चीन से तनाव के बीच लद्दाख के लिए 20,000 करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट, तेजी से पूरा करने के निर्देश
नई दिल्ली- भारत अब किसी भी सूरत में चीन पर भरोसा करने के लिए तैयार नहीं है। इसलिए भले ही गलवान घाटी से चाइनीज पीछे हट गए हों, लेकिन भारत उन्हें अब और कोई मौका देने का जोखिम नहीं ले सकता। इसलिए भारत ने एलएसी के पास पहले से ही चल रहे सड़क निर्माण और उससे जुड़े बाकी बुनियादी ढांचे के विकास के काम में और तेजी लाने का फैसला कर लिया है। क्योंकि, सच्चाई है कि इन्हीं इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट की वजह से चीन बेचैन है, लेकिन भारत ने दो महीने से ज्यादा वक्त से चले संघर्ष के बावजूद अपने काम की रफ्तार को धीमा नहीं होने दिया है। लेकिन, गलवान की घटना देखने के बाद रक्षा मंत्री ने इलाके में 20,000 करोड़ रुपये के इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट में और ज्यादा तेजी लाने को कह दिया है।
लद्दाख में रोड के लिए 20,000 करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट
लद्दाख में चीन के साथ जारी तनाव के बीच भारत ने वहां 20,000 करोड़ रुपये के रोड-इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के काम को तेजी से पूरा करने पर जोर लगा दिया है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने वहां रोड से जुड़े सारे प्रोजेक्ट की समीक्षा के बाद उनमें और तेजी लाने के दिशा-निर्देश दिए हैं। सूत्रों के मुताबिक इन प्रोजेक्ट में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण डरबुक-श्योक-दौतल बेग ओल्डी की सड़क का बाकी बचा काम भी शामिल है, जिसके चलते दो महीनों से पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में संघर्ष की स्थिति बनी हुई है। इसको लेकर हाल ही में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने रक्षा मंत्रालय और बोर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन के अधिकारियों के साथ एक बैठक की है। इन प्रोजेक्ट्स में सड़क निर्माण के साथ-साथ लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल तक कनेक्टिविटी वाले 30 पुल भी निर्माणाधीन हैं। जाहिर है कि कनेक्टिविटी बढ़ने से इलाके में सेना से लेकर आम लोगों की भी सुविधाएं बढ़ेंगी।
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एलएसी से कनेक्टिविटी बढ़ाने पर जोर
इंडिया टुडे टीवी की खबरों के मुताबिक इस मामले से जुड़े सूत्रों ने बताया कि 20,000 करोड़ रुपये के इस सामरिक इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट में कुल 30 स्थाई पुलों के अलावा हाइवे और सुरंगों के निर्माण का काम भी अलग-अलग चरणों में है। अगर ये प्रोजेक्ट पूरा हो जाता है तो इलाके से कनेक्टिविटी बहुत अच्छी हो जाएगी। एक अधिकारी ने कहा, 'सड़क के बुनियादी ढांचे को मौजूदा गतिरोध को ध्यान में रखते हुए बढ़ाया जाना है, जो कि कई महीनों तक खिंच सकता है।' सिर्फ सड़कों का ही निर्माण नहीं, बीआरओ लेह, थोइसे, करगिल और दॉलत बेग ओल्डी में एयरफिल्ड को मेंटेन करने का भी काम कर रहा है। मौजूदी परिस्थितियों में इलाके में एयर ऐक्टिविटी भी बढ़ी है, क्योंकि भारतीय वायुसेना वहां सिर्फ खुद की तैयारी नहीं कर रही है, बल्कि जवानों बाकी सामानों को ढोने के काम में भी जुटी है।
चीन की दुखती रग पर भारत ने रख दिया हाथ
सूत्रों के मुताबिक पूर्वी लद्दाख में एलएसी के पास बेहतर कनेक्टिविटी अब प्राथमिकता है। डरबुक और नयोमा सब डिविजनों समेत पूरा चांगथंग इलाका अब रोड इंफ्रास्ट्रक्चर के लिहाज से बहुत ही महत्वपूर्ण हो गया है। गलवान, चुशुल, श्योक, डेमचोक और चुमुर जैसे संवेदनशील इलाके डरबुक और नयोमा सब डिविजनों में ही आते हैं। क्योंकि, चीन ऐसा मुल्क है, जिसपर भरोसा करने का जोखिम भारत अब कभी भी नहीं ले सकता। ये बात सही है कि भारत के कड़े तेवरों और भारत के साथ अंतरराष्ट्रीय एकजुटता देखकर चीन अभी गलवान में पीछे हटने को तैयार हो गया है, लेकिन वह अगला कुराफात क्या करेगा, इसका अंदाजा भी लगाना मुश्किल है। इसलिए भारत अब उस मिशन को धीमा नहीं पड़ने देगा, जो वह पिछले तीन-चार वर्षों से शुरू कर चुका है। यही वजह है कि इतने बवाल के बावजूद भारत ने एलएसी पर जारी अपने इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के काम को धीमा नहीं पड़ने दिया है और चीन की बौखलाहट की सबसे बड़ी वजह भी यही है।
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