कोरोना के 84 % मरीजों से इंफेक्शन का नहीं है ज्यादा खतरा, 7 % से सावधान- ICMR की नई रिसर्च
नई दिल्ली- इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की एक संस्था नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ऑक्युपेशनल हेल्थ ने कोरोना वायरस के संक्रमण पैटर्न को लेकर बहुत ही बड़ा रिसर्च किया है, जिससे आने वाले दिनों में इंफेक्शन को रोकने की दिशा में बहुत ही ज्यादा मदद मिल सकती है। यह स्टडी पॉजिटिव सैंपल के 'वायरल लोड' के आधार पर की गई है। जिस संक्रमित व्यक्ति में 'वायरल लोड' ज्यादा होता है, वही 'सुपर-स्प्रेडर' साबित होता है। बाकी, संक्रमितों से उतना जोखिम नहीं है। शोधकर्ताओं ने आगे से नोवल कोरोना वायरस टेस्ट रिपोर्ट में 'वायरल लोड' की जानकारी भी देने का सुझाव दिया है, ताकि जो मरीज ज्यादा संक्रमण फैला सकते हैं, उन्हें तत्काल आइसोलेशन में भेजा जा सके।
ज्यादा 'वायरल लोड' ज्यादा इंफेक्शन
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के अहमदाबाद स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ऑक्युपेशनल हेल्थ ने एक रिसर्च के बाद पाया है कि नोवल कोरोना वायरस के सिर्फ 7 फीसदी सैंपल में 'हाई वायरल लोड' मिले हैं। इसका मतलब ये है कि ऐसे मरीज औसतन 6.25 फीसदी लोगों को कोरोना वायरस से इंफेक्टेड कर सकते हैं। लेकिन, कोरोना वायरस से संक्रमित ज्यादातार मरीजों में 'वायरल लोड' ज्यादा नहीं होता। ऐसे मरीजों की तादाद 84 फीसदी पाई गई है, जो औसतन सिर्फ 0.8 फीसदी लोगों को ही संक्रमित कर सकते हैं। इस रिसर्च का सबसे अच्छा पहलू ये है कि ज्यादातर मरीजों से लोगों को संक्रमित होने का ज्यादा खतरा नहीं है। इनके अलावा 9 फीसदी मरीजों में 'मॉडरेट वायरल लोड' पाया गया है, जो कम वायरल लोड वालों की तुलना में ज्यादा खतरनाक तो साबित हो सकते हैं, लेकिन 'हाई वायरल लोड' वालों के मुकाबले ये उतने भी खतरनाक नहीं होते।
'कोविड-19 टेस्ट रिपोर्ट में 'वायरल लोड' का भी जिक्र हो'
'वायरल लोड' एक जीव में वायरस की मात्रा की ओर इशारा करता है और इस बात की भी तस्दीक करता है कि वायरस कितनी तेजी से अपनी संख्या में इजाफा करता जा रहा है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ऑक्युपेशनल हेल्थ गुजरात में अप्रैल और मई के बीच 1,000 सैंपलों के अध्ययन के बाद इस नतीजे पर पहुंचा है। नई स्टडी में सामने आए ये नतीजे इसी हफ्ते आईसीएमआर के इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च को सौंपी जाएगी, जिसमें इस बात पर जोर होगा कि आगे से कोविड टेस्ट की जो रिपोर्ट जारी की जाए, उसमें 'वायरल लोड' के आंकड़े भी शामिल किए जाएं।
ताकि लोग 'सुपर-स्प्रेडर' से हो जाएं सावधान
इस रिसर्च की अहमियत इसलिए बढ़ गई है, क्योंकि कोविड-19 टेस्ट में पॉजिटिव आने वाले बहुत सारे मरीजों में कोई लक्षण ही नहीं होता। संस्था के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा है, 'गुजरात में जो हम दबाव (मरीजों का) देख रहे हैं, हमें वायरल लोड की जांच करनी चाहिए और जो 'सुपर-स्प्रेडर' हैं उन्हें क्वारंटीन करना चाहिए। हमनें पाया है कि यह तय करने के लिए वायरल लोड बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण पहलू है। कुछ लोग बहुत ज्यादा इंफेक्शन फैलाते हैं और ज्यादातर लोग बहुत कम इंफेक्शन फैलाता हैं- हमारी स्टडी में यही बात सामने आई है।'
टेस्ट के साथ ही 'वायरल लोड' का लग सकता है पता
वायरल लोड का एक इंडिकेटर "Ct value" या cycle threshold है। कोविड-19 की जांच के लिए आरटी-पीसीआर टेस्ट में न्यूक्लिक एसिड का पता लगाने के लिए fluorescent सिग्नल का इस्तेमाल किया जाता है। अगर मशीन में "Ct value" कम आता है, इसका मतलब वायरल लोड ज्यादा है और जब ज्यादा होता है तो इसके मतलब वायरल लोड कम है। इस आधार पर हाई, मॉडरेट और लो वायरल लोड की जांच की जा सकती है; और अगर रिपोर्ट में इसका सही वैल्यू डाल दिया जाए तो पता लग सकता है कि किसे फौरन आइसोलेशन में रखने की जरूरत है। जानकारी के मुताबिक अभी आईसीएमआर ने जो मानक तय कर रखा है, उसमें नोवल कोरोना वायरस की टेस्टिंग के लिए Ct values को 23 से 40 के बीच में आंका जाता है। अगर यह 35 से कम है तो वह व्यक्ति पॉजिटिव है और 35 से ज्यादा है तो निगेटिव है। लेकिन, जिसका आंकड़ा 35 पर है, उसे दोबारा टेस्ट कराने की जरूरत है।
'सुपर-स्प्रेडर' ही साबित हुए हैं डॉक्टरों के लिए भी खतरनाक
कुछ एक्सपर्ट ने यह भी आगाह किया है कि स्वैब लेते समय अगर असावधानी बरती गई तो वायरल लोड का परिणाम गलत हो सकता है। एक विदेशी रिसर्च में ये बात भी सामने आ चुकी है कि जिन मरीज में वायरल लोड ज्यादा होता है, वह हल्के लक्षण वाले मरीजों से 60 गुना ज्यादा गंभीर रूप से बीमार पड़ सकते हैं। एक अधिकारी ने बताया, 'उदाहरण के लिए, डॉक्टरों को हम इतनी ज्यादा संख्या में संक्रमित होते क्यों देख रहे है? शायद उन्हें ज्यादा वायरल लोड वाले मरीजों के अधिक करीब जाना होता है।'
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