शानदार 20 साल: PM बदल गए लेकिन CM की कुर्सी नहीं हिला पाया कोई
नई दिल्ली। जरा सोचिए, कोई शख्स अपनी जिंदगी के शुरुआती 50 साल राजनीति से दूर रहे और जब राजनीति में कदम रखे तो आजतक उसे कोई मात न दे पाए। हम बात कर रहे हैं राजनीति के उस धुरंधर की जिसने 20 साल पहले आज के ही दिन (5 मार्च 2000) राजनीति में एंट्री की थी और मुख्यमंत्री के तौर पर ऐसी सियासी बिसात बिछाई दी कि मनमोहन सिंह से लेकर नरेंद्र मोदी तक उनके मजबूत किले को भेद नहीं पाया। जी हां बीजू जनता दल के मुखिया नवीन पटनायक को आज मुख्यमंत्री के तौर पर 20 साल हो गए। तो आइए पॉलिटिक्स के इस माहिर खिलाड़ी के बारे में विस्तार से जानते हैं।
16 अक्टूबर 1946 को हुआ था नवीन पटनायक का जन्म
पिता की राजनीतिक विरासत की सियासत संभालने वाले नवीन पटनायक का जन्म 16 अक्टूबर 1946 में ओडिशा के कटक में हुआ। उनके पिता बीजू पटनायक ओडिशा की सियासत के दिग्गज नेता थे, जिन्होंने कांग्रेस के खिलाफ जनता दल के साथ खड़े हुए और अपनी नई राजनीतिक लकीर खींची थी। नवीन पटनायक की पढ़ाई देहरादून की दून यूनिवर्सिटी और दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से हुई और अपने पिता की राह पर चलते हुए सियासत में कदम रखा।
राजनीति में आने का नहीं था प्लान लेकिन पिता की मृत्यु के बाद...
एक समय ऐसा भी था, जब नवीन का राजनीति में आने का कोई इरादा नहीं था। जवानी के दिनों में जब नवीन पटनायक राजनीति से दूर थे, तब वो लुटियन दिल्ली के ‘कॉकटेल सर्किट' में अपना ज्यादातर वक्त बिताया करते थे। अप्रैल 1997 में जब नवीन के पिता का निधन हो गया तो उनकी जिंदगी एकदम से बदल गई, इसके बाद पिता की विरासत संभालने के लिए नवीन राजनीति में उतरे। उसी साल वह अपने पिता की लोकसभा सीट अस्का का उपचुनाव जीतकर संसद पहुंचे। उन्होंने दिसंबर 1997 में बीजू जनता दल (बीजेडी) बनाया और वह खुद उसके अध्यक्ष बने। 1997 में जनता दल टूट गई और नवीन पटनायक ने खुद की पार्टी 'बीजू जनता दल' बना ली। साल 2000 में उन्होंने ओडिशा में बीजेपी के साथ गठबंधन किया और विधानसभा चुनाव जीते। इसके बाद सूबे के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। 2004 में भी वह सत्ता में आये ।
इस तरह टूटा बीजेपी से रिश्ता
विहिप नेता स्वामी लक्ष्मणनंदा सरस्वती की हत्या के बाद हुए कंधमाल दंगों से दोनों दलों में मतभेद पैदा हुआ। पटनायक ने 2009 आम चुनाव और विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा से नाता तोड़ दिया। यह राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में उनका 'मास्टरस्ट्रोक साबित हुआ और प्रदेश की राजनीति में उनका कद बढ़ा। बीजद ने लोकसभा में 21 में से 14 और विधानसभा में 147 में से 103 सीटें जीतीं। उसके बाद पटनायक ने कई सियासी तूफानों का सामना किया जिनमें 2012 में उनकी ही पार्टी के नेताओं द्वारा कथित तख्तापलट का प्रयास शामिल था जब वह विदेश में थे। उस तूफान में वह और निखरकर उभरे। बीजद ने 2014 में मोदी लहर के बावजूद रिकार्ड जीत दर्ज की। पटनायक की पार्टी ने 147 में से 117 सीटें और लोकसभा में 21 में से 20 सीटें जीतीं।
1 रूपये किलो चावल और 5 रूपये में खाने की उनकी योजनायें बेहद लोकप्रिय है
ओडिशा के लोगों के दिलों में पटनायक की खास जगह है । एक रूपये किलो चावल और पांच रूपये में खाने की उनकी योजनायें बेहद लोकप्रिय रहीं । उन्होंने 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले महिलाओं के लिये 33 प्रतिशत आरक्षण का समर्थन किया और उसे लागू भी किया।
कैश असिस्टेंट फॉर फारमर्स योजना ने किसानों के बीच लोकप्रिय बनाया
नवीन पटनायक अविवाहित हैं। ओडिशा की जनता के बीच उनकी छवि साफ-सुथरे और ईमानदार नेता की है। पटनायक महिला मतदाताओं के बीच छवि काफी लोकप्रिय है। वह कई लोक कल्याणकारी योजनाओं की वजह से जनता के बीच भी काफी लोकप्रिय हैं। उनकी कैश असिस्टेंट फॉर फारमर्स योजना ने उन्हें किसानों के बीच भी लोकप्रिय बनाया है। नवीन पटनायक मौजूदा समय में कांग्रेस और बीजेपी में से किसी भी पार्टी के गठबंधन के साथ खड़े नहीं हैं। हालांकि कई मौके पर केंद्र सरकार के साथ नजर आते हैं।
केंद्र की राजनीति से खुद को दूर रखा
सफेद-कुर्ता पायजामा पहनने वाले नवीन पटनायक ने केंद्रीय राजनीति से हमेशा अपने आपको दूर रखा। दिल्ली आते हैं और वापस चले जाते हैं। किसी को खबर भी नहीं लगती है। हालांकि ओडिशा की राजनीति में नवीन पटनायक को विपक्ष कोई बड़ी चुनौती नहीं दे सका।
पेपरलेस बजट से बचाए 700 पेड़
नवीन पटनायक ने पेपरलेस बजट पेश कर नई नजीर पेश की। वो पेन ड्राइव में बजट लेकर आए और आईपैड के माध्यम से बजट स्पीच दिया। इसके बाद सरकार ने फैसला लिया है कि आने वाले समय में भी पूरी तरह से पेपरलेस बजट पेश किया जाएगा। सरकार की इस पहल से करीब 700 पेड़ बचाए गए हैं। इसके अलावा कागज की बर्बादी बचाने के लिए राज्य सरकार ने कर्मचारियों के वेतन और पेंशन के दस्तावेज को भी एक पन्ने में समेटना शुरू कर दिया है। अब ये सब दस्तावेज ऑनलाइन तैयार किए जा रहे हैं ताकि पेपर की बर्बादी न होने पाए।
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