छत्तीसगढ़: पारले-जी बिस्किट कारखाने से छुड़ाए गए 26 बच्चे, कराया जाता था 12 घंटे काम
रायपुर। लोकप्रिय बिस्किट ब्रांड पारले-जी के प्लांट में मजदूरी कर रहे 26 बच्चों को जिला कार्यबल (डीटीएफ) ने शनिवार को रेस्क्यू किया है। विधानसभा पुलिस स्टेशन के एसएचओ अश्वनी राठौर ने बताया कि बाल श्रम को लेकर सरकारी टास्क फोर्स को एक सूचना मिली थी। जिसमें कहा गया था कि, रायपुर में अमासिवनी इलाके में पार्ले-जी के कारखाने में नाबालिगों को काम पर रखा गया है। उन्होंने कहा कि टास्क फोर्स ने शुक्रवार शाम कारखाने में छापा मारा और 26 बच्चों को छुड़ाया है।
कारखान से रेस्क्यू किए गए सभी बच्चों को उन्हें किशोर आश्रय गृह भेजा गया है। महिला और बाल विकास विभाग के अधिकारियों द्वारा दायर एक शिकायत के आधार पर, कारखाने के मालिक के खिलाफ किशोर न्याय अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है। पुलिस अधिकारी ने बताया कि, प्रारंभिक जांच से पता चला है कि बचाए गए नाबालिगों की उम्र 13 से 17 साल के बीच है। और वे झारखंड, ओडिशा और बिहार से ताल्लुक रखते हैं।
उन्होंने बताया कि, इन अभियानों के तहत जिले में पिछले छह दिनों में कुल 51 बाल श्रमिकों को रेस्क्यू किया गया है। जिला बाल संरक्षण अधिकारी नवनीत स्वर्णकार ने कहा कि उनके माता-पिता से संपर्क किया जा रहा है। बच्चों द्वारा दिए गए बयानों के अनुसार, प्रति माह केवल 5,000 से 7,000 रुपये तक के वेतन में वे सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक काम किया करते थे। बचपन बचाओं आंदोलन के के सीईओ समीर माथुर ने कहा, पारले-जी जैसा ब्रांड हमारे देश में एक घरेलू नाम है और लाखों बच्चों के बीच इसकी पहचान है, उसे इस रूप में देखना बहुत निराशाजनक है।
टॉस्क फोर्स टीम का हिस्सा बचपन बचाओं आंदोलन के संदीप राव ने बताया कि कंपनी संचालक पर बाल श्रम अधिनियम के तहत धारा 3, 3(ए) और धारा 14 के तहत कार्रवाई होना चाहिए। इसी तरह आईपीसी की धारा 370 और बंधुआ मजदूर की धारा के तहत कार्रवाई होना चाहिए। उन्होंने बताया कि 27 बच्चों में से 9 बच्चे बाहर के है इस कारण ही बंधुआ मजदूर की धारा लगनी चाहिए।
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