1901 के बाद आठवां सबसे ज्यादा गर्म साल रहा 2020, जिसके चलते आईं कई प्राकृतिक आपदाएं
नई दिल्ली। warmest years 2020. साल 2020 कई मायनों मानव इतिहास के सबसे भयावाह साल के तौर पर याद किया जाएगा। पिछला साल अब तक दो सबसे गर्म सालों में से एक है। साल 2020 भारत में 1901 के बाद से 8 वां सबसे गर्म साल(warmest years) दर्ज किया गया। साल 2016 को रिकॉर्ड में सबसे ज्यादा गर्म वर्ष माना गया था। यूरोपीय संघ(European Union) की 'कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस' ने कहा कि यूरोप (Europe) में पिछले साल के तापमान ने 0.4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ 2019 के तापमान के रिकॉर्ड को तोड़ दिया।
सबसे गर्म सालों में एक रहा 2020
सितंबर महीने में दुनिया पर ला नीना का प्रभाव भी शुरू हो गया था। ला-नीना कूलिंग इफेक्ट के लिए जाना जाता है, लेकिन साल 2020 में ला-नीना का कूलिंग इफेक्ट भी गर्मी को खत्म करने के लिए पर्याप्त नहीं रहा। आंकड़ों के अनुसार, 1901 के बाद से 15 सबसे ज्यादा गर्म वर्षों में 12 वर्ष 2006 से 2020 के दौरान रहे। इस साल दुनिया भर में भयंकर गर्मी पड़ी, जंगलों में आग की घटनाएं भी देखने को मिली वहीं कई पर्यावरणीय आपदाएं भी साल 2020 में हुई।
तापमान में वृद्धि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि की वजह से हो रही है
जलवायु सेवा केंद्र जर्मनी (GERICS) में वैज्ञानिक, कार्स्टन हाउस्टीन ने कहा कि, 2020 में ऐसा कोई 'बूस्ट' नहीं था, फिर भी यह पिछले रिकॉर्ड धारक से लगभग अधिक था। 2020 केवल दिसंबर महीने के ठंड़ा होने (नवंबर की तुलना में) के कारण सबसे अधिक गर्म साल होने से बच गया। विश्व में तापमान में वृद्धि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि की वजह से हो रही है जिनमें सबसे प्रमुख कार्बन डाई ऑक्साइड है। आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2020 पूर्व औद्योगिक काल 1850-1900 के तापमान के मुकाबले 1.25 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म रहा।
औसत वार्षिक तापमान सामान्य में 0.62 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि
1901-2020 के दौरान देश में औसत वार्षिक तापमान सामान्य में 0.62 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि देखी गई। विभाग ने 2020 के दौरान भारत की जलवायु संबंधी एक बयान में कहा कि वर्ष के दौरान देश में औसत वार्षिक तापमान सामान्य से 0.29 डिग्री सेल्सियस अधिक था। यह आंकड़ा 1981-2010 के आंकड़ों पर आधारित है। कैलीफोर्निया के ब्रेकथ्रू इंस्टीट्यूट के क्लाइमेट साइंटिस्ट जेके हॉसफादर का कहना है कि यह एक मामले में उल्लेखनीय है कि साल 2020 के ली नीना साल और 2016 सुपर इल नीनो घटना थी।
आर्कटिक अधिक तेजी से गर्म हो रहा है
उनका कहना है कि 2016 वाला साल 2.22 डिग्री फॉरेन्हाइट ज्यादा था। वातावरण में ग्रीन हाउस गैस की सांद्रता अभी और बढ़ रही है। आर्कटिक कहीं अधिक तेजी से गर्म हो रहा है। आर्कटिक के कुछ हिस्सों में औसत तापमान 1981 से 2010 तक बेसलाइन औसत से 6 डिग्री सेल्सियस अधिक था। इसके विपरीत, यूरोप पिछले साल इसी आधार रेखा से 1.6 डिग्री सेल्सियस अधिक था। आर्कटिक में और विशेष रूप से साइबेरिया के कुछ हिस्सों में, वर्ष के अधिकांश समय में असामान्य रूप से गर्म स्थिति बनी रही। गर्मी की वजह से पेड-पौधे सूख गए।
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