भारत में एक दिन में पैदा हुए 69000 बच्चे, इसलिए जरूरी है जनसंख्या नियंत्रण कानून!
बेंगलुरू। भारत की तेजी से बढ़ती आबादी लगातार तबाही के संकेत दे रही है और जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून जरूरी हो गया है, क्योंकि संसाधन से अधिक मानव संसाधन ही वजह है, जिसके चलते बेरोजगारी, बीमारी और भुखमरी तेजी से पांव पसार रही है। देश का मानव विकास सूचकांक, प्रति व्यक्ति आय और हैप्पीनेस सूचकांक इसकी गवाही देते हैं। माना जा रहा है कि अगर इसी रफ्तार से देश की जनसंख्या में इजाफा होता रहा तो वह दिन दूर नहीं है जब खाने के अनाज के लिए भारत को दूसरे देशों पर डिपेंडेंट होना पड़ जाएगा।
हालांकि माना जा रहा है कि केंद्र की मोदी सरकार जनसंख्या निंयत्रण के लिए कानून लाने पर विचार कर रही है। इसकी पहली कड़ी के तौर पर एनपीआर यानी नेशनल पापुलेशन रजिस्टर है, जिसे मोदी कैबिनेट ने ही दिसंबर, 2019 में मंजूरी दे चुकी है। एनपीआर वर्ष 2010 में यूपीए सरकार-2 के कार्यकाल के दौरान लाया गया था और वर्ष 2011 में हुए जनगणना के दौरान एनपीआर का फॉर्म भी भारतीय नागरिकों से भरवाया गया था।
जनगणना आयोग का कहना है कि मोदी कैबिनेट द्वारा मंजूरी दी गई एनपीआर का उद्देश्य देश के प्रत्येक "सामान्य निवासी" का एक व्यापक पहचान डेटाबेस तैयार करना है। अगले साल अप्रैल से सितंबर के बीच होने वाली इस जनगणना पर 8,500 करोड़ रुपए खर्च होने की संभावना है।
लेकिन नये वर्ष पर पूरी दुनिया में रूबरू हुआ एक भयावह आंकड़ा सुनकर आप हैरान हो जाएंगे। एक रिपोर्ट के मुताबिक गत 1 जनवरी, 2020 के दिन भारत में कुल 69,000 बच्चों ने जन्म लिया था। कहने का मतलब है महज 24 घंटे में यानी एक दिन में भारत में 69000 बच्चे पैदा हुए।
यह आकंड़ा इसलिए भयावह है, क्योंकि एशिया में भारत के निकटतम प्रतिद्वंद्वी चाइना में इसी दिन यानी 1 जनवरी, 2020 में केवल 46000 बच्चों का जन्म हुआ जबकि चीन के पास भारत से तीन गुना अधिक ज़मीन और उसकी अर्थव्यवस्था भी भारत की तुलना 5 गुना बड़ा है।
गौरतलब है भारतीय भूभाग और भारतीय अर्थव्यवस्था के लिहाज भारत पहले ही जनसंख्या के विस्फोट का शिकार हुआ पड़ा है, बावजूद इसके कोई कुछ सीखने को तैयार नहीं हैं। भारत हर रोज़ चीन से 23,000 ज्यादा बच्चों का जन्म दे रहा है, जो कि चीन की एक दिन में पैदा होने वाले बच्चों की 50 फीसदी बैठता है।
अगर यह सिलसिला नहीं रूका तो 2021 सेंसेक्स में भारत आबादी के मामले में चीन जैसे दो देशों को पीछे छोड़ देगा। इसलिए जरूरी है कि भारत सरकार जनसंख्या नियंत्रण के लिए जल्द से जल्द कानून लेकर आए वरना बढ़ती आबादी मोदी सरकार के 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था का सपना धरा का धरा रह जाएगा और लोग बेकारी, बेचारगी और भुखमरी से अकाल मृत्यु के शिकार बन जाएंगे।
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कब तक टैक्स देकर 81 करोड़ लोगों का पेट भरेंगे टैक्सपेयर्स
जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि नागिरक अपने अधिकार के प्रति तो जागरूक हैं, लेकिन देश के प्रति कर्तव्यों को लेकर अभी भी बेपरवाह बन हुए हैं। देश में एक वर्ग ऐसा है जो भगवान की देन और अल्लाह की देन समझकर लगातार बेतहाशा बच्चे पैदा किए जा रहा है और दूसरे वो लोग हैं, जिनके कमाए पैसों पर टैक्स वसूल कर सरकार उन बच्चों की स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार की व्यवस्था करती है। ऐसा लगता है कि पिछले 70 वर्षों से केंद्र और राज्य सरकारों ने भी बच्चों की परवरिश का जिम्मा ले रखा है। जनसंख्या नियंत्रण के लिए कोई माकूल कानून बनाए जाने की जरूरत इसलिए भी है, क्योंकि सामान्यतया नागरिक मौलिक कर्तव्यों की प्रति बेपरवाह होते हैं।
चीन में एक बच्चा कानून कानून से थमा आसन्न जनसंख्या विस्फोट
जनसंख्या विस्फोट के कगार पर खड़ी भारत सरकार अभी देश में 9 करोड़ से अधिक बच्चों को फ्री में दोपहर का खाना और 81 करोड़ लोगों को सस्ता अनाज दे रही है। सरकार यह सब टैक्सपेयर्स के पैसों से कर पा रही है, लेकिन वह दिन दूर नहीं जब भारत में टैक्सपेयर्स कम हो जाएंगे और खाने वाले अधिक हो जाएंगे। बढ़ती आबादी बेरोजगारी और भुखमरी को जन्म देगी। फिलहाल अभी भारत सरकार देश में 81 करोड़ लोगों के बच्चों को पाल रही है, जिन्होंने बिना नियोजन बच्चे पैदा करके देश का भार बढ़ाने में योगदान दिया है।
कब तक सरकार के भरोसे बच्चे पैदा करते रहेंगे भारतीय
भारत सरकार वर्तमान में देश की 81 करोड़ आबादी के बच्चों के शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के लिए प्रयासरत है, लेकिन अगर जनसंख्या नियंत्रण के लिए जल्द कोई कड़ा कानून नहीं आया तो यह आंकड़ा बढ़ता चला जाएगा, क्योंकि इस देश में आज भी अधिकांश बच्चे सरकार के भरोसे ही पैदा किये जा रहे हैं और सरकार भी उनके बच्चे पालने के लिए दूसरे तरह के नागरिकों यानी टैक्सपेयर्स के भरोसे ही खड़ी है, लेकिन जब टैक्सपेयर्स और बढ़ती आबादी के बीच का औसत में बढ़ेगा, देश में स्थायी बेकारी और भुखमरी का संकट व्याप्त होने में देर नहीं लगेगा।
वोट बैंक की राजनीति में जनसंख्या निंयत्रण पर नहीं बना कानून
भारत की आजादी के बाद से लगातार बिना किसी नियोजन के बाद भारत की आबादी में बेतहाशा वृद्धि हुई है। भारत का एक खास वोटर वर्ग की नाराजगी नहीं मोल लेने के चक्कर में पिछले 60 वर्ष तक सरकार में रही कांग्रेस हिम्मत नहीं जुटा सकी कि जनसंख्या नियंत्रण पर कानून बनाकर लोगों में बच्चों की पैदाइश में नियंत्रण के लिए प्रेरित किया जा सके। वोट बैंक रूठे भले ही बढ़ती जनसंख्या से देश में बेरोजगारी, महंगाई और अर्थव्यवस्था चौपट हो जाए। यह इतिहास पुराना है, लेकिन अब संभावना बढ़ी है कि जनसंख्या निंयत्रण के लिए कुछ कदम उठाया जाएगा।
कब जनसंख्या नियंत्रण पर कानून लेकर आ पाएगी मोदी सरकार
