उत्तर प्रदेश में नाबालिग 'हाई रिस्क' लेकर बन रही हैं मां
बेंगलुरु। उत्तम प्रदेश का दावा करने वाले उत्तर प्रदेश का एक भयावह सच सामने आया है। इस सच का खुलासा हाल ही में जारी की गई स्वास्थ्य संबंधी रिपोर्ट में समाने आया है। स्वास्थ्य सेवा में सबसे पिछड़े राज्य उत्तर प्रदेश में मातृ-शिशु की स्थिति काफी गंभीर है। इतना ही नहीं नाबालिग उम्र में मां बनकर वह खुद की और नवजात की जान जोखिम में डाल रही हैं।
62 फीसदी गर्भवती महिलाओं की उम्र 21 वर्ष से कम
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय तक पहुंची रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। यह चौकाने वाली रिपोर्ट के अनुसार करीब 25 फीसदी गर्भवती महिलाओं की उम्र 18 साल से भी कम है। इसके अलावा 18 से 21 वर्ष के बीच गर्भवती होने वाली महिलाओं का आंकड़ा 62 फीसदी है। विशेषज्ञों के अनुसार, इतनी कम उम्र में गर्भधारण करने से जच्चा और बच्चा दोनों की जान जोखिम में है। यहीं नहीं ज्यादातर जिलों में 42 फीसदी से अधिक महिलाएं खून की कमी यानी एनीमिया से पीड़ित हैं।
24 घंटे में ही अस्पताल से दे दी जाती है छुट्टी
इस रिपोर्ट के अनुसार कम उम्र में महिलाएं गर्भवती बनने से हाई रिस्क जोन में हैं। यह स्थिति राज्य के 18 जिलों में है। इतना ही नहीं गर्भवती महिलाओं को अस्पताल में प्रसूति के 24 घंटे के अंदर ही छुट्टी दे दी जाती है। यह भी खतरनाक है। न्यूट्रिशन इंटरनेशनल की ओर से केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय तक पहुंची रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है।
गर्भवती नवजात की हो रही देखभाल
बता दें , मातृत्व व शिशु सुरक्षा को लेकर देश भर में स्वास्थ्य योजना पर काम चल रहा है। गांव-गांव तक लोगों को जागरूक करने, स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर बनाने और आशा-आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को शिक्षित करने के लिए कनाडा सरकार के सहयोग से न्यूट्रिएशन इंटरनेशनल उत्तर प्रदेश और गुजरात में काम कर रहा है। इसके तहत यूपी के चार जिलों में सबसे पहले फोकस किया गया। यहां पायलट प्रोजेक्ट के तहत गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं की देखभाल के एक हजार दिन पूरे होने पर स्टेटस रिपोर्ट मंत्रालय को सौंपी गई है।
18 जिलों में हुआ अध्ययन
रिपोर्ट के अनुसार 'हाई रिस्क' महिलाओं का पता लगाने के लिए यूपी के 18 जिलों में अध्ययन किया गया। वहां के जिला अस्पताल से लेकर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक से मरीजों की जानकारी एकत्रित की गई। वर्ष 2018 में 178 गर्भवती महिलाएं हाई रिस्क जोन में मिलने के बाद उन्हें हर महीने फॉलो किया गया ताकि जच्चा और बच्चा स्वस्थ रह सकें।
रिपोर्ट के अनुसार यूपी के बस्ती, मैनपुरी, फतेहपुर और गाजीपुर में जन्म लेने के 24 घंटे के भीतर 52 फीसदी महिलाएं स्तनपान कराती थीं, जोकि अब 64 फीसदी तक पहुंच चुका है। संतुलित आहार की बात करें तो राष्ट्रीय स्तर पर ये दर 9.6 फीसदी है, जबकि यूपी और गुजरात में क्रमश: 6 व 7 फीसदी तक ही है।
शिशु की देखभाल पर भी हुआ अध्ययन
डॉ. अर्चना ने बताया कि यूपी के चार जिले बस्ती, मैनपुरी, फतेहपुर और गाजीपुर के अस्पतालों में सबसे पहले काम शुरू किया। यहां 270 दिन गर्भवती महिलाओं और बाकी 730 दिन नवजात शिशुओं की देखभाल पर अध्ययन किया गया। इस दौरान काफी चुनौतियां सामने आई हैं।
इनमें आशा, आंगनवाड़ी और एएनएम कर्मचारियों को पर्याप्त जानकारी का अभाव, सामुदायिक केंद्रों पर सुविधाओं का अभाव, कंगारू केयर, स्तनपान का अभाव, कुुपोषण के अलावा नवजात शिशुओं की मौत, गर्भवती महिलाओं में शारीरिक कमजोरी इत्यादि शामिल हैं। शारीरिक कमजोरी के अलावा खून की कमी, आर्थिक रूप से कमजोर, पर्याप्त आहार न मिलने की वजह से ये गर्भवती महिलाएं हाई रिस्क में आ रही हैं। हाई रिस्क में आने का मतलब जच्चा और बच्चा दोनों की ही जान का जोखिम हो सकता है।
गुजरात में भी ऐसे ही हैं हालात
प्रोजेक्ट की राष्ट्रीय प्रभारी डॉ. अर्चना चौधरी बताती हैं कि नवजात शिशुओं और गर्भवती महिलाओं की देखभाल के लिए देश में कुछ समय पहले योजना लागू की गई थी, लेकिन जमीनी स्तर पर स्वास्थ्य कर्मचारियों को इसकी जानकारी ही नहीं है। इसीलिए कनाडा और भारत सरकार ने मिलकर यूपी और गुजरात में 2015 में पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया था। ठीक इसी तरह के परिणाम गुजरात में भी देखने को मिल रहे हैं लेकिन यूपी की स्थिति ज्यादा गंभीर है। उत्तर प्रदेश सरकार के सहयोग से ग्रामीण स्तर पर प्रोजेक्ट काफी तेज गति से चल रहा है।