102 साल के स्वतंत्रता सेनानी की मोदी को खुली चुनौती
101 साल के स्वतंत्रता सेनानी एचएस डोरेस्वामी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 9 महीनों की मोहलत देते हुए अपना ध्यान देश के सामने खड़े आर्थिक संकट पर लगाने को कहा है. डोरेस्वामी ने ये भी कहा है कि अगर पीएम मोदी ऐसा नहीं करते हैं तो वह नागरिक असहयोग आंदोलन की शुरुआत करेंगे. एचएस डोरेस्वामी को बीते दिनों सावरकर और पीएम मोदी की आलोचना
101 साल के स्वतंत्रता सेनानी एचएस डोरेस्वामी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 9 महीनों की मोहलत देते हुए अपना ध्यान देश के सामने खड़े आर्थिक संकट पर लगाने को कहा है.
डोरेस्वामी ने ये भी कहा है कि अगर पीएम मोदी ऐसा नहीं करते हैं तो वह नागरिक असहयोग आंदोलन की शुरुआत करेंगे.
एचएस डोरेस्वामी को बीते दिनों सावरकर और पीएम मोदी की आलोचना करने की वजह से बीजेपी नेताओं की ओर से आलोचना का सामना करना पड़ा था.
बीजेपी के नेताओं ने इन्हें फ़र्ज़ी स्वतंत्रता सेनानी भी कहा था.
फ़र्ज़ी स्वतंत्रता सेनानी वाली बात
डोरेस्वामी ने बीबीसी से बात करते हुए इस विवाद पर अपनी राय रखी.
डोरेस्वामी कहते हैं, "जब मैंने सुना कि वे लोग मेरे बारे में ऐसा कह रहे हैं तो मुझे काफ़ी हंसी आई. इसलिए अब मैंने अपना जेल सर्टिफ़िकेट दे दिया है. उनका (बीजेपी विधायक बासनगौडा पाटिल यटनाल) ये कहना बेवक़ूफ़ी थी. लेकिन इससे भी अजीबोग़रीब हरकत उनकी थी जिन्होंने उनका विरोध करने की जगह समर्थन किया."
लेकिन डोरेस्वामी इस मुद्दे से आगे बढ़कर एनआरसी और सीएए पर अपना मत रखते हुए नज़र रहते हैं.
पीएम मोदी और उनकी सरकार की ओर से लाए गए नए नागरिकता क़ानून और एनपीआर की जनगणना प्रक्रिया से जोड़ने और एनआरसी लाने के लिए जारी कोशिशों पर टिप्पणी की.
उन्होंने कहा, "देश एक संकट से गुज़र रहा है. आर्थिक संकट के साथ साथ बेरोज़गारी संकट और मूल्य वृद्धि को लेकर संघर्ष जारी है. कई ऐसे सवाल हैं जो सरकार को घेरे हुए हैं. उनका (मोदी) का काम इन समस्याओं को सुलझाना था. मुझे लगता है कि आप (मोदी) इस बात से डरते हैं कि इन मद्दों पर चुप्पी और समाधान निकालने की दिशा में नाकाफ़ी काम की वजह से लोग उनको घेरेंगे."
अगले महीने 102 साल पूरे करने वाले गांधीवादी विचारों के डोरेस्वामी बीते साल दिसंबर महीने से सीएए विरोधी प्रदर्शनों में आगे रहे हैं.
असहयोग आंदोलन
शुक्रवार को वह सीएए क़ानून को रद्द किए जाने के लिए तीन दिवसीय सत्याग्रह में भाग लेकर नागरिक असहयोग आंदोलन की तैयारियां शुरू करेंगे.
वे कहते हैं, "अगर मोदी जी इन समस्याओं का निराकरण नहीं करते हैं. और हमें ग़रीबी निवारण और सीएए क़ानून को रद्द किए जाने की माँग पर नतीजे नहीं मिले तो मैं हालात का जायज़ा लेकर आपको जन-विरोधी कहूंगा. मैं आपके साथ सहयोग नहीं करना चाहता हूं. मैं हर महीने लोगों को जुटाऊंगा और देखिएगा कि हम जनवरी में एक फ़ैसला लेंगे."
किस पर पड़ेगा इस सब का असर
डोरेस्वामी के मुताबिक़, सीएए, एनपीआर और एनआरसी हिंदुओं, आदिवासियों और दलितों समेत जिसके पास दस्तावेज़ नहीं होंगे, उनके लिए नुक़सानदायक साबित होगा.
इसके बाद जब डोरेस्वामी से सवाल किया गया कि क्या लोगों को जनगणना अधिकारी के जनगणना के लिए घर आने पर एनपीआर से जुड़े पाँच सवालों के जवाब नहीं देने चाहिए?
