4th Anniversary of Narendra Modi Govt: वो फैसले जो रहे सुपरहिट, कहां फ्लॉप हो गए 'सरकार'
नई दिल्ली। मोदी सरकार 26 मई को चार साल पूरे कर रही है। इस मौके पर सरकार अपनी उपलब्धियों का गिना रही है तो विपक्ष नाकामियों की लिस्ट जनता के सामने पेश कर रहा है। आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति से इतर हम आपके लिए लेकर आए हैं, मोदी सरकार की वो योजनाएं जो वाकई सुपरहिट रहीं, लेकिन कई योजनाएं फ्लॉप भी रही हैं। आइए डालते हैं मोदी सरकार की हिट और फ्लॉप योजनाओं पर एक नजर:
सुपरहिट्स: GST:मोदी सरकार के 4 साल के कार्यकाल के सबसे बड़े फैसलों में एक रहा Goods and Service Tax (GST)। एसोचैम ने मोदी सरकार की आर्थिक क्षेत्र में उठाए गए कदमों में रिपोर्ट जारी करते हुए GST को आजादी के बाद भारत का सबसे बड़ा टैक्स रिफॉर्म बताया। हाल ही में सिटीजन एंगेंजमेंट प्लेटफॉर्म लोकल सर्किल ने एक सर्वे किया। अप्रैल में सरकार की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के हिसाब से 2018 में जीएसटी कलेक्शन काफी बढ़ा। वित्त मंत्रालय के मुताबिक राज्यों का जीएसटी कलेक्शन गैप बीते आठ महीनों में कम हुआ है। वित्त वर्ष 2017-2018 में कुल जीएसटी कलेक्शन 7.41 लाख करोड़ रहा है।
नोटबंदी: पीएम नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी का ऐलान किया था। मोदी सरकार ने यूं तो चार साल में कई व्यापक असर वाले फैसले लिए, जिनमें कई सकारात्मक रहे तो कई का प्रभाव अच्छा नहीं रहा, लेकिन इतनों फैसलों की अगर सूची बनाई जाए तो आसानी से यह बात कही जा सकती है कि नोटबंदी मोदी सरकार का सबसे बड़ा फैसला रहा। यह कठिन फैसला था, सही साबित हुआ या गलत? इसे लेकर अलग-अलग राय है। मोदी सरकार का तर्क है कि इससे कालेधन पर कुठाराघात हुआ और जो पैसा छिपाकर रखा गया था, वह मुख्यधारा में आया। दूसरी ओर विपक्ष आंकड़े मांग रहा है, लेकिन सरकार अभी तक ऐसा करने में असफल रही है। हालांकि, मोदी सरकार और बीजेपी की ओर से यह भी तर्क दिया गया कि नोटबंदी और जीएसटी के बाद उसने कई राज्यों में विजय हासिल की। ऐसे में वह प्रभाव सकारात्मक मान रहे हैं। बहरहाल, नोटबंदी सही थी या गलत? इसका जवाब अब लोकसभा चुनाव 2019 में ही मिलेगा।
जन-धन योजना: पीएम नरेंद्र मोदी ने जन-धन योजना की सफलता का जिक्र न केवल देश में बल्कि विदेश में भी जमकर किया। 2 मई, 2018 तक के आंकड़ों की मानें तो जन-धन योजना के तहत अब तक 31.5 करोड़ खाते खोले जा चुके हैं। इनमें करीब 59 फीसदी यानी 18.58 करोड़ खाते ग्रामीण और कस्बाई इलाकों की बैंक शाखाओं में खुले हैं। बड़ी संख्या में बैंक खाते खुलने और इन्हें आधार व मोबाइल से जोड़े जाने को मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने 'जैम तिकड़ी' करार दिया है। उन्होंने दावा किया है कि इससे सरकारी व्यवस्था में लीकेज काफी हद कम हुई है।
उज्जवला योजना: पीएम नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षा उज्जवला योजना मोदी सरकार की चार साल सबसे बड़ी उपलब्धियों में एक रही। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों की संख्या दो करोड़ के आंकड़े को पार कर गई है। 2016 में शुरू की गई उज्जवला योजना के तहत अब तक साढ़े तीन करोड़ फ्री कनेक्शन उपलब्ध कराए जा चुके हैं। योजना के तहत कुल 8 करोड़ कनेक्शन देने का लक्ष्य रखा गया है।
सौभाग्य योजना: हर घर को बिजली पहुंचाने के लिए मोदी सरकार ने सितंबर 2017 में इसकी शुरुआत की थी। इस योजना के पूरे होने की डेडलाइन पहले मार्च 2019 थी, जिसे अब बढ़ाकर दिसंबर 2019 कर दिया गया है। इस योजना की कुल लागत 16,320 करोड़ है, जिसक 40 प्रतिशत केंद्र सरकार उठाएगी और 30 प्रतिशत बैंक लोन से पूरा होगा, जबकि 10 प्रतिशत खर्च राज्यों को उठाना होगा। इस पूरे बजट में से 14,025 करोड़ रुपया ग्रामीण क्षेत्रों के लिए रखा गया है। इस योजना के तहत प्रतिदिन 1 लाख घरों तक बिजली पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है।
