बिहार में तीसरे चरण का चुनाव: मुस्लिम बहुल सीटों पर BJP-JDU को इस रणनीति से कितना फायदा?
नई दिल्ली- तीसरे चरण के चुनाव प्रचार के दौरान बिहार में भाजपा और जदयू में अवैध घुसपैठियों के मुद्दे पर सार्वजनिक मतभेद देखने को मिले हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रैली में जो बातें कहीं, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उसे सार्वजनिक तौर पर खारिज कर दिया। लगा कि यह ऐसा मसला है, जिससे एनडीए में दरार पैदा हो सकती है। लेकिन, विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल का दावा है कि दोनों दलों के बीच कोई मतभेद नहीं, बल्कि सोची-समझी चुनावी रणनीति का हिस्सा है। दरअसल, बुधवार को कटिहार की रैली में योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि अगर राज्य में दोबारा एनडीए सरकार बनती है तो बांग्लादेशी घुसपैठियों को बाहर कर दिया जाएगा। इसके लिए उन्होंने मोदी सरकार की ओर से पिछले साल लाए गए नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) का हवाला दिया। जबकि, कटिहार से सटे मुस्लिम बहुल किशनगंज की रैली में नीतीश कुमार ने बिना योगी का नाम लिए कह दिया कि बाहर भेजने का अधिकार किसी को नहीं है और ये सब फालतू बातें हैं।
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कटिहार की रैली में योगी आदित्यनाथ ने बांग्लादेशी घुसपैठियों को निकाल-बाहर करने का वादा किया तो किशनगंज में नीतीश ने बिना उनका नाम लिए उनपर पलटवार कर दिया। जदयू नेता बोले, 'कुछ लोग प्रोपेगेंडा फैला रहे हैं। देश से कौन किसको बाहर करेगा? किसी के पास किसी को भी बाहर भेजने का अधिकार नहीं है, क्योंकि सभी भारत के हैं।' सामने से भले ही इस मुद्दे पर एनडीए में मतभेद नजर आ रहा हो, लेकिन राजद इसे एक रणनीति के तहत की जा रही नूरा कुश्ती मानता है। पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी का आरोप है कि जानबूझकर विवादित मसले उछाले जा रहे हैं। उन्होंने कहा है, 'यह बीजेपी और जेडीयू के बीच में फिक्स गेम है। योगी आदित्यनाथ ने इसलिए मुद्दा उठाया, ताकि नीतीश कुमार उसपर जवाब दे सकें। सीएए-विरोधी प्रदर्शन के दौरान नीतीश कुमार मूकदर्शक बने रहे। जब पीएम मोदी ने चंपारण में जयश्री राम का मुद्दा उठाया तो उन्होंने एक शब्द नहीं कहा। बीजेपी और जेडीयू किसको वेबकूफ बना रहे हैं......'
शनिवार को अंतिम चरण में जिन 78 विधानसभा सीटों पर चुनाव हो रहे हैं, उनमें से बीजेपी 35 और जेडीयू 41 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। इस फेज में जिन इलाकों में चुनाव हो रहे हैं, उनमें सीमांचल के वो इलाके भी हैं, जिसके चार जिलों में मुस्लिम आबादी का काफी दबदबा है। किशनगंज में 65 फीसदी तो कटिहार में 32 फीसदी जनसंख्या मुसलमानों की है। इनके अलावा दरभंगा, मधुबनी और पश्चिम चंपराण जिलों में भी चुनाव हो रहे हैं, जहां कई सीटों पर मुस्लिम वोटर चुनाव परिणामों का रुख बदलने का माद्दा रखते हैं।
ध्रुवीकरण के दम पर भाजपा एक समय कटिहार, पूर्णिया और अररिया जैसी मुस्लिमों की बड़ी आबादी वाली सीटों पर भी चुनाव जीत भी चुकी है। इसके ठीक उलट पिछले एक दशक में कब्रगाहों की चारदीवारी और अल्पसंख्यक छात्र-छात्राओं को स्कॉलरशिप देकर नीतीश कुमार भी इस इलाके में मुस्लिम जनसंख्या पर अपना काफी प्रभाव कायम कर चुके हैं। इस चुनाव में वह मुख्यतौर पर अति-पिछड़ों के वोट के भरोसे हैं। लेकिन उन्हें यह भी उम्मीद है कि मुस्लिम वोटर उनकी पार्टी को हराने की नीयत से वोटिंग नहीं करेंगे। लेकिन, भाजपा ने जिस तरह से आर्टिकल-370, ट्रिपल तलाक और राम मंदिर पर अपने वादे पूरे करके दिखाए हैं, उससे उन्हें डर है कि मुसलमानों की नाराजगी को टालना जरूरी है। इसलिए, उन्होंने आदित्यनाथ के बयान को सार्वजनिक तौर पर काटने की कोशिश की है।
दरअसल, सीमांचल इलाके में एक दशक पहले तक मुसलमान भी अलग-अलग समुदायों में विभाजित थे। सूरजापुरी मुसलमानों की नेतागीरी कांग्रेस के पूर्व सांसद असरारुल हक करते थे। जबकि, कुल्हिया मुसलमानों के लीडर पूर्व राजद सांसद मोहम्मद तस्लीमुद्दीन हुआ करते थे। इसके अलावा भाटिया मुसलमानों का भी अपना खेमा हुआ करता था। मुसलमानों में आपसी मतभेद के चलते ही 1995 के विधानसभा चुनाव में भाजपा किशनगंज की 3 विधानसभा सीटों पर जीत गई थी। 1998 के लोकसभा चुनाव में हक और तस्लीमुद्दीन के बीच वोट बंट गए तो शाहनवाज हुसैन किशनगंज सीट से जीतकर भाजपा सांसद बन गए थे। लेकिन, नरेंद्र मोदी का कालखंड शुरू होने के बाद से यहां की मुस्लिम राजनीति पूरी तरह से मोदी-विरोध के नाम पर सिमट कर रह गई है।
हालांकि, जहां तक भाजपा का सवाल है तो उसे योगी और नीतीश के बयानों को कोई अंतर्विरोध नजर नहीं आता। पार्टी प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल के मुताबिक, 'योगी जी बांग्लादेश से आए अवैध घुसपैठियों पर बयान दे रहे थे। जबकि, नीतीश जी ने अवैध घुसपैठियों के बारे में कुछ नहीं कहा है।' वैसे गौर करने वाली बात ये है कि भाजपा की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने 90 के दशक की शुरुआत में ही सीमांचल में अवैध घुसपैठियों के खिलाफ अभियान छेड़ा था। लेकिन, जबसे 2005 में जेडीयू के साथ सरकार बनी बीजेपी ने इस मसले को ठंडे बस्ते में डाल दिया था।
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