माना जा रहा है कि मोदी सरकार का अगला कदम जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून बनाने के लिए उठाएगी। इतिहास गवाह है कि पिछले 70 वर्षों से अटके जम्मू-कश्मीर में लागू अनुच्छेद 370 और 35ए हटाने के बाद मोदी सरकार से लोगों को उम्मीद बढ़ गई है। जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून का क्या प्रारूप होगा अभी इस पर कयास लगाना जल्दबाजी होगा, लेकिन चीन के एक बच्चा पॉलिसी कानून लागू करना भारतीय संदर्भ में मुफीद नहीं कहा जा सकता है। भारत सरकार जनसंख्या नियंत्रण के लिए सब्सडाईज्ड चीजों पर छूट और आरक्षण का लाभ छीनकर लोगों को जनसंख्या नियंत्रण के लिए प्रेरित कर सकती है।
दो बच्चा नीति कानून पर विचार कर सकती है मोदी सरकार
देश की मोदी सरकार भारत में जनसंख्या नियंत्रण के लिए दो बच्चा पॉलिसी पर अमल कर सकती है, जिसका उल्लंघन करने वाले नागरिकों के बच्चों को मुफ्त शिक्षा, स्वास्थ्य और आरक्षण लाभ से वंचित करने का प्रावधान कर सकती है। वर्ष 2019 में लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री मोदी इशारों-इशारों में जनसंख्या नियंत्रण पर चिंता जाहिर करके पाइनलाइन योजना का खुलासा कर चुके हैं। माना जा रहा है कि मोदी सरकार संभावना जताई जा रही है कि मोदी सरकार 2020 के पहले संसदीय सत्र जनसंख्या नियंत्रण पर कानून बनाने के लिए विधेयक ला सकती है, जिसके ड्राफ्ट में कड़े प्रावधान की पूरी संभावना है।
जनसंख्या नियंत्रण के लिए सामाजिक जागरूकता जरूरीः PM मोदी
73वें स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से संबोधन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने देशवासियों से अपील करते हुए कहा था कि देशवासियों को जनसंख्या विस्फोट जैसी समस्या से निपटने के लिए स्वयं प्रेरित होकर छोटा वर्ग परिवार को अपनाने पर जोर देना चाहिए। उन्होंने कहा था कि परिवार सीमित रखकर देश का नागरिक अपने साथ-साथ देश की भलाई में भी योगदान करता है, लेकिन एक वर्ष बाद भी देश में जनसंख्या नियंत्रण के प्रति मानसिकता मे कोई खास बदलाव नहीं दिखा है। प्रधानमंत्री की प्रेरणा के बावजूद जनसंख्या पर अंकुश लगाने में लोगों के स्वैच्छिक योगदान न के बराबर हुआ है।
भारत में जारी है बिना तैयारी के घर में शिशु का आगमन
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में देशवासियों को आगाह किया था कि बिना तैयारी के घर में शिशु के आगमन की जिम्मेदारी समाज के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है। उन्होंने जोर देकर कहा था कि घर में शिशु को लाने से पहले सोच-विचार करना जरूरी है। जनसंख्या विस्फोट से बचाव के लिए एक समाजिक जागरूकता की आवश्यकता पर बल देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि समाज के बाकी वर्गों को जोड़कर ही जनसंख्या विस्फोट से निपटा जा सकता है। इस काम को राज्यों और केंद्र सरकार को विभिन्न योजनाओं के माध्यम से करना होगा।
जनसंख्या निंयत्रण के लिए संसद में आ चुका है निजी विधेयक
