अयोध्या विवाद: सुप्रीम कोर्ट में पहले दिन उठे ये तीन सवाल
नई दिल्ली। बाबरी मस्जिद विध्वंस की 25वीं वर्षगांठ से ठीक एक दिन पहले सुप्रीम कोर्ट में रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद स्वामित्व विवाद पर सुनवाई हुई। 25 साल पुराने इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पूर्ण पीठ कर रही है, जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्र के अलावा न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर शामिल हैं। कोर्ट में अब अगली सुनवाई 8 फरवरी 2018 को होगी। सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई में कई बातें सामने आई।
1- क्या इस मामले की सुनवाई 2019 आम चुनावों के बाद होनी चाहिए?
सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने मामले की सुनवाई 2019 तक टालने की बात कही है। कपिल सिब्बल ने इसके पीछे तर्क दिया कि राम मंदिर एनडीए के एजेंडे में है, उनके घोषणा पत्र का हिस्सा है इसलिए 2019 के बाद ही इसको लेकर सुनवाई होनी चाहिए। भाजपा इस मुद्दे को चुनावों में प्रयोग कर वोटों का धुव्रीकरण कर सकती है। बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी कई बार कह चुके हैं कि 2019 के पहले राम मंदिर बन जाएगा, इसलिए अदालत को इस ट्रैप में नहीं आना चाहिए। सिब्बल के मुताबिक ये संपत्ति का कोई सामान्य मामला नहीं है बल्कि ये देश सेक्युलर ढांचे का सवाल है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह मामला एक लंबे समय से घसीटा जा रहा है। पिछले एक दशक से इस मामले पर सुनवाई हो रही है। वहीं यह मुद्दा देश की राजनीतिक दलों के घोषणापत्र का मुद्दा रहा है, खासकर भाजपा का। चुनावों से पहले इस पर निर्णय लेन सांप्रदायिक हिसां को निमंत्रण देना है।
क्या अधिक न्यायाधीशों की संविधान खंडपीठ के सामने सुनवाई होनी चाहिए?
सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल ने मांग की है कि मामले की सुनवाई 5 या 7 जजों बेंच को 2019 के आम चुनाव के बाद करनी चाहिए। क्योंकि मामला राजनीतिक हो चुका है। सिब्बल ने कहा कि रिकॉर्ड में दस्तावेज अधूरे हैं। कपिल सिब्बल और राजीव धवन ने इसको लेकर आपत्ति जताते हुए सुनवाई का बहिष्कार करने की बात कही है। वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने तर्क दिया कि इस मामले को 5 या 7 न्यायाधीशों के संविधान खंडपीठ के लिए भेजा जाना चाहिए क्योंकि यह मामला सिर्फ एक साधारण भूमि विवाद नहीं है (जैसा कि इसे प्रति व्यवहार किया जा रहा है), बल्कि देश की धर्मनिरपेक्षता की छवि से जुड़ा हुआ है।
वहीं राम जन्मभूमि ट्रस्ट की ओर से सुनवाई करते हुए अधिवक्ता हरीश साल्वे ने इस तर्क को चुनौती देते हुए कहा कि अधिकतर केसों को तीन सदस्यों वाली बेंच ही सुनवाई करती है। इससे केस की बिना किसी रुकावट के सुनवाई पूरी हो जाती है। अगर यह मामला बड़ी बेंच को सौंपा जाएगा तो परिणाम आने में देरी होगी।
हमारी केस प्रबंधन प्रणाली में सुधार होना चाहिए?
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का अधिकतर समय आज की सुनवाई और अगस्त की सुनवाई में बेकार की दलीलों और प्रक्रियाओं में गया है। जैसे सभी दस्तावेज दिखाए गए या नहीं, सभी दस्तावेजों की पार्टियों को उपलब्ध करवाया गया है कि नहीं। इस सुनवाई का बड़ा हिस्सा कपिल सिब्बल के दस्तावेजों को पढ़ने और स्टेटस अपडेट में चला गया। वहीं कई दस्तावेजों के उपलब्ध होने नहीं होने पर भी विवाद रहा। वहीं सुन्नी वक्फ बोर्ड ने सभी दस्तावेज पूरे करने की मांग की है। इसके जवाब में यूपी सरकार की ओर से पेश हो रहे तुषार मेहता ने कहा कि जब दस्तावेज सुन्नी वक्फ बोर्ड के ही हैं तो ट्रांसलेटेड कॉपी देने की जरूरत क्यों हैं? शीर्ष अदालत इस मामले में निर्णायक सुनवाई कर रही है। मामले की रोजाना सुनवाई पर भी फैसला होना है। मुस्लिम पक्ष की ओर से राजीव धवन ने कहा कि अगर सोमवार से शुक्रवार भी मामले की सुनवाई होती है, तो भी मामले में एक साल लगेगा। अंत में, सुप्रीम कोर्ट के आदेश में कहा गया कि दोनों दलों के वकीलों को सभी साक्ष्यों पर एक ज्ञापन को सहयोग से फाइल करने की आवश्यकता है।