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'90 फ़ीसदी महिलाओं को अपने शरीर से नफ़रत है'

"मैं 13 साल की थी, जब मेरे शरीर का उभार बड़ी लड़कियों जैसा लगने लगा. लंबाई भी 5 फुट 6 इंच हो गई. मेरी मां के लिए ये बड़ी चिंता की बात थी. उन्हें मेरे शरीर का विकास अजीब लगता था. उनकी हिचकिचाहट देखकर मुझे ख़ुद पर शर्मिंदगी होती थी. लगता था मेरे साथ ही कुछ ग़लत है कि मेरा शरीर तेज़ी से बढ़ रहा है. जब उन्हें कुछ समझ नहीं आया तो उन्होंने मुझे अपनी पुरानी ब्रा पहनने को दे दी.

By BBC News हिन्दी
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साकेंतिक तस्वीर
Getty Images
साकेंतिक तस्वीर

"मैं 13 साल की थी, जब मेरे शरीर का उभार बड़ी लड़कियों जैसा लगने लगा. लंबाई भी 5 फुट 6 इंच हो गई. मेरी मां के लिए ये बड़ी चिंता की बात थी. उन्हें मेरे शरीर का विकास अजीब लगता था. उनकी हिचकिचाहट देखकर मुझे ख़ुद पर शर्मिंदगी होती थी. लगता था मेरे साथ ही कुछ ग़लत है कि मेरा शरीर तेज़ी से बढ़ रहा है. जब उन्हें कुछ समझ नहीं आया तो उन्होंने मुझे अपनी पुरानी ब्रा पहनने को दे दी. चार बच्चों की मां की ब्रा क्या एक 13 साल की बच्ची को फ़िट होती?"इस बात को 30 साल हो गए, लेकिन उस अनुभव का दर्द आज भी फ़रीदा के ज़हन में ताज़ा है.

42 साल की फ़रीदा आगे कहतीं है, "मुझे ये नहीं कहना चाहिए, लेकिन आज तक मुझे उस बात का ग़ुस्सा है और अपने शरीर से नफ़रत."

फ़रीदा की कहानी को सामने लाई हैं दीपा नारायण जिनकी नई किताब 'चुप: ब्रेकिंग द साइलेंस अबाउट इंडियाज़ वूमन' हाल ही में बाज़ार में आई है.

फ़रीदा की नफ़रत के लिए कहीं न कहीं उनकी मां ज़िम्मेदार है.

इस किताब में 600 महिलाओं, पुरूषों और बच्चों की ज़िंदगी के तज़ुर्बे हैं.

इन लोगों से बातचीत करके दीपा इस नतीजे पर पहुंचीं कि देश में 90 फ़ीसदी महिलाओं को अपने शरीर से प्यार नहीं बल्कि नफ़रत है.

रानी की कहानी

रानी भी उन्हीं में से एक हैं.

25 साल की रानी ने दीपा को बताया, "तब मैं 13 साल की थी. अपने बर्थडे के लिए दोस्तों को इनवाइट करके लौट रही थी. मैंने शरारा पहन रखा था. मैं घर की सीढ़ियां चढ़ रही थी कि अचानक एक आदमी को उतरते देखा. मैंने साइड होकर उसे जाने की जगह देनी चाही, लेकिन उसने मुझे इतनी तेज़ी से धक्का दिया कि मेरा सिर दीवार से लगा और मैं होश खो बैठी. उसके बाद का मुझे कुछ याद नहीं."

रानी आगे बताती हैं, "जब मुझे होश आया तो सबकी आंखों में बस एक ही सवाल था? क्या मैं अब भी वर्जिन हूं. उस आदमी ने मेरे साथ कुछ ग़लत तो नहीं किया? मेरी चिंता किसी को नहीं थी."

रानी के वाक़ये पर हुए दीपा कहती हैं, "ऐसे मामलों में महिलाओं का ख़ुद से नफ़रत होना स्वाभाविक है."

दीपा ने अपनी किताब में दावा किया है कि 98 फ़ीसदी महिलाओं का ज़िंदगी में कभी न कभी, किसी न किसी तरह से यौन शोषण हुआ है. उनमें 95 फ़ीसदी ने अपने परिवार को उस घटना के बारे में बताया तक नहीं.

