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7 ऐसी मजबूरी, जिसके चलते 31 सीट अधिक जीतकर भी बीजेपी को नीतीश को CM कुर्सी देनी पड़ी

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नई दिल्ली। कुल 6 बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके जदयू प्रमुख नीतीश कुमार रिकॉर्ड 7वीं बार आगामी 16 नवंबर को बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने जा रहे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर यह जदयू चीफ का संभवत पर यह आखिरी कार्यकाल होगा, जिसकी घोषणा वो खुद बिहार चुनाव के अंतिम दौर के चुनावी कैंपेन में कर चुके हैं। तो सवाल उठता है कि फिर वो क्या कारण है कि जदयू से 31 सीट अधिक जीतने के बाद भी बीजेपी नीतीश के नेतृत्व में बिहार में सरकार बनाने को मजूबर है।

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पहला कारणः बिहार में भी बीजेपी के साथ हो सकता है महाराष्ट्र एपीसोड

पहला कारणः बिहार में भी बीजेपी के साथ हो सकता है महाराष्ट्र एपीसोड

कहते हैं कि राजनीति में कोई भी दल किसी का स्थायी दुश्मन नहीं होता है और फिर नीतीश कुमार तो अभी पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को गच्चा देकर राजद की नेतृत्व वाली महागठबंधन में शामिल हो चुके हैं और आगे भी ऐसी गुंजाइश की संभावनाओं को देखते हुए बीजेपी ने पहले ही कह दिया था कि नतीजों में बीजेपी की सीटें जदयू से कम आएं या ज्यादा बिहार में एनडीए की सरकार बनेंगी, तो एनडीए का नेतृत्व नीतीश कुमार ही करेंगे।

दूसरा कारण: एक गलत कदम से बिहार में सत्ता हाथ से जा सकती है

दूसरा कारण: एक गलत कदम से बिहार में सत्ता हाथ से जा सकती है

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019 में एनडीए सहयोगी शिवसेना के साथ चुनाव जीतने वाली बीजेपी को महाराष्ट्र नहीं बना पाने का मलाल आज भी है और वह आज भी नहीं भूली है कि कैसे शिवसेना द्वारा मुख्यमंत्री पद के चलते बीजेपी से अलग होकर एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार गठन कर लिया था। बिहार चुनाव में जदयू की सीटें कम होने पर चुटकी लेते हुए शिवसेना प्रवक्ता ने कहा कि बीजेपी नीतीश कुमार से भी वादाखिलाफी कर सकती है। बीजेपी अच्छी तरह से जानती है कि उसके एक गलत कदम से बिहार में आई सत्ता हाथ से जा सकती है।

तीसरा कारण: 16 JDU एमपी बीजेपी के लिए खड़ी कर सकते हैं मुश्किल

तीसरा कारण: 16 JDU एमपी बीजेपी के लिए खड़ी कर सकते हैं मुश्किल

लोकसभा चुनाव 2019 में बिहार में चुनाव जीतकर संसद पहुंचे 16 जदयू सांसद भी नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद देने के लिए मजबूर करती है। नीतीश से लोहा लेने से एक ओऱ जहां बीजेपी के हाथ से बिहार की सत्ता छिनेगी, तो दूसरी ओर आगामी संसद सत्र में भी नीतीश के सांसद बीजेपी के लिए मुश्किल बनकर खड़े हो सकते हैं। संभवतः दूरगामी निर्णय लेते हुए बीजेपी आलाकमान ने बिहार में नीतीश कुमार को नाराज करने का जोखिम नहीं लेना चाहती है। निः संदेह एनडीए के लिए आगामी संसद में 16 सांसद बेहद काम आने वाले होंगे, जब वह लंबित विधेयकों को संसद के पटल पर रखेगी।

