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दार्जिलिंग की 'मुनिया दीदी' कोरोना मरीजों के लिए बनके आई हैं देवदूत

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नई दिल्ली- कोरोना संकट के दौरान जहां कई बार एंबुलेंस ड्राइवर भी मरीजों को अस्पताल पहुंचाने से इनकार कर देते हैं, वहीं पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में एक महिला ई-रिक्शा चालक जो कुछ कर रही हैं, उसके दूसरे उदाहरण देखने को नहीं मिलते हैं। वह महिला कोविड-19 जैसी संक्रामक बीमारी से संक्रमित होने के खौफ को भुलाकर कोरोना मरीजों की सेवा में जुटी हुई हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि जान पर जोखिम लेकर वह जो ये कार्य रही हैं, उसके लिए वो मरीजों से कोई पैसे भी नहीं लेतीं। उनका पूरा सेवा कार्य मुफ्त में चल रहा है। सही मायने में वह मान सेवा कर रही हैं। आइए प्यार से मुनिया दीदी के नाम से चर्चित हो चुकीं उस ई-रिक्शा चालक के समाज सेवा के प्रति समर्पण के बारे में थोड़ा विस्तार से जानते हैं। (पहली तस्वीर सौजन्य-एचटी)

'मुनिया दीदी' या कोरोना मरीजों की देवदूत

'मुनिया दीदी' या कोरोना मरीजों की देवदूत

हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक खबर के मुताबिक 48 साल की मुनमुन सरकार ने जब करीब साढ़े 6 साल पहले ई-रिक्शा चलाना शुरू किया था तो इस फिल्ड में वह अकेली थीं। लेकिन, वहअपने फैसले पर अडिग रहीं और परिवार का साथ मिला तो वह आज कोरोना मरीजों को अस्पताल तक मुफ्त पहुंचाकर उनके लिए देवदूत के रूप में उनकी सेवा कर रही हैं। उत्तरी बंगाल के दार्जिलिंग जिले के सिलीगुड़ी में अब ये महिला मुनिया दीदी के नाम से ज्यादा लोकप्रिय हो चुकी हैं। ये न सिर्फ सिलीगुड़ी की पहली महिला रिक्शा ड्राइवर हैं, बल्कि शहर की महिला ई-रिक्शा ड्राइवर्स एसोसिएशन की हेड भी हैं। मुनिया दीदी जब भी कोरोना मरीजों को अपने रिक्शे पर बिठाती हैं, वह पूरे पीपीई किट में होती हैं। उनका कहना है कि, 'मैंने कभी भी एक भी पीपीई नहीं खरीदी। मुझे सपोर्ट करने के लिए कई संगठन गिफ्ट में देते हैं। मैं सिर्फ यह करती हूं कि लगातार अपनी वाहन को सैनिटाइज करती रहती हूं। इसमें मुझे ज्यादा खर्च लगता है।'

पड़ोसी ने समाज से निकालने की दी थी धमकी

पड़ोसी ने समाज से निकालने की दी थी धमकी

बड़ी बात ये है कि जब मुनमुन सरकार ने कोरोना मरीजों को अस्पताल पहुंचाने की ठानी थी, तब उन्हें कई तरह की रुकावटों का सामना करना पड़ा था, लेकिन उन्होंने तय कर लिया था तो फिर अपने निर्णय पर अटल रहीं। वो कहती हैं, 'शुरू में जब मैंने कोविड-19 के मरीजों को ढोना शुरू किया था तब लोकल काउंसलर ने भी मुझसे यह सब रोकने के लिए कहा था, जबकि मेरे पड़ोसियों ने तो मुझे और मेरे परिवार को समाज से निकालने तक की कोशिश की थी। लेकिन, मैंने तय कर लिया था और मेरे परिवार ने मेरा पूरा साथ दिया। वो हर परिणाम भुगतने के लिए तैयार थे।' उसके पति आनंद सरकार ने कहा, 'मैं अपनी पत्नी के काम में सहयोग करने के लिए किसी भी परिणाम को भुगतने के लिए तैयार था, चाहे इसका मतलब सड़क पर ही क्यों ना रहना पड़े। '

समाजसेवा के लिए चला रही है ई-रिक्शा

समाजसेवा के लिए चला रही है ई-रिक्शा

मुनिया दीदी कहती हैं कि अब तक वह सैकड़ों कोरोना मरीजों को अपने ई-रिक्शे जिसे लोग टोटो भी कहते हैं पर ढो चुकी हैं, जिसमें से सिर्फ एक ही की मौत हुई है। उनका कहना है कि उनके लिए कभी भी पैसों ने मायने नहीं रखे और बीमारी शुरू होने के बाद से ही उसने सामान्य यात्रियों को छोड़कर कोरोना मरीजों को अस्पताल ले जाना शुरू किया और जो अस्पताल से डिस्चार्ज होते हैं उन्हें उनके घर तक पहुंचाने का काम करती हैं। मुनमुन के परिवार में पति के अलावा एक बेटा और बेटी है। बेटा एसबीआई में काम करता है। वो मरीजों को ढोने के अलावा जरूरतमंदों तक राहत सामग्री और खाना भी पहुंचाती रही हैं।

सिलीगुड़ी में महिला ई-रिक्शा ड्राइवरों की रोल-मॉडल

सिलीगुड़ी में महिला ई-रिक्शा ड्राइवरों की रोल-मॉडल

सबसे बड़ी बात ये हो कि सिलीगुड़ी में वह महिलाओं के लिए एक रोल-मॉडल बन चुकी हैं। वह महिला सशक्तिकरण चाहती थीं और उनके इस पेशे में आने के बाद से अब तक सिलीगुड़ी शहर में महिला ई-रिक्शा चलाने वालों की संख्या 118 तक पहुंच चुकी है। उनके कार्यों को शहर के कई समाजसेवी संगठनों से सराहना और समर्थन मिल रहा है। (पहली तस्वीर के अलावा बाकी सभी सांकेतिक)

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English summary
A female e-rickshaw driver from Darjeeling delivers coronavirus patients to the hospital for free
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