नोटबंदी के चलते 50 लाख लोगों की चली गई नौकरी- रिपोर्ट
नई दिल्ली। नोटबंदी को सरकार ऐतिहासिक कदम बताती आई है, लेकिन इसकी वजह से लाखों लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा है। अजीज प्रेमजी यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर सस्टेनेबल इंप्लॉयमेंट की रिपोर्ट के अनुसार 2018 में बेरोजगारी अपने शीर्ष पर पहुंच गई और यह 6 फीसदी हो गई थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2000 से 2010 के बीच बेरोजगारी की तुलना 2018 से करें यह दोगुना बढ़ गई है। रिपोर्ट के अनुसार नवंबर 2016 में मोदी सरकार द्वारा की गई नोटबंदी की वजह से 50 लाख लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा।
नोटबंदी ने छीनी नौकरी
पिछले एक दशक में बेरोजगारी की बात करें तो देश में यह लगातार बढ़ती है, लेकिन 2016 में यह अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई। स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया 2019 की रिपोर्ट के अनुसार बेरोजगारी 20-24 वर्ष की आयु के लोगों में सबसे अधिक है। जोकि भारत में युवाओं के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है। बेरोजगारी का यह हाल हर क्षेत्र में है, यह शहरी पुरुों, महिलाओं, ग्रामीण पुरुषों और महिलाओं दोनों का हाल हैं। गांव हो या शहर हर जगह पुरुषों और महिलाओं को बेरोजगारी की मार झेलनी पड़ रही है।
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महिलाओं की बेरोजगारी दर अधिक
यह रिपोर्ट ऐसे सामने आई है जब लोकसभा चुनाव चल रहे हैं, ऐसे में यह रिपोर्ट चुनावी मुद्दा भी बन सकती है, विपक्ष इस रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार पर अपना हमला और तेज कर सकता है। चुनाव पूर्व तमाम मुद्दों की बात करें तो बेरोजगारी सरकार के लिए मुश्किल सबब बनती नजर आ रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पुरुषों की तुलना में महिलाएं कहीं ज्यादा प्रभावित हैं। बड़ी समस्या यह है कि महिलाओं में बेरोजगारी दर अधिक है।
45 वर्ष के शीर्ष पर बेरोजगारी दर
वहीं नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार भी देश में बेरोजगारी कहीं अधिक है। एनएसएस की जो रिपोर्ट लीक हुई थी उसमे कहा गया था कि बेरोजगारी अपने 45 वर्ष के शीर्ष पर पहुंच गई है और यह 2017-18 में 6.1 फीसदी तक पहुंच गई है। एनएसएसओ के इसी आंकड़े का हवाला देते हुए विपक्ष लगातार केंद्र सरकार पर हमला बोल रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी मोदी सरकार पर हमला बोलते हुए कहा था कि मोदी सरकार में युवाओं को रोजगार से हाथ धोना पड़ रहा है।
पढ़े-लिखों में भी बेरोजगारी
युनिवर्सिटी की रिसर्च रिपोर्ट के अनसार 1999-2011 तक बेरोजगारी दर 2-3 फीसदी के बीच रही, लेकिन 2015 के बाद यह लगातार बढ़ती गई और 5 फीसदी तक पहुंच गई। 2018 में बेरोजगारी दर 6 फीसदी तक पहुंच गई। बता दें कि यूनिवर्सिटी हर चार महीने में 16000 घरों में यह सर्वे करता है। रिपोर्ट के अनुसार पढ़े लिखे लोगों में रोजगार दर 10 फीसदी था, जोकि बढ़कर 2016 में 15-16 फीसदी तक पहुंच गया।
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