भारत में विस्फोटक होती जनसंख्या के नियंत्रण को लेकर बीजेपी सासंद राकेश सिन्हा ने एक निजी विधेयक 12 जुलाई, 2019 को राज्यसभा में पेश किया गया था। इस विधेयक में टू चाइल्ड नार्म्स यानी एक परिवार में सिर्फ़ दो बच्चों के होने का ज़िक्र किया गया है। इस बिल का नाम जनसंख्या विनियमन विधेयक, 2019 रखा गया था। केंद्रीय मंत्री और बिहार से बीजेपी सांसद गिरिराज सिंह भी लगातार जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून लाने को लेकर सरकार पर दवाब बनाते आए हैं। जबकि करूणाकरण कमेटी ने भी भारत की बढ़ती आबादी पर रोकथाम को लेकर अपनी रिपोर्ट पेश कर चुकी है।
सर्वप्रथम वियतनाम लेकर आई 'दो संतान कानून'
आज से करीब 50 साल पूर्व वर्ष 1960 में वियतनाम पहला देश था, जो सबसे पहले दो संतान पॉलिसी कानून लेकर आई थी। इसके बाद वर्ष 1970 में ब्रिटिश काल में हांगकांग में यह कानून लागू किया गया, लेकिन तब इसे अनिवार्य नहीं बनाया ग था, लेकिन वर्ष 2016 में चीन ने दो संतान कानून को प्रभावी रूप से लागू किया गया जबकि इससे पहले चीन में एक संतान पॉलिसी लागू थी।
इस्लामिक देश ईरान में भी चला 'दो संतान कैंपन'
इस्लामिक देश ईरान ने वर्ष 1990 से 2016 के दौरान परिवार नियोजन के तहत नागरिकों से दो संतान पॉलिसी के लिए प्रोत्साहित किया। तत्कालीन ईरानी सरकार अपनी घोषणा में कहा था कि इस्लाम भी दो संतान वाले परिवार के पक्ष में हैं। यही नहीं, तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्रालय ने दो संतान पॉलिसी के प्रोत्साहन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कैंपेन भी चलाया और बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण के लिए विभिन्न गर्भ निरोधकों के बारे में लोगों को बताया गया। लोगों को कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स, कंडोम, कॉपर टी, आर्म इमप्लांस्ट और नसबंदी जैसी प्रचलित गर्भ निरोधक में विस्तार से समझाया गया।
सिंगापुर में चलाया गया 'स्टॉप एट टू कैंपेन'
सिंगापुर द्वारा वर्ष 1970 में नेशनल फेमिली प्लानिंग कैंपन के तहत स्टॉप एट टू पॉलिसी लांच की गई, जिसके तहत नागरिकों को दो से अधिक संतान नहीं पैदा नहीं करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। स्टॉप एट टू पॉलिसी के तहत दो से अधिक संतान वाले परिवारों को सरकार द्वारा दिए जाने वाले लाभों में वंचित करने का फरमान सुना दिया गया, जिनमें प्रसव सहायता, आयकर, मातृत्व अवकाश और सार्वजनिक आवासों के आवंटन की प्राथमिकता प्रमुख थीं।
ब्रिटेन में पहले 2 बच्चों को चाइल्ड बेनिफिट देने का ऐलान
वर्ष 2012 में ब्रिटेन की कंजरवेटिव पार्टी दो संतान पॉलिसी लेकर आई थी, जिसके तहत सरकार ने परिवार के पहले दो बच्चों को ही चाइल्ड बेनिफिट देने का ऐलान किया गया। हालांकि वर्ष 2015 में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चुने गए डेविड कैमरून ने दो संतान पॉलिसी के तहत चाइल्ड बेनिफिट में कटौती का खंडन किया, लेकिन तीन महीने बाद स्वास्थ्य मंत्री जार्ज ऑस्ब्रोन ने चाइल्ड टैक्स क्रेडिट पहली दो संतानों तक सीमित करने की घोषणा करके जनसंख्या नियंत्रण के खिलाफ सरकार के मंसूबे साफ कर दिए।