राहुल गांधी-चंद्रबाबू नायडू की जुगलबंदी का अंजाम क्या होगा? जानें
नई दिल्ली। तेलंगाना में बुधवार को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू एक मंच पर नजर आए। खम्मम में आयोजित रैली के दौरान राहुल गांधी और नायडू के अलावा सीपीआई, तेलंगाना जन समिति के नेता भी शामिल हुए। एनडीए छोड़कर राहुल गांधी के पाले में जाने वाले चंद्रबाबू नायडू के लिए तेलंगाना चुनाव में चुनौती बेहद कठिन है। यह बात सच है कि तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) प्रमुख के. चंद्रशेखर राव यानी केसीआर के खिलाफ नायडू महागठबंधन बनाने में कामयाब रहे हैं, लेकिन टीडीपी और कांग्रेस की मुश्किलें कम नहीं हैं। तेलंगाना में चंद्रबाबू नायडू की पहचान 'एंटी तेलंगाना' फेस की है। लंबे समय तक अलग तेलंगाना राज्य की मुहिम जब चली तब नायडू संयुक्त आंध्रप्रदेश (मतलब तेलगाना निर्माण से पहले) में सीएम थे। ऐसे में तेलंगाना के लोग उसी सरकार को वापस कैसे मौका दे सकते हैं, जिससे अलग जाने के लिए उन लोगों ने कुबार्नी दी। बहरहाल, मसला पेचीदा होने के बाद भी चंद्रबाबू नायडू ने उम्मीद नहीं छोड़ी है। वह दावा कर रहे हैं कि उन्होंने भी तेलंगाना के लिए काफी कुछ किया है। वहीं, राहुल गांधी टीआरएस को बीजेपी की बी टीम बता रहे हैं।
मुस्लिम पोट बेहद अहम, टीआरएस ने पहले चल दिया बड़ा दांव
टीआरएस ने तेलंगाना विधानसभा चुनाव से जो सबसे बड़ा दांव चला, वह नायडू और कांग्रेस पर भारी पड़ सकता है। टीआरएस ने ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के साथ गठबंधन कर लिया है। तेलंगाना में करीब 12 प्रतिशत मुस्लिम वोटर हैं। कुल 119 50 विधानसभा सीटों पर 10 प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं। ओवैसी की पार्टी अगर अच्छा प्रदर्शन करती है तो टीआरएस को दोबारा सत्ता में आने से कोई रोक नहीं सकेगा।
तेलंगाना विधानसभा चुनाव में नायडू-राहुल गांधी की पहली अग्निपरीक्षा
यह बात सच है कि मौजूदा दौर में चंद्रबाबू नायडू और राहुल गांधी के एक-दूसरे के नैचुरल एलाई यानी स्वाभाविक मित्र हैं। दोनों मोदी विरोधी, दोनों महागठबंधन चाहते हैं, 2019 में दोनों का मकसद बीजेपी को रोकना है, लेकिन स्वाभाविक मित्रता और जमीनी हकीकत में क्या कोई तालमेल है? नायडू और राहुल गांधी के साथ आने का मतलब है तीन प्रकार का तालमेल। पहला परीक्षा है तेलंगाना में, जहां मतदान में 10 दिन से भी कम वक्त बचा है। दूसरा लक्ष्य है 2019 लोकसभा चुनाव साथ मिलकर लड़ना और तीसरा पड़ाव आता है आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव। तेलंगाना में दोनों साथ लड़ रहे हैं, 2019 लोकसभा में भी कोई दिक्कत नहीं, लेकिन आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनावों में साथ लड़ने पर कांग्रेस और टीडीपी दोनों में विरोध है। ऐसे में तेलंगाना में महागठबंधन अगर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाया तो नायडू के लिए 2019 में महागठबंधन की धुरी बने रहे बड़ा मुश्किल हो जाएगा। बिना चुनावी जीत गठबंधन में रहकर भी नायडू की स्थिति पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
टीडीपी के साथ जाने को आत्मघाती बता रहे हैं आंध्र के कई कांग्रेसी
टीडीपी के साथ जाने को कई कांग्रेसी नेता आत्मघाती बता रहे हैं। आंध प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस अलग बनने से कांग्रेस की शक्ति बेहद कम हुई है, लेकिन इसका विकल्प टीडीपी के साथ जाना नहीं है। कांग्रेस को असली नुकसान पहुंचाने वाले जगन मोहन रेड्डी को मनाने के लिए कांग्रेस ने शुरू से कोई प्रयास नहीं किया। अब यह बगावत भारी पड़ सकती है।