इस सवाल के जवाब में डोरेस्वामी कहते हैं, "सही कहा जाए तो यही बात मुझे चिंतित करती है. मैं किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा हूँ. लोगों के बीच एक मत ये है कि वे पाँच सवालों के जवाब नहीं देंगे. लोग कहेंगे कि उनके पास काग़ज़ात नहीं हैं. जनगणना अधिकारी को ये बात लिखने को कही जाएगी. इसके बाद जनगणना अधिकारी कहेगा कि ये पाँच सवाल अहम हैं और वे कहें कि उनके पास काग़ज़ात नहीं हैं या वे जवाब नहीं देना चाहते. इसके बाद वे ये लिखकर चले जाएंगे."
"इसके अगले दिन जब लिस्ट प्रकाशित हो जाएगी तो सरकार ऐसे सभी लोगों को 15 दिनों के अंदर काग़ज़ात जमा कराने के नोटिस भेज सकती है. ऐसे में अगर मान लिया जाए कि वे ऐसा भी नहीं करते हैं तो ये उनके (पीएम मोदी) लिए ख़ुशख़बरी होगी. क्योंकि जब काग़ज़ात नहीं पहुंचेंगे तो उनके नाम हटा दिए जाएंगे. और ये एक ख़तरनाक स्थिति होगी."
इसके बाद जब उनसे पूछा गया कि क्या वे ये कह रहे हैं कि लोगों को पाँच सवालों के जवाब देने चाहिए?
इस पर डोरेस्वामी कहते हैं, "इस समस्या का समाधान 1 अप्रैल से पहले निकाला जाना चाहिए. मेरे पास अब तक कोई समाधान नहीं है. मैं ये कहना चाहता हूं कि ऐसी स्थिति में उन सभी मतदाताओं का नाम हट जाएगा जिन्हें सरकार नहीं चाहती है. इस पर फ़ैसला तत्काल होना चाहिए कि ऐसी स्थिति में मतदाता का व्यवहार कैसा होना चाहिए क्योंकि इसके बाद उन्हें जनगणना का सामना करना पड़ेगा."
सावरकर पर रुख़
डोरेस्वामी सावरकर अपने रुख़ को लेकर भी चर्चा में आ चुके हैं.
लेकिन विवाद भड़कने के बाद भी वे सावरकर को लेकर अपने रुख़ को बने हुए हैं.
वे कहते हैं, "सावरकर पर मैं जो कुछ भी कह रहा हूँ, वो वापस लिए जाने वाली बात नहीं है. वह एक महान योद्धा थे. जब वह प्रेस से बात करने के लिए बेंगलुरु आए थे तो उन्होंने हमें बताया था कि उन्हें किस तरह प्रताड़ित किया गया. उनकी कलाई में एक गरम लोहे का सरिया रखकर दबा दिया गया. एक ऐसा व्यक्ति जिसने अंडमान में इतनी प्रताड़नाओं का सामना किया, वह हमारे दुश्मन ब्रिटेन के सामने घुटने टेककर ये कैसे कह सकता है कि वह स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए माफ़ी चाहते हैं. ये अजीब बात है."
"मैं आज भी जानना कहता हूँ कि उन्होंने अंग्रेज़ों के सामने घुटने क्यों टेके? उन्होंने अपने अंदर विश्वास क्यों खो दिया? उन्होंने उन लोगों के सामने आत्मसमर्पण क्यों किया? मेरी माँग ये है कि इसकी जाँच की जानी चाहिए. किसी ने ये नहीं कहा है कि इतना साहसी व्यक्ति कायर कैसे हो गया? मुझे इस बात पर बड़ा आश्चर्य होता है कि वो इस नतीजे पर पहुंचते हुए क्या सोच रहे थे. मुझे नहीं लगता है कि वे प्रताड़नाओं से डरने वाले व्यक्ति थे. ये सब सच मुझे परेशान करता है, मैं यही कह रहा हूँ और कुछ नहीं."
इतनी उम्र में कैसे करते हैं ये सब?
डोरेस्वामी से जब ये सवाल किया गया कि इतनी ज़्यादा उम्र में इतना सब कुछ करने की प्रेरणा उन्हें कहां से मिलती है.
इस सवाल के जवाब में वे कहते हैं, "मुझे अपने देश में रुचि है. गांधी जी ग़रीबी ख़त्म करना चाहते थे. मुझे लगता है कि ये हर सरकार की ग़लती है और इसमें कांग्रेस पार्टी भी शामिल है.
जब इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाई तो मैंने उन्हें पत्र लिखकर कहा कि ब्रिटिश सरकार का दिल आपसे बड़ा था. अगर आप ये सब करती रहीं तो मैं गांव-गांव जाकर लोगों को बताउंगा कि इंदिरा गांधी एक तानाशाह हैं. इसके बाद मुझे जेल में डाल दिया गया."