सांकेतिक तस्वीर
Getty Images
सांकेतिक तस्वीर

ऐसी ही एक और घटना का ज़िक्र करते हुई दीपा कहती हैं, " बेंगलुरु में एक वर्कशॉप में 18 से 35 साल की उम्र की महिलाएं हिस्सा ले रहीं थी. वहां मौजूद लोगों से सवाल पूछा गया कि जिन लोगों के साथ यौन उत्पीड़न की घटना हुई है वो सब खड़े हो जाएं. इसके जवाब में पूरा हॉल खड़ा हो गया."

वो कहतीं है, "क्या मंदिर, क्या स्कूल, क्या घर... हर जगह लड़कियों ने अपने साथ घटी इस तरह की घटनाओं के बारे में मुझे बताया है."

लेकिन अपने ही शरीर से महिलाओं को आख़िर नफरत कैसे हो जाती है?

दीपा के मुताबिक़ इसकी वजह है कि लड़कियों को बचपन से ही इस तरह की ट्रेनिंग दी जाती है.

सांकेतिक तस्वीर
Getty Images
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शरीर से नफ़रत

"लड़की हो, ठीक से बैठो"

"सीना तान कर चौड़े हो कर मत चलो"

"इतने टाइट कपड़े क्यों पहनती हो"

बिना सोचे-समझे अक्सर घर के बड़े, लड़कियों के साथ इसी लहजे में बात करते हैं. दीपा कहती है, "ये बातें भले ही आपको उस वक़्त नहीं अखरतीं, लेकिन ये सब बातें ताज़िंदगी उनके साथ रहती हैं."

दीपा की किताब में कई किरदार ऐसे हैं जिन्होंने ऐसी बातों को सारी ज़िंदगी झेला है.

सांकेतिक तस्वीर
Getty Images
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तमन्ना की तमन्ना

ऐसी ही एक किरदार हैं तमन्ना.

तमन्ना नए ज़माने की लड़की हैं और छोटे कपड़े पहनना पसंद करती हैं. लेकिन लड़कों की छेड़छाड़ से तंग आकर उन्होंने फ़ैसला किया कि वो अब पूरे कपड़े पहन कर ही डांस क्लास जाएंगी.

उनके इस फ़ैसले का पहला विरोध शीला ने किया. शीला तमन्ना के यहां सफ़ाई का काम करती थीं.

अपने इस विरोध की वजह बताते हुए शीला ने ख़ुद पर बीती एक घटना सुनाई.

शीला बोलीं, "मैं ऑटो में पति के साथ कहीं जा रही थी. रास्ते में पुलिस वाले ने ऑटो की तलाशी लेने के लिए गाड़ी रुकवाई. तलाशी के दौरान पुलिस वाले ने ज़ोर से मेरे स्तन को छुआ और मैं चुप रही. मुझे डर था पुलिस वाले मेरे पति को ग़लत वजह से अंदर न कर दें."

सांकेतिक तस्वीर
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शीला ने फिर ज़ोर देकर कहा, "पता है दीदी, मैं उस वक्त साड़ी में थी. मुझे तो लगता है हम औरतों के शरीर में ही कोई दिक्क़त है."

वो सात बातें

दीपा का मानना है कि महिलाओं के जीवन में सात बातें ऐसी हैं जिन्हें वो ताउम्र ढोती हैं.

उनका शरीर, उनकी चुप्पी, दूसरों को ख़ुश रखने की उनकी चाहत, उनकी सेक्शुएलिटी, अकेलापन, चाहत और दायित्व के बीच का द्वंद्व और दूसरों पर उनकी निर्भरता.

दीपा आगे कहती हैं कि भारत में महिला महज़ एक रिश्ते का नाम है- किसी के लिए मां, तो किसी के लिए बेटी, किसी की बीवी, तो किसी की बहन या भाभी. वो अपने लिए कभी जीती ही नहीं.

(दीपा नारायण अमरीका में रहती हैं और ग़रीबी और लैंगिक भेदभाव जैसे संवेदनशील विषय पर 15 से ज़्यादा किताबें लिख चुकी हैं. दीपा संयुक्त राष्ट्र और वर्ल्ड बैंक के साथ भी लंबे अरसे तक जुड़ी रही हैं.)

BBC Hindi
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English summary
90 percent of women hate their body
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