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85 फीसदी मजदूरों ने घर जाने के लिए दिया अपना किराया: सर्वे

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नई दिल्ली। कोरोना वायरस के चलते देश में तकरीबन तीन महीने ढाई महीने तक लॉकडाउन था, जिसके चलते लाखों प्रवासी मजदूर दूसरे राज्यों में फंस गए और अपने घर नहीं जा सके। बड़ी संख्य़ा में मजदूर अपने घर पहुंचने के लिए पैदल ही निकल पड़े, जिसकी वजह कुछ की मौत तो हो गई ,जिसके बाद उन्हें घर भेजने के लिए श्रमिक ट्रेन और बसें चलाई गईं। लेकिन अहम बात ये है कि इन प्रवासी मजदूरों की कमाई पूरी तरह से खत्म हो गई थी, लेकिन घर पहुंचने के लिए इन प्रवासी मजदूरों से बस और ट्रेन के पैसे तक वसूले गए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 28 मई को निर्देश दिया था कि राज्य सरकारें इनके ट्रांसफोर्ट का खर्च वहन करें लेकिन तबतक काफी दे हो चुकी थी।

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मजदूरों को देने पड़े पैसे

मजदूरों को देने पड़े पैसे

दरअसल 28 मई तक अधिकतर प्रवासी मजदूरों को ट्रेन और बसों से उनके गंतव्य स्थान तक पहुंचा दिया गया था। मई माह की शुरुआत में ही मजदूरों को उनके घर पहुंचाने के लिए काम शुरू हो गया था, लिहाजा 28 मई को कोर्ट का फैसला आया, लेकिन तबतक काफी देर हो चुकी थी। यही वजह है कि तकरीबन 85 फीसदी प्रवासी मजदूरों को अपनी यात्रा के लिए पैसे का भुगतान करना पड़ा। स्टैंडर्ड वर्कर्स एक्शन नेटवर्क (स्वान) की रिपोर्ट के अनुसार 85 फीसदी मजदूरों से किराया वसूला गया ।

85 फीसदी ने दिया अपना किराया

85 फीसदी ने दिया अपना किराया

स्वान की ओर से तकरीबन 1963 प्रवासी मजदूरों को फोन करके उनसे इस बाबत पूछा गया, जिसमे से 33 फीसदी मजदूर अपना गृह राज्य छोड़कर जाने में सफल हुए, वहीं 67 फीसदी प्रवासी मजदूरों ने अपने गृह राज्य में ही रुकने का फैसला किया। इसमे से 85 फीसदी लोगों ने घर पहुंचने के लिए अपने किराए का भुगतान किया। बता दें कि यह सर्वे मई माह के आखिरी हफ्ते और जून के पहले हफ्ते के बीच हुआ था। जो 62 फीसदी लोगग अपने घर गए, उन्होंने 1500 रुपए से अधिक तक का भुगतान अपनी यात्रा के लिए किया।

पैसा और नौकरी दोनों समस्या

पैसा और नौकरी दोनों समस्या

रिपोर्ट में कहा गया है कि जो प्रवासी मजदूरों की सबसे बड़ी समस्या रोजगार की है। घर जाने का फैसला सिर्फ भावनात्मक नहीं था, 75 फीसदी मजदूर जो शहरों में थे, वो चरणबद्ध बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहे थे। प्रवासी मजदूरों के पास नौकरी नहीं थी, इन लोगों के पास पैसा और काम दोनों नहीं था, जिसकी वजह से यह घर जाने को मजबूर थे। सर्वे के अनुसार 44 फीसदी मजदूर जो घर जाने के लिए निकले उसमे से 39 फीसदी लोगों को श्रमिक ट्रेनें मिलीं। 11 फीसदी लोग ट्रक, लॉरी और अन्य साधन से घर गए, जबकि 6 फीसदी लोग पैदल ही अपने घर गए। जबकि 55 फीसदी लोग जो शहरों में फंसे हैं वह तुरंत अपने घर जाना चाहते हैं।

भूखे रहने को मजबूर

भूखे रहने को मजबूर

स्वान की रिपोर्ट के अनुसार 5911 मजदूरों में से 821 मजदूरों ने 15 मई से 1 जून तक डिस्ट्रेस कॉल की। जिन लोगों का सर्वे किया गया है उसमे से 80 फीसदी लोगों को सरकार द्वारा राशन नहीं मिला। 63 फीसदी मजदूरों के पास 100 रुपए से भी कम पैसा था। जबकि 57 फीसदी मजदूरों ने एसओएस कॉल की और कहा कि उनके पास पैसा, राशन कुछ नहीं है और उन्होंने खाना तक नहीं खाया है।

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English summary
85 percent migrant were forced to pay their fare to return their home says survey.
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