नई दिल्ली। एक सुबह तीन साल का अविजीत खून से लथपथ पसीने में नहाया हुआ मिला। जब उसे अस्पताल लेकर गए तो डॉक्टर ने उसे इंजेक्शन लगाए और वो दर्द से चीख उठा। अविजीत को ब्ल्ड कैंसर है। मैं सब कुछ छोड़कर 1800 किमी का सफर तय कर चेन्नई के अपोलो अस्पाताल पहुंचा ताकि अविजीत को बेहतर इलाज मिल सके। उसके लिए मैंने अपनी नौकरी तक छोड़ दी। अविजीत के पिता कहते हैं कि मैं हार नहीं मान सकता।
अर्चना और उसके पति अपने बेटे के साथ कोलकाता में रहते थे और उनका एक छोटा सा खुशहाल परिवार था। अविजीत ने प्री स्कूल में जाना शुरु ही किया था। वो उसकी यूनिफॉर्म से लेकर स्कूल बैग और कलर्स तक का पूरा ध्यान रखते थे लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था। उन दोनों ने नोटिस किया कि अचानक से अविजीत का वज़न कम होने लगा है।
गर्मी के दिनों में भी उसे ठंड लगती थी और वो बिस्तर से बाहर नहीं निकलता था। सर्दी से वो कांपने लगता था और उसे तेज़ बुखार भी था। अगली सुबह हम उठे तो उसके तकिए पर खून के निशान थे। ऐसा पहली बार हुआ था, उसका पूरा तकिया पसीने से भर गया था। पूरी रात वो करवटें बदलता रहा। ये सब देखकर अविजीत के पिता परेशान हो गए।
समय बीतने के साथ अविजीत ने कुछ भी खाने से मना कर दिया और उसे लगतार पेट में दर्द रहता। उसके माता-पिता उसे कोलकाता में पास के अस्पताल लेकर गए जहां डॉक्टर ने उसे कुछ दवाएं लिख दी। दवाओं का कोई असर नहीं हुआ और बच्चे को पूरे हफ्ते बुखार रहा।
अविजीत के पिता उसे कोलकाता के लोकल डॉक्टर को ही दिखाते रहे और उन्होंने अविजीत का ब्लड टेस्ट कराने को कहा। मेरा बेटा ब्लड टेस्ट के दौरान लगातार रोता रहा। उसके प्लैटलैट्स काउंट बहुत कम थे। हमें उसके लिए और खून लाने के लिए कहा गया। जांच करने के दौरान खुद अस्पताल वालों को बीमारी समझ नहीं आ रही थी। वहीं अस्पताल में गंदगी की वजह से अविजीत को संक्रमण भी हो गया था।
सब कुछ करने के बाद भी जब कुछ समझ नहीं आया तो अविजीत को चेन्नई के अपोलो अस्पताल रेफर कर दिया गया। ये कोलकाता से 1800 किमी दूर था। वो दोनों अपना सब कुछ छोड़कर अपने बेटे के इलाज के लिए उसे चेन्नई लेकर गए। अस्पताल में भर्ती करवाने के बाद उसके कुछ ब्लड टेस्ट हुए और उसमें पता चला कि अविजीत को ल्यूकेमिया है जो कि रक्त कैंसर होता है। उसकी कोशिकाएं तेज़ी से मर रही है और कीमोथेरेपी से ही उसकी जान बचाई जा सकती है।
जल्द से जल्द कीमोथेरेपी शुरु करवाने के अलावा हमारे पास और कोई रास्ता नहीं है। इसमें कुल 15 लाख रुपए का खर्चा आएगा। पहले ही हम अविजीत की दवाओं और टेस्ट पर 2 लाख रुपए खर्च कर चुके हैं।
कोलकाता से चेन्नई रोज़ सफर करना तो नामुमकिन था इसलिए कुछ समय के लिए हम चेन्नई में ही शिफ्ट हो गए। अस्पताल के पास ही एक कमरा किराए पर ले लिया। नया शहर था और ना तो हमें इस शहर की भाषा आती थी और ना ही हमारे पास कोई काम था। ऐसे में यहां पर गुज़ारा करना बहुत मुश्किल था। अब तक जो पैसे उधार लिए थे, परिवार को वही चुकाने में मेहनत करनी पड़ रही है। ऊपर से उस पर लगा ब्याज उन्हें मारता जा रहा है। नए शहर में कुछ भी अच्छा नहीं लगता है।
आप
कैसे
मदद
कर
सकते
हैं
अविजीत
ब्लड
कैंसर
से
जूझ
रहा
है।
उसकी
जान
अब
बस
कीमोथेरेपी
से
ही
बच
सकती
है।
वो
शहर
में
नए
हैं
और
किसी
को
जानते
भी
नहीं
हैं।
आपका
छोटा
सा
योगदान
भी
इस
बच्चे
की
जान
बचाने
में
मदद
कर
सकता
है।
आप
उसकी
कहानी
अपने
दोस्तों
और
रिश्तेदारों
से
शेयर
करके
भी
उसकी
मदद
कर
सकते
हैं।
इस
छोटे
से
बच्चे
की
ज़िंदगी
अब
आपके
हाथों
में
है।