5 टॉप कैंपेन थीम, जिसने बनाई 'फिर एक बार मोदी सरकार'
नई दिल्ली- नरेंद्र मोदी की सत्ता में रहते धमाकेदार वापसी के पीछे उनकी मेहनत, उनके सरकार की वेलफेयर स्कीम, मजबूत लीडरशिप, हिंदुत्व और राष्ट्रवाद का मुद्दा तो रहा ही है, उनकी 5 टॉप कैंपेन थीम भी ऐसी रही है, जिसने उन्हें पहले से ज्यादा सीटों के साथ दोबारा सरकार में लौटने में मदद की है। पूरे चुनाव अभियान में बीजेपी ने इसका भरपूर इस्तेमाल किया और वह हमेशा सटीक निशाने पर लगता गया।
1. आएगा तो मोदी ही
बीजेपी (BJP) ने वोटरों को भरोसा दिलाया कि इस बार भी नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की सरकार दोबारा चुनी जा रही है। पूरे विश्वास के साथ कैंपेन चलाया गया, बीच में सरकार के दूसरे टर्म के कामकाज के लक्ष्य की बात की गई। इससे उलझन में रहे वोटरों को मोदी यह विश्वास दिलाने में कामयाब रहे कि वह जीतने जा रहे गठबंधन का नेतृत्व कर रहे हैं। दरअसल, चुनाव में नतीजे को तय करने में एक बड़ी भूमिका अंतिम समय में वोटिंग पसंद तय करने वालों की होती है। एक आंकड़े के अनुसार 20 फीसदी से अधिक वोटर इस कैटिगरी में होते हैं। ऐसे मतदाताओं के बीच आएगा तो मोदी ही... बहुत बड़ा फैक्टर रहा।
2. मोदी है तो मुमकिन है
पूरे अभियान के दौरान मोदी ने मजबूत और बेखोफ फैसले लेने वाले नेता के रूप में खुद को पेश किया। कैंपेन का नाम भी दिया गया- मोदी है तो मुमकिन है। आतंकवाद से लेकर महंगाई तक ऐसे-ऐसे मुद्दों को सामने लाया गया जो अब तक नहीं आए थे। चुनाव के बीच में एंटी मिसाइल सेटेलाइट टेस्ट करने का अंदाज भी लोगों को खूब भाया। वो सीधा और प्रभावी संदेश भी जनता तक पहुंचाने में सफल रहे कि मोदी है तभी ये सब मुमकिन है और वो मजबूरी नहीं, बल्कि जरूरी हैं। वह वोटरों के बीच अपने मजबूत फैसलों के जरिए यह विश्वास दिलाने में सफल रहे कि उनके मजबूत लीडरशिप के कारण ही बहुत सारे बड़े फैसले हो पाए।
3. मैं ही उम्मीदवार
जब चुनाव अभियान की शुरुआत हुई तो बीजेपी (BJP) के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात लोकल सांसदों के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी को लेकर थी। खुद पार्टी की इंटरनल रिपोर्ट के मुताबिक पार्टी के लिए इससे निपटना सबसे बड़ी चुनौती थी। इसकी काट के लिए हर सीट पर पीएम मोदी ने खुद को ही उम्मीदवार के रूप में पेश करना शुरू कर दिया। हर वोट मोदी को... इस नाम से कैंपेन चलाया गया। लोगों को यह बहुत ही आसानी से क्लिक कर गया। इसके कारण कई सीटों पर उम्मीदवारों के खिलाफ नाराजगी नजरअंदाज कर दी गई। इसी रणनीति के तहत बीजेपी ने 30 फीसदी से अधिक मौजूदा सांसदों के टिकट भी काट डाले थे।
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4. मोदी नहीं तो कौन
नरेंद्र मोदी ने विपक्ष के गठबंधन को महामिलावट कहना शुरू कर दिया। यह शब्द पूरे चुनाव में जोर-शोर से उछाला गया। मजबूत सरकार बनाम मजबूर सरकार, पूरे कैंपेन का मजबूत हथियार बन गया। ऊपर से विपक्षी दलों की आपसी उठापटक ने मोदी की बात को कहीं न कहीं लोगों से बहुत अच्छे से कनेक्ट कर गया। मोदी नहीं तो कौन, यह सवाल बीजेपी ने पूरे कैंपेन के दौरान खूब उछाला। बीजेपी (BJP) ने मोदी के सामने विपक्ष को पीएम उम्मीदवार लाने की चुनौती दी। मोदी नहीं तो कौन, यह बात वोटर के दिमाग में बहुत आसानी से बैठ गई। टीना फैक्टर (TINA Factor विकल्प का अभाव) की बात भी मोदी के पक्ष में गई।
5. मैं भी चौकीदार
राफेल
मुद्दे
पर
राहुल
गांधी
(Rahul
Gandhi)
ने
लगातार
मोदी
को
घेरने
की
कोशिश
की।
उन्होंने
अपने
समर्थकों
से
मोदी
की
छवि
खराब
करने
के
लिए
'चौकीदार
चोर
है'
को
अपना
कैंपेन
बना
डाला।
लेकिन,
नरेंद्र
मोदी
ने
राहुल
के
इस
निगेटिव
कैंपेन
को
भी
अपने
पक्ष
में
करने
की
शानदार
और
कामयाब
तरकीब
निकाल
ली।
उन्होंने
खुद
को
बार-बार
चौकीदार
बताना
शुरू
कर
दिया।
अपने
ट्विटर
हैंडल
पर
भी
उन्होंने
अपने
नाम
के
आगे
चौकीदार
जोड़
दिया।
उनके
साथ-साथ
सभी
मंत्रियों
और
बीजेपी
के
नेताओं
और
समर्थकों
ने
भी
ऐसा
ही
कर
लिया।
मोदी
ने
पूरे
देश
के
हजारों
चौकीदारों
के
साथ
एक
विडियो
कांफ्रेंस
भी
किया।
जिस
चौकीदार
शब्द
से
राहुल
मोदी
की
छवि
खराब
करना
चाहते
थे,
मोदी
ने
उसे
अपने
फायदे
के
लिए
इस्तेमाल
कर
लिया।
ऊपर
से
राहुल
की
इस
मुद्दे
पर
सुप्रीम
कोर्ट
में
हुई
फजीहत
ने
मोदी
के
पक्ष
को
और
मजबूत
कर
दिया।
बीजेपी
के
समर्थकों
ने
जगह-जगह
'मैं
भी
चौकीदार'
का
नारा
बुलंद
करना
शुरू
कर
दिया।
आखिरकार
जब
23
तारीख
को
मोदी
को
शानदार
जीत
मिली
तब
उन्होंने
अपने
ट्विटर
हैंडल
से
चौकीदार
शब्द
को
हटा
लिया।
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