जिन 11 सीटों के लिए माया ने अखिलेश को दुतकारा, उनमें से केवल एक है बसपा के पास
नई दिल्ली- बसपा (BSP) सुप्रीमो मायावती (Mayawati) के लिए लखनऊ से दिल्ली तक के पॉलिटिकल सर्किल में एक बात खूब कही जाती है- राजनीति में वो कभी घाटे का सौदा नहीं करतीं। कई बार उनके अगले पॉलिटिकल स्टैंड के बारे में समझने में राजनीति के बड़े-बड़े धुरंधर भी गच्चा खा जाते हैं। इसका सबसे ताजा प्रमाण अभी का लोकसभा का चुनाव है, जिसमें सपा (SP) और आरएलडी (RLD) से गठबंधन की बदौलत वो शून्य से 10 सीटें तक जीतने में कामयाब हो गईं और उनके सहयोगियों को सिर्फ नुकसान ही हुआ। अब उनके यूपी (Uttar Pradesh News) की 11 विधानसभा सीटों पर अकेले उपचुनाव लड़ने के फैसले पर चर्चा हो रही है। आइए समझने की कोशश करते हैं इसके लिए मायावती (Mayawati) ने अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) को क्यों दिया है झटका और इन 11 सीटों पर कितनी सीटों पर बसपा अपने दम पर मजबूत है?
मायावती के लिए कैसे हैं सियासी हालात?
साढ़े तीन दशक में बीएसपी (BSP) का सबसे बढ़िया प्रदर्शन 2007 के यूपी (Uttar Pradesh) विधानसभा चुनाव में हुआ था। तब मायावती (Mayawati) ने न केवल अपने दम पर सरकार बनाई थी, बल्कि उनकी पार्टी को 30.43% वोट भी मिले थे। उसके बाद के तीन विधानसभा और दो लोकसभा चुनाव में पार्टी का ग्राफ लगातार नीचे ही गिरा है। 2009 के लोकसभा चुनाव में पार्टी के 20 सांसद जीते थे, लेकिन वोट शेयर उससे पहले के चुनाव से घटकर 27.42 फीसदी रह गया था। 2014 के लोकसभा चुनाव में तो पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई। धीरे-धीरे सवर्ण और ओबीसी नेता बीएसपी (BSP) छोड़कर निकलने लगे और उनकी सोशल इंजीनियरिंग फेल होती चली गई। ऐसी स्थिति में उनकी पार्टी ने हालिया लोकसभा में 10 सीटें भले ही जीती हो, लेकिन अकेले अपने दम पर 11 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में कुछ कर पाना आसान नहीं होने वाला।
11 सीटों पर अभी बसपा का क्या हाल है?
यूपी की जिन 11 सीटों पर उपचुनाव होने हैं उनमें से सिर्फ एक जलालपुर में बीएसपी (BSP) 37 फीसदी वोटों से जीती थी। इस लोकसभा में भी पार्टी को वहां से बढ़त मिली है। 2017 में इसके अलावा तीन सीटों पर वह दूसरे नंबर पर रही थी। इनमें से बल्हा में उसके प्रत्याशी को 57,519 (28%), टूंडला में 62,514 (25%) और इगलास में 53,200 (22%) वोट मिले थे। यानी इन चारों सीटों पर ही बीएसपी (BSP) दूसरी पार्टियों को टक्कर दे सकती है। जबकि, रामपुर सीट पर समाजवादी पार्टी ने कब्जा किया था और बाकी सभी 9 सीटों पर बीजेपी ने कब्जा किया था।
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एंटी-बीजेपी वोटरों में फैलेगा भ्रम
2019 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी-एसपी और आरएलडी (BSP-SP-RLD) मिलकर लड़े तो उन्हें 38.89 फीसदी वोट मिले। जबकि, बीजेपी को इनसे कहीं ज्यादा यानी 49.56 प्रतिशत वोट मिला। ऐसे में अगर ये सारे दल फिर से अलग-अलग होकर लड़ते हैं, तो अंजाम का अंदाजा लगाना मुश्लिक नहीं है। ऊपर से एंटी-बीजेपी वोटरों खासकर मुसलमानों में जो भ्रम की स्थिति पैदा होगी सो अलग। यही नहीं बीजेपी के ताजा वोट शेयर को देखकर यह भी साफ हो चुका है कि ओबीसी और दलितों के एक बड़े वर्ग ने भी बीजेपी की ओर रुख कर लिया है। बीएसपी चीफ को भी इन सभी बातों का अहसास है, इसलिए उन्होंने अपनी ओर से गठबंधन पर पूरा ब्रेक नहीं लगाया है। वह अभी यह परखना चाहती हैं कि अगर उनके कोर वोटर भी बीजेपी में गए हैं, तो उनकी तादाद कितनी है? जब उन्हें पूरी तसल्ली हो जाएगी कि बदले सियासी माहौल में वो कितने पानी में हैं, तो एकबार फिर से गठबंधन में जाने की पहल कर सकती हैं।
लोकसभा और विधानसभा चुनावों में BSP का प्रदर्शन
साल .........जीती/लड़ी...........वोट शेयर (%)
2019.........10/38...............19.26
2017.........19/403..............22.23
2014.........00/80................19.77
2012.........80/403...............25.91
2009.........20/80.................27.42
2007.........206/403.............30.43
नोट-2009, 2014 और 2019 में लोकसभा और बाकी विधानसभा चुनाव के नतीजे
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