करमापा ने भारत को गच्चा देकर डोमिनिकन गणराज्य की नागरिकता, अब पहुंचे जर्मनी
शिमला। दलाई लामा के बाद तिब्बतियों के दूसरे बड़े धर्मगुरु 17 वें करमापा उग्येन त्रिनले दोरजे को लेकर मामला एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है। करमापा भारत सरकार को दिए भरोसे के बाद भी अमेरिका से वापस नहीं लौटे हैं जबकि उन्होंने हालांकि नवंबर माह के अंत में वापिस लौटने की बात कही थी। धर्मशाला के पास सिद्धबाड़ी में गयूतो तांत्रिक मठ में इन दिनों वीरानी है व कोई भी करमापा के मामले में मुंह खोलने को तैयार नहीं है। करमापा उग्येन त्रिनले दोरजे मई 2017 से अमेरिका में हैं। वह अब उन्होंने भारत सरकार की ओर से उन्हें वापस लाने की की जा रही कोशिशों के बीच कैरिबियन द्धीप डोमिनिकन गणराज्य की नागरिकता लेकर वहां का पासपोर्ट हासिल कर लिया है। करमापा के करीबी सूत्र बताते हैं कि करमापा की ओर से हालांकि भारतीय वीजा के लिये भी आवेदन किया गया लेकिन इस पर विदेश मंत्रालय ने फैसला नहीं लिया। लेकिन जिस तरीके से करमापा ने डोमिनिकन गणराज्य की नागरिकता हासिल की, उससे भारतीय एजेंसियां व निर्वासित तिब्बत सरकार हैरान है।
करमापा ने मानी थी यह बात
कुछ दिन पहले करमापा ने अमेरिका में एक साक्षात्कार में माना था कि उन्होंने डोमिनिकन गणराज्य का पासपोर्ट हासिल कर लिया है। इस पासपोर्ट के सहारे करमापा अब कामनवेल्थ देशों में आसानी से यात्रा कर सकते हैं। इसी के चलते करमापा इस समय जर्मन प्रवास पर हैं। इस बीच करमापा के प्रतिनिधि भारतीय अथारिटी को करमापा की वापिसी को लेकर बने गतिरोध को हल करने में जुटे हैं। ताकि करमापा की जल्द भारत वापिसी हो सके। विदेश मंत्रालय के अधिकरियों ने अमेरिका जाकर करमापा से मुलाकात कर उनका मान मन्नौवल करने की कोशिश भी की है। पिछले वर्ष करमापा धर्मशाला से यूरोप जाने के लिये रवाना हुए थे।
यूरोप के बहाने गए थे भारत से बाहर
उन्हें तीन महीने तक यूरोपियन देशों में धार्मिक कार्यक्रमों में भाग लेना था। उनकी ओर से कहा गया कि था वह अमेरिका में अपनी बीमारी का इलाज करवा रहे हैं। पहले भारत की आरे से उन्हें वापस लाने की कोशिशं हुईं लेकिन करमापा इस पर टालमटोल का रवैया अपनाया। अब करमापा ने भारत से वीजा का आवेदन किया है तो भारत ने भी अब अपना रवैया बदल लिया है। जिससे मामला पेचीदा हो गया है। उधर करमापा कागयू संप्रदाय के वरिष्ठ लामा भी करमापा के लंबे समय तक अपने मठ से दूर अमेरिका में रहने को लेकर नाखुश बताये जा रहे हैं। तिब्बती लामा तो यहां तक कह रहे हैं कि करमापा की बहन इसमें गड़बड़ कर रही है। जिसके चलते ही करमापा भारत नहीं नहीं लौट रहे। तिब्बती लामाओं की दलील है कि करमापा की गद्दी भारत के सिक्किम में रूमटेक मठ में है। लिहाजा वह भारत से बाहर रह कर उस गद्दी के सही वारिस नहीं बन सकते।
पूरी थी भारत आने की उम्मीद
इस बात की पूरी उम्मीद थी कि तिब्बत के धार्मिक मामलों पर धर्मशाला में आयोजित होने वाली अहम बैठक में हिस्सा लेने करमापा जरूर पहुंचेगे। इसका आयोजन 29 नवंबर से एक दिसंबर के बीच दलाई लामा की मौजूदगी में होना था। लेकिन इस बैठक में तिब्बतीयों के नियांगपा संप्रदाय के सातवें प्रमुख लामा गेत्से रिनपोचे के निधन की वजह से स्थगित करना पड़ा। तिब्बती बौद्ध धर्म में करमा कागयू संप्रदाय के प्रमुख व ब्लैक हेट के वारिस करमापा उगयेन त्रिनले दोरजे 26 जून 1985 को पूर्वी तिब्बत में पैदा हुये। उन्हें 16 वें करमापा के अवतार के रूप में दलाई लामा ने जून 1992 में मान्यता दी।
क्या है पूरा मामला
तिब्बत के ही दूसरे धार्मिक नेता शमार रिनपोचे ने उन्हें करमापा का अवतार मानने से मना कर दिया था। तिब्बतीयों का पुर्नवतार में विश्वास रहा है। शमार रिनपोचे ने चीन की ओर से समर्थित थाई त्रिनले दोरजे को ही करमापा का 16वां अवतार बताया था। जो अब अपनी अलग जिंदगी जी रहे हैं। वर्तमान करमापा उगयेन त्रिनले दोरजे तिब्बत की एक मोनेस्टरी से 28 दिसंबर 1999 को भाग कर भारत आये थे। उन्हें धर्मशाला में पांच जनवरी 2000 को शरण मिली थी। लेकिन तिब्बत से चीन की सेना से नजर चुराकर 1100 किलोमीटर की पैदल लंबी यात्रा के बाद उनका भारत पहुंचना आज भी कई सवाल खड़े करता है। बताया जाता है कि ताई सीतू रिनपोचे ने करमापा के चीन से भागने में मदद की वह चाहते थो कि करमापा सिक्किम में करमापा की पंरपरागत गद्दी व बलैक हैट को संभालें । लेकिन भारत सरकार ने उनकी यह बात नहीं मानी।