कौन हैं माया कोडनानी जो नरोदा पटिया जनसंहार केस में हुई बरी
गांधीनगर। आज गुजरात हाईकोर्ट ने साल 2002 के नरोदा पटिया जनसंहार मामले में पूर्व मंत्री माया कोडनानी को बाइज्जत बरी कर दिया है, जबकि आरोपी बाबू बजरंगी को दोषी करार दे दिया है। बाबू बजरंगी को कोर्ट ने आजीवन कारावास (मृत्यु तक) की सजा सुनाई है। बाबू बजरंगी के अलावा इस मामले में आरोपी किशन कोरणी, मुरली नारणभाई सिंधी और सुरेश लंगाडो को भी दोषी करार दिया गया है तो वहीं, विक्रम छारा और गणपति छानाजी छारा को निर्दोष करार दिया गया है।माया कोडनानी और उनके परिवार वालों के लिए ये बहुत बड़ी राहत की खबर है।आपको बता दें कि माया कोडनानी पर अहमदाबाद के नरोदा पाटिया इलाके में दंगा भड़काने का आरोप था। माया कोडनानी के खिलाफ कोर्ट में 11 चश्मदीदों ने गवाही दी थी लेकिन उनमें से 10 तथ्य उन्हें निर्दोष साबित करने में अहम रहे।
चलिए विस्तार से जानते हैं माया कोडनानी के बारे में..
माया कोडनानी की छवि एक तेज-तर्रार नेता के रूप में थी
आपको बता दें माया कोडनानी की छवि एक तेज-तर्रार नेता के रूप में रही है, वो गुजरात की मोदी सरकार में मंत्री थीं, वो तीन बार विधायक रह चुकी हैं, 1995 में अहमदाबाद निकाय चुनावों में सफलता हासिल करने के बाद उन्होंने अपना सियासी सफर शुरू किया था। उसके तीन साल बाद ही 1998 में वो पहली बार एमएलए बनीं। पेशे से वो एक गाइनकालजिस्ट हैं, लेकन बहुत वक्त पहले ही उन्होंने अपना पेशा मुख्य रूप से छोड़ दिया था।
पाकिस्तान से सिंध प्रांत से नाता
बंटवारे से पहले माया का परिवार पाकिस्तान से सिंध प्रांत में रहता था लेकिन बंटवारे के बाद माया का पूरा परिवार गुजरात में आकर बस गया। माया कोडनानी पर शुरू से ही असर आरएसएस का रहा, वो आरएसएस की एक दिग्गज कार्यकर्ता के रूप में जानी जाती थीं।
मोदी-आडवाणी की गुड लिस्ट में थीं माया कोडनानी
डाक्टर बनने के बाद माया ने नरोदा में अपना एक अस्पताल खोला था, लेकिन थोड़े समय बाद ही वो राजनीति में सक्रिय हो गईं, माया नरेंद्र मोदी की काफी करीबी मानी जाती थीं, जिसका फायदा उन्हें गुजरात की राजनीति में आगे बढ़ने को मिला। वो बीजेपी की वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी के भी काफी करीबी थीं क्योंकि वो बहुत अच्छी वक्ता थीं।
माया कोडनानी नरोदा से विधायक थीं
जिस समय साल 2002 में गुजरात में दंगे हुए उस वक्त माया कोडनानी नरोदा से विधायक थीं। 2002 के गुजरात दंगों में उनका नाम सामने आया, उनके ऊपर दंगा भड़काने का आरोप लगा, बावजूद इसके वो फिर से 2002 में ही हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में विधायक चुनी गईं। इसके बाद साल 2007 के गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद उन्हें गुजरात सरकार में मंत्री पद मिला। लेकिन साल 2009 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेष टीम से गिरफ्तारी के बाद उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा हालांकि जल्द ही उन्हें स्वास्थ्य ठीक ना होने के कारण जमानत मिल गई थी।
29 अगस्त 2012
लेकिन इसके बाद 29 अगस्त 2012 में कोर्ट ने उन्हें नरोदा पाटिया दंगों के मामले में दोषी करार दिया, 31 अगस्त को कोर्ट ने उन्हें 28 वर्ष की सजा सुनाई, जिसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट में अपील की, जिसका फैसला आज आया और वो बाइज्जत बरी हो गईं।
अमित शाह ने दी थी माया के पक्ष में गवाही
बीते साल 28 सितंबर को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह नेकोडनानी के मामले में गवाही दी थी। शाह ने अदालत में कहा था कि 28 फरवरी 2002 को सुबह 8.30 बजे विधानसभा सत्र था। दंगो में मारे गए लगों को श्रद्धांजलि देने का प्रस्ताव किया गया था। इसके बाद सुबह 9: 30 बजे से 9: 45 बजे तक मैं सिविल अस्पताल में था और मैंने वहां माया कोडनानी से मुलाकात की। अस्पताल में नारे बाजी की वजह से मुझे वहां पुलिस ने रुकने नहीं दिया। पुलिस मुझे और कोडनानी को पुलिस की गाड़ी में लेकर गई थी।
नरोदा पाटिया नरसंहार
गोधरा में 27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन में हुए अग्निकांड के अगले ही दिन विश्व हिंदू परिषद के बंद का ऐलान किया था। 28 फरवरी 2002 को विश्व हिंदू परिषद के बंद दौरान नरोदा पटिया में बड़ी संख्या में लोग एकत्र हुए थे। उग्र भीड़ ने अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों पर हमला कर दिया था, जिसमें 97 लोगों की मौत हो गई थी जबकि 33 लोग घायल हो गए। नरोदा पाटिया नरसंहार को गुजरात दंगों के दौरान हुआ सबसे भीषण नरसंहार बताया जाता है।
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