तमिलनाडु की राजनीति में रजनीकांत के सामने हैं द्रविड़ मुद्दा और गैर तमिल होने की चुनौती
नई दिल्ली। दक्षिण भारत की राजनीति में जिस तरह से सुपरस्टार रजनीकांत ने एंट्री का ऐलान किया है उसके बाद यहां डीएमके और एआईएडीएमके लिए बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। रजनीकांत एकलौते ऐसे स्टार नहीं है जिन्होंने राजनीति की दुनिया में कदम रखा है, उनसे पहले एमजी रामचंद्रन व जयललिता भी बड़े पर्दे के बाद राजनीति में आ चुकी हैं और राजनीति में भी शीर्ष स्थान हासिल किया है। ऐसे में रजनीकांत के सामने यह बड़ी चुनौती है कि क्या वह पूर्व के नेताओं की तरह से सफलता हासिल कर सकते हैं। रजनीकांत की राजनीति में एंट्री से सबसे बड़ी चुनौती दोनों स्थानीय दल डीएमके व एआईएडीएमके के सामने खड़ी हुई है, दोनों ही दल द्रविड़ मुद्दे पर राजनीतिक करते हैं, लिहाजा इस मुद्दे पर रजनीकांत का रुख काफी अहम रहने वाला है। जिस तरह से दोनों दल द्रविड़ मुद्दे की राजनीति के दम पर लोगों में अपनी पकड़ बनाए हुए हैं, ऐसे में रजनीकांत के लिए इस मुद्दे से इतर अपनी पहचान बनाना आसान काम नहीं है।
रजनीकांत के खाते में 16 फीसदी वोट
हालांकि रजनीकांत के अलावा सुपरस्टार कमल हासन ने भी राजनीति में आने का ऐलान कर दिया है और दोनों ही नेताओं के ऐलान के बाद नजदीकी भी देखने को मिली है। जिस तरह का रुख रजनीकांत ने कमल हासन के साथ दिखाया है उससे माना जा रहा है कि आने वाले समय में वह कमल हासन के साथ हाथ मिला सकते हैं। हाल में एक टीवी चैनल ने सर्वे कराया जिसमे यह बात निकलकर सामने आई थी कि 16 फीसदी लोगों का समर्थन रजनीकांत को प्राप्त है, लेकिन अगर एमजीआर व जयललिता की बात करें तो उन्हें 35-37 फीसदी वोट मिलते आए हैं।
आसान नहीं है सफर
यहां गौर करने वाली बात यह है कि तमिलनाडु की राजनीति में अपनी पकड़ बनाने में एमजीआर ने 24-25 वर्ष का सफर तय किया, पहले वह कांग्रेस और फिर डीएमके में शामिल हुए, इसके बाद वह प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, वहीं जयललिता को एमजीआर के साथ होने का लाभ मिला और उन्होंने उनकी विरासत के तौर पर खुद को तमिलनाडु की राजनीति में स्थापित किया।
यह इतिहास काफी दिलचस्प
रजनीकांत की बड़े पर्दे पर लोकप्रियता से हर कोई वाकिफ है, लेकिन तमिलनाडु में द्रविड़ मुद्दा हमेशा से हावी रहा है, मैसूर में मराठी परिवार में रजनीकांत का जन्म हुआ है, ऐसे में उनके लिए उनके लिए द्रविड़ राजनीति में खुद को मजबूत करना आसान नहीं होगा। अभी तक के तमिलनाडु के इतिहास की बात करें तो दूसरे राज्यों से तमिलनाडु में आकर बसे नेता ही मुख्यमंत्री बने हैं लेकिन एक बात खास यह रही है कि ये सभी लोग तमिल थे। राज्य में 25-30 फीसदी आबादी गैर तमिल है, ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या रजनीकांत बड़े पर्दे की तरह राजनीति के मैदान में भी शीर्ष स्थान हासिल कर सकते हैं या नहीं।
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