RERA-रियल
एस्टेट
रेगुलेशन
एंड
डिवेलपमेंट
एक्ट
2016
मोदी
सरकार
के
उन
फैसलों
में
शामिल
है,
जिन्हें
हर
तरफ
से
सराहना
मिली।
इस
रिफॉर्म
के
आने
से
पहले
बिल्डर
काफी
डरे
हुए
थे,
लेकिन
RERA
ने
बिल्डर
और
बायर्स
दोनों
को
मजबूती
प्रदान
करने
का
काम
किया।
RERA
के
मुताबिक
कोई
भी
प्रोजेक्ट
बिना
रियल
एस्टेट
रेगुलेटरी
अथॉरिटी
की
मंजूरी
के
लॉन्च
नहीं
किया
जा
सकेगा।
RERA
में
बिना
रजिस्ट्रेशन
किए
प्रोजेक्ट
की
बिक्री
नहीं
शुरू
होगी।
इतना
ही
नहीं,
प्रोजेक्ट
में
देरी
हुई
तो
जुर्माना
भरना
होगा।
खरीदारों
से
जो
पैसा
मिलेगा
उसका
70
फीसदी
कंस्ट्रक्शन
वर्क
पर
खर्च
किया
जाएगा।
इस
तरीके
से
खरीदारों
को
कई
तरह
से
सुरक्षा
मिलेगी।
देश
के
बड़े
बिल्डर्स
भी
RERA
का
स्वागत
कर
रहे
हैं।
बिल्डर्स
को
रेरा
में
पहले
से
जारी
प्रोजेक्ट
शामिल
करने
पर
आपत्ति
है,
लेकिन
फिर
भी
उनका
मानना
है
कि
ये
कंज्यूमर
और
इंडस्ट्री
दोनों
के
लिए
अच्छा
है।
मुद्रा योजना: मोदी सरकार मुद्रा योजना को बड़ी सफलता के तौर पर पेश कर रही है। सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप से इतर यदि तथ्यों की बात की जाए तो इसमें शक नहीं है कि मुद्रा योजना के तहत बड़ी संख्या में लोगों को पैसा दिया गया है। नीति आयोग के वाइस चेयरमैन राजीव कुमार का दावा है कि प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (पीएमएमवाई) के अंतर्गत 3.5 करोड़ नौकरियां उत्पन्न हुई हैं। लघु उद्योग, छोटे व्यापारियों की वित्तीय सहायता करने की लिए वर्ष 2015 मुद्रा लोन योजना शुरू की गई।
सुपरफ्लॉप: मेक इन इंडिया: मोदी सरकार की योजनाओं में सबसे अच्छी योजना अगर किसी को कहा जा सकता है, तो वो है मेक इन इंडिया। ऐसा इसलिए, क्योंकि कोई भी बड़ा देश बिना मैन्यूफैक्चरिंग हब बने विकसित नहीं हो सकता है। लेकिन मेक इन इंडिया मोदी सरकार की सबसे असफल योजनाओं में शुमार है। मेक इन इंडिया के सफल होने के लिए डिफेंस मैन्यूफैक्चरिंग और गुड्स मैन्यूफैक्चरिंग सबसे जरूरी थे, लेकिन प्रॉडक्शन कॉस्ट के चलते भारत चीन के मुकाबले खड़ा नहीं हो पा रहा है। मेक इन इंडिया के तहत मोदी सरकार की स्टार्ट अप इंडिया मुहिम को ज्यादा सफलता नहीं मिल सकी। इसके पीछे छिपे ज्यादातर कारणों के पीछे सरकारी व्यवस्था ही है। ऐसे में मोदी सरकार को मेक इन इंडिया को सफल बनाने के लिए कई और कड़े कदम उठाने की जरूरत है।
कालाधन: मोदी सरकार के चार साल के दौरान शायद ही कोई ऐसा दिन हो, जब इस बात पर चर्चा न हुई हो कि 15 लाख अकाउंट में कब आएंगे? कभी सोशल मीडिया में तो कभी मेन स्ट्रीम मीडिया में, कभी सत्ता के गलियारों में तो कभी गांव की चौपाल पर, ये एक ऐसा मुद्दा है, जिस पर हर कोई चुटकी लेता है। ऐसा कहा गया था या नहीं, यह अलग डिबेट का विषय है, लेकिन काले धन पर मोदी सरकार के वादे की नाकामी का अंदाजा इस बात लगाया जा सकता है कि चार साल बाद भी मोदी सरकार का कोई मंत्री यह नहीं बता पाया कि विदेशों से कितना कालाधन देश में आया। हालांकि, मोदी सरकार ने कालेधन के खिलाफ एसआईटभ् बनाने से लेकर अन्य देशों के साथ समझौतों तक, कई बड़े कदम उठाए हैं, जो बेहद प्रभावी है, लेकिन विदेशों से कितना काला धन आया इस पर मोदी सरकार के पास ज्यादा कुछ नहीं है।
एनपीए पब्लिक सेक्टर बैंक रिफॉर्म: पहले विजय माल्या और उसके बाद नीरव मोदी जैसे डिफॉल्टर मोदी सरकार के लिए लगातार मुसीबत बने हुए हैं। बैंकों से लोन लेकर पैसा न चुकाने की अदात यूं तो भारत में बहुत पुरानी है, लेकिन मोदी सरकार इन्हें रोकने के लिए कोई बड़ी पहल नहीं कर पाई। बैंकिंग रिफॉर्म को लेकर अधिकतर मौकों पर मोदी सरकार पल्ला झाड़ती दिखी।