के लिए पद को खाली करने का आश्वासन दिया था।

कमजोर आर्थिक दौर में राव ने संभाली देश की कमान

जिस वक्त राव को प्रधानमंत्री पद की कमान सौंपी गयी थी उस वक्त देश आर्थिक स्तर पर बेहद ही नाजुकर दौर से गुजर रहा था। फॉरेन एक्सचेंज की का देश पर काफी दबाव था, 47 टन सोना इंग्लैंड के बैंक में उधार के तौर पर जमा था। लेकिन राव ने अपनी उदाररवादी आर्थिक नीतियों से वैश्वक स्तर पर देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने का काम किया।

मनमोहन-राव की जोड़ी ने देश को आर्थिक मजबूती के दौर में पहुंचाया

राव ने अपनी आर्थिक नीति को मजबूती से आगे बढ़ाने के लिए मनमोहन सिंह को वित्त मंत्रालय की कमान सौंपी। लेकिन इससे पहले यह पद आईजी पटेल को संभालने के लिए कहा गया था लेकिन पटेल ने भी स्वास्थ्य का हवाला देकर इस जिम्मेदारी को लेने से इनकार कर दिया था।

बेहतरीन योगदान के बाद भी कांग्रेस और सोनिया के लिए राव 'नो-मैन'

लेकिन जिस तरह की परिस्थितियों में नरसिंहा राव ने देश की कमान संभाली और बखूबी से अल्पमत की सरकार को 5 साल तक चलाया उसका उन्हें कांग्रेस पार्टी की ओर से सकारात्मक प्रतिफल नहीं मिला। सोनिया के नेतृत्व में आगे बढ़ने वाली कांग्रेस ने राव को हमेशा के लिए भुला दिया। सोनिया ने अपनी किताब में राव को नो मैन की संज्ञा से भी नवाजा है।

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English summary
How Narasimha Rao became PM in all adverse situation, he has given his all to strengthen the country's economy but forgotten by the congress.
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