कोयला घोटाला में पूर्व केंद्रीय मंत्री दिलीप रे को तीन साल की सजा
नई दिल्ली: 1999 में झारखंड कोयला ब्लॉक घोटाला मामले में आखिरकार 21 साल बाद आज फैसला आ ही गया। इस मामले में दिल्ली स्थिति विशेष सीबीआई अदालत ने पूर्व केंद्रीय मंत्री दिलीप रे को तीन साल की सजा सुनाई है। दिलीप रे के अलावा इस मामले में कोयला मंत्रालय के तत्कालीन दो अधिकारी, प्रदीप कुमार बनर्जी और नित्या नंद गौतम, कैस्ट्रोन टेक्नोलॉजीज लिमिटेड (सीटीएल) निदेशक महेंद्र कुमार अग्रवाल और कैस्ट्रॉन माइनिंग लिमिटेड (सीएमएल) भी दोषी ठहराए गए थे। सजा सुनाने के बाद कोर्ट ने दोषियों को एक लाख के मुचलके पर जमानत दे दी। साथ ही हाईकोर्ट में अपील के लिए 25 नवंबर तक का वक्त दिया है।
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दरअसल दिलीप रे तत्कालीन वाजपेयी सरकार में कोयला राज्यमंत्री थे। विशेष सीबीआई कोर्ट ने अप्रैल, 2017 में दिलीप रे के अलावा कोयला मंत्रालय में रहे तब के दो वरिष्ठ अधिकारियों प्रदीप कुमार बनर्जी और नित्यानंद गौतम के साथ-साथ कैस्ट्रॉन टेक्नॉलजीज लिमिटेड, और उसके डायरेक्टर महेंद्र कुमार अग्रवाल के खिलाफ धोखाधड़ी, आपराधिक साजिश और विश्वास हनन का आरोप तय किया था। अदालत ने उस वक्त कहा था कि आरोपियों के खिलाफ मुकदमा शुरू करने के लिए पर्याप्त प्रमाण हैं। लंबी सुनवाई के बाद 14 अक्टूबर को सभी को दोषी करार देते हुए कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसे आज सुनाया गया। जिसके तहत दिलीप रे और दो अन्य को तीन साल की सजा हुई है। साथ ही तीनों पर 10 लाख का जुर्माना भी लगाया गया है। इसके अलावा सीटीएल पर 60 लाख और सीएमएल पर 10 लाख रुपये का जुर्माना लगा है।
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सीबीआई के मुताबिक 1998 में सीटीएल ने कोयला ब्लॉक के लिए कोयला मंत्रालय में आवेदन किया था। उस दौरान दिलीप रे कोयला राज्यमंत्री थे। इस आवेदन पर कोल इंडिया ने कहा था कि जिस जगह पर खनन की अनुमति मांगी जा रही है, वो सुरक्षित नहीं है क्योंकि वहां पानी भरा है। एक साल बाद 1999 में सीटीएल ने फिर से आवेदन किया। इस बार कोयला मंत्रालय के अधिकारी प्रदीप कुमार बनर्जी और नित्या नंद गौतम ने उसे ब्लॉक आवंटन कर दिया। ब्लॉक मिलने के बाद सीटीएल ने बिना खनन की अनुमति के कोयला वहां से निकाला था।