26/11 में हेडली के रोल की जांच और भारत की लापरवाही
मुंबई। मुंबई पर हुए आतंकी हमले 26/11 को आज सात वर्ष पूरे हो चुके हैं। यह हमले आज भी भारत के हर नागरिक के दिल पर गहरे जख्म की तरह हैं जो 26 नवंबर आते ही हरे हो जाते हैं। इन हमलों को मुख्य आरोपी पाकिस्तान मूल का अमेरिकी नागरिक डेविड हेडली, जो फिलहाल अमेरिका की हिरासत में है, 10 दिसंबर को टाडा कोर्ट के सामने अपना बयान दर्ज कराएगा।
इन हमलों में हेडली की भूमिका को भारतीय जांच एजेंसियों ने शुरू से ही नजरअंदाज किया था। इन हमलों में हेडली के रोल के बारे में कभी जांच एजेंसियों ने ठीक से तफ्तीश ही नहीं की।
एफबीआई
की
वजह
से
हेडली
का
पता
लगा
मुंबई
आतंकी
हमलों
के
एक
वर्ष
बाद
भारत
को
इस
बात
का
पता
लगा
था
कि
इन
हमलों
में
डेविड
हेडली
जैसे
किसी
आतंकी
का
भी
हाथ
था।
भारत
को
यह
पता
न
लग
पाता
अगर
अमेरिका
की
जांच
एजेंसी
एफबीआई
की
जांच
में
हेडली
का
नाम
न
आता।
भारत ने हमलों की स्वतंत्र जांच की और भारतीय जांच एजेंसियां पूरी तरह से उन फाइलों पर निर्भर हो गईं जो एफबीआई की जांच से जुड़ी थीं। आज भारत के पास हेडली के खिलाफ अगर सुबूत के नाम पर कुछ है तो वह है एफबीआई की ओर से हुई जांच से जुड़े दस्तावेजों की फोटोकॉपी।
एफबीआई
पर
निर्भर
भारत
राष्ट्रीय
जांच
एजेंसी
यानी
एनआईए
की
एक
टीम
भी
हेडली
का
बयान
दर्ज
करने
के
लिए
अमेरिका
गई
थी
लेकिन
उसे
सिर्फ
वहीं
जानकारियां
मिलीं
जो
पहले
से
ही
एफबीआई
के
पास
हैं।
भारत
और
मुंबई
पुलिस
इन
हमलों
के
बाद
पूरी
तरह
से
एफबीआई
पर
निर्भर
हो
गई
थी।
भारत ने हेडली के इन हमलों में शामिल होने के बारे में कोई भी स्वतंत्र जांच अपनी ओर से नहीं की थी। कोर्ट की ओर से हाल ही में इसका जिक्र किया गया था।
अमेरिका में गिरफ्तार होने के बाद हेडली को भारत सौंपने से जुड़ी एक डील पर बातें होनी लगीं। इस डील में यह पहले से ही साफ था कि हेडली को न तो मौत की सजा दी सकती है और न ही उसे भारत या फिर डेनमार्क को प्रत्यर्पित किया जा सकता है।
यह भारत के लिए एक बड़े झटके की तरह था क्योंकि इसकी वजह से हेडली के खिलाफ होने वाली जांच पर कई तरह से पाबंदिया भी लग गई थी।
कौन थे हेडली की मददगार
हेडली जब भारत में दाखिल हुआ तो वह कई व्यक्तियों के संपर्क में था। उसने मुंबई में रहने वाले व्यक्तियों से दोस्ती की और फिर वह अपनी साजिश को अंजाम देने की कोशिशों में लग गया।
भारतीय जांचकर्ता इस बात की जांच तक पहुंच ही नहीं पाए कि जिन तीन व्यक्तियों से हेडली को मदद मिल रही थी वे जानकर हेडली की मदद कर रहे थे या फिर उन्हें उसके बारे में कुछ भी नहीं मालूम था।
पुणे के लोकल कांटेक्ट्स नजरअंदाज
इसके अलावा जांच में कई तरह की खामियां भी थीं जिसकी वजह से हेडली भारत से बाहर जाने में सफल हुआ और किसी को भी इसका पता नहीं लग पाया।
जब वह पहली बार भारत आया तो लश्कर-ए-तैयबा के ऑपरेटिव साजिद मीर ने एक व्यक्ति को उसे एयरपोर्ट पर लेने के लिए भेजा था। पुलिस ने इस एक पहलु की जांच ही नहीं की।
हेडली पुणे भी गया और बताया जा रहा है कि उसने यहां पर आकर अपने टारगेट्स का सर्वे किया। जांच एजेंसी वहां तक पहुंच ही नहीं पाई और पुणे में वह जिन स्थानीय व्यक्तियों के संपर्क में आया वह भी राज ही रह गया।