चौथा कारणः 2024 लोकसभा चुनाव में जीत के लिए बिहार के 40 सीट जरूरी

चौथा कारणः 2024 लोकसभा चुनाव में जीत के लिए बिहार के 40 सीट जरूरी

बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के लिए 2024 लोकसभा चुनाव में जीत के लिए बिहार के 40 लोकसभा सीट बेहद जरूरी है और अगर बीजेपी क्षणिक लाभ के लिए नीतीश को नाराज करती है, तो बिहार सरकार तो हाथ से जाएगी ही जाएगी। लोकसभा चुनाव में भी इसका बुरा असर पड़ना लाजिमी है। नीतीश कुमार पहले ही कह चुके हैं कि उन्हें अब चुनाव नहीं लड़ना है, यह उनका आखिरी चुनाव है, तो बीजेपी उनको नाराज करके बिहार में एकमुश्त 40 सीटों पर पानी फेरने की कोशिश नहीं करेगी। जदयू-बीजेपी को जोड़ी लगातार लोकसभा चुनावों में बिहार की लोकसभा सीटें आपस में बांटती रही हैं।

पांचवा कारण: जदयू की कम हुईं सीटें बीजेपी को कांसप्रेसी थ्योरी में फंसाती है

पांचवा कारण: जदयू की कम हुईं सीटें बीजेपी को कांसप्रेसी थ्योरी में फंसाती है

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को देखते हुए भी बीजेपी जदयू से बैर पालना उचित नहीं समझती है, क्योंकि बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में कम हुईं जदयू की सीटें बीजेपी को कांसप्रेसी थ्योरी की जद में ले जाती है। ऐन चुनाव से पहले नीतीश कुमार के खिलाफ आक्रामक हुए एलजेपी चीफ चिराग पासवान के रवैये ने जदयू की सीटें को कम करने में बड़ा योगदान किया है, जिसका मलाल नीतीश को जरूर होगी और नीतीश को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपकर उस थ्योरी से पीछा छुड़ाने की कोशिश कर रही है।

छठा कारण: नीतीश कुमार राजनीतिक वैराग्य में जाने की वजह मिल गई है

छठा कारण: नीतीश कुमार राजनीतिक वैराग्य में जाने की वजह मिल गई है

नीतीश कुमार राजनीतिक वैराग्य में जाने की वजह मिल गई है कि वो सबकुछ छोड़कर विपक्ष में बैठ जाए, इससे बिहार में किसी भी पार्टी सरकार बनाने लायक स्थिति में नहीं पाती और बिहार में राष्ट्रपति शासन लगना अस्वयंभावी हो जाता है। निः संदेह नीतीश अपने आखिरी चुनाव में मुख्यमंत्री बनकर सक्रिय राजनीति को अलविदा कहना चाहेंगे, लेकिन 43 सीटों पर सिमटी जदयू की हालत और बीजेपी-एलजेपी की कथित मिलीभगत की थ्योरी नीतीश का आहत करने के लिए काफी है। यही कारण है कि बीजेपी ने उस दबी नस को छेड़ना उचित नहीं समझा।

सातवां कारण: बीजेपी तात्कालिक नहीं, दीर्घकालिक फायदों को देखती है

सातवां कारण: बीजेपी तात्कालिक नहीं, दीर्घकालिक फायदों को देखती है

कहा जाता है कि बीजेपी बहुत दूर की सोचती है और तात्कालिक के बजाय दीर्घकालिक फायदों की ओर देखती है। नीतीश कुमार कह चुके हैं कि यह उनका आखिरी चुनाव है और बीजेपी नीतीश कुमार को आखिरी बार मुख्यमंत्री बनाकर अपने पाले में रखना चाहती है। नीतीश कुमार भले ही 2025 विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री उम्मीदवार नहीं होंगे, लेकिन उनकी छत्रछाया से जदयू निकल जाएगी, यह कहना मुश्किल है। बीजेपी उन्हें सीएम बनाकर एक तीर से दो निशाने लगाए हैं, एक तो बिहार में 2024 लोकसभा चुनाव में नीतीश एनडीए को 40 सीटें जिताने में मदद करेंगे, दूसरे बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में जदयू की मदद से बीजेपी बिहार में अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार उतार सकेगी।

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English summary
JDU chief Nitish Kumar, who has been sworn in as the Chief Minister of Bihar for a total of 6 times, is going to take oath as the Chief Minister of Bihar on November 16 for the 7th time. This will probably be the last term of the JDU Chief as the Chief Minister of Bihar, which he himself has announced in the election campaign of the last round of Bihar elections. So the question arises that then what is the reason that even after winning 31 seats more than JDU, BJP is confident of forming a government in Bihar under Nitish's leadership.
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