मोदी सरकार 2.0 के 100 दिन: पांच बड़े फैसले और क्या रहीं बड़ी चुनौतियां
नई दिल्ली- मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के पहले 100 दिनों में कई ऐतिहासिक फैसले लिए हैं, लेकिन साथ ही साथ उसे कई सारी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है, जिसमें सबसे अहम है बिगड़ती अर्थव्यवस्था। मोदी सरकार के इस 100 दिनों के सभी बड़े कामों की तो हम चर्चा करेंगे ही, इसके अलावा उन बातों का भी विश्लेषण करने की कोशिश करेंगे जिसने सरकार को परेशानी में डाल रखा है और जिससे निपटना आसान नहीं लग रहा है। इसमें देश में बड़ी मंदी की आहट, 6 साल में सबसे निचले स्तर पर जीडीपी और सरकार की ओर से बार-बार की बूस्टर डोज के बावजूद इकोनॉमी की ओर से उस अनुपात में रेस्पॉन्स नहीं मिलना भी शामिल है।
आर्टिकल 370
इस बात में कोई दो राय नहीं कि जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 के विवादित प्रावधानों को हटाना और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करना स्वतंत्र भारत के इतिहास में एक बहुत ही बड़ा फैसला माना जा सकता है। यह मुद्दा बीजेपी के संकल्प पत्र में प्रमुखता से शामिल किया गया था और जितनी तेजी से सरकार ने इसपर अमल करके दिखा दिया, उसके बारे में सरकार के अंदर बैठे बहुत से लोगों को भी भनक नहीं लगी। यही वजह है कि सरकार के 100 दिन पर आयोजित सभी कार्यक्रमों में मोदी के मंत्री और बीजेपी के तमाम ने जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 और आर्टिकल 35ए हटाने को पहले 100 दिनों की सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में पेश कर रहे हैं।
ट्रिपल तलाक
मोदी सरकार अपनी दूसरी कामयाबी के तौर पर ट्रिपल तलाक बिल को संसद से पास कराकर कानून बनाने को मान रही है। यह एक ऐसा मसला था, जिसे पिछली सरकार में वह कई प्रयासों के बावजूद राज्यसभा में बहुमत के अभाव में पास नहीं करा सकी थी। लेकिन, इस दफे सरकार बनने के बाद संसद के पहले सत्र में ही उसने तीन तलाक बिलों को पास करा लिया, जिसे पास करना कुछ महीने पहले तक असंभव लग रहा था। तीन तलाक की कुप्रथा हटाने को लेकर पीएम मोदी पिछले सरकार में ही अड़े हुए थे, लेकिन राज्यसभा में बहुमत के अभाव में वे अध्यादेशों के रास्ते इसे गैर-कानूनी बनाए रहे। लेकिन, इसबार अपने 100 दिन के कार्यकाल में ही उन्होंने इसपर संसद से कानून बनाने में सफलता प्राप्त कर ली और सैकड़ों वर्ष पुरानी यह कुप्रथा भारत से कानूनी तौर विलुप्त कर दी गई।
आतंकवाद-विरोधी कानून
मोदी सरकार की तीसरी कामयाबी के तौर पर गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम संशोधन ऐक्ट, 2019 लाना भी शामिल है। इस कानून के तहत केंद्र सरकार को अधिकार मिल गया है कि वह किसी व्यक्ति विशेष को आतंकवादी घोषित कर सकती है और उसकी संपत्तियां भी जब्त कर सकती है। इस कानून को पीएम मोदी के आतंकवाद के प्रति जीरो-टॉलरेंस की उनकी मजबूत नीति के तौर पर देखा जा रहा है। इस कानून के बनने के बाद ही मुंबई हमलों के सरगना और लश्कर ए तैयबा चीफ हाफिज सईद, जैश-ए-मोहम्मद के चीफ मौलाना मसूद अजहर, मुंबई हमलों के प्रमुख साजिशकर्ता और लश्कर कमांडर जकीउर रहमान लखवी और 93वे के मुंबई धमाकों के मास्टरमाइंड दाऊद इब्राहिम को आतंकवादी करार दिया गया है। ये सारे आतंकी पाकिस्तान में बैठे हैं। अलबत्ता, मोदी सरकार के बाकी फैसलों की तरह ही विपक्ष ने आतंकवाद विरोधी नए कानून को भी बेरहम और गलत करार दिया है।
पीएम मोदी के 7 विदेश दौरे
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले 100 दिनों में पीएम मोदी के खास विदेश दौरों को भी शामिल किया जा सकता है। खासकर जम्मू-कश्मीर पर केंद्र सरकार के फैसले के बाद कूटनीतिक दृष्टिकोण से इसके मायने और बदल गए हैं। 30 मई को शपथ लेने के बाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अबतक 7 देशों का दौरा किया है। नेबरहूड फर्स्ट पॉलिसी के तहत उन्होंने मालदीव, श्रीलंका और भूटान की यात्रा की तो मौजूदा अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों के मद्देनजर यूएई, बहरीन, फ्रांस और सबसे अंत में रूस जैसे बड़े देशों के दौरे भी किए हैं। इसमें फ्रांस में जी-7 और रूस में ईस्टर्न इकोनॉमिक फोरम (ईईएफ) में उनकी कई ग्लोबल लीडर से द्विपक्षीय मुलाकातें भी हुई हैं।
बैंकों का विलय
मोदी सरकार ने हाल ही में एक बहुत बड़ा फैसला सरकारी बैंकों के विलय करके लिया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के एनपीए को नियंत्रित करने के लिए 10 सरकारी बैंकों का 4 बड़े बैंकों के साथ विलय करने की घोषणा की है। माना जा रहा है कि इससे बैंकों की मुश्किलें कम होंगी और उपभोक्ताओं के लिए सुविधाएं बढ़ेंगी।
पहले 100 दिन की बड़ी चुनौतियां
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले 100 दिन में सबसे बड़ी चुनौती अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में देखने को मिल रही है। बैंकों के विलय का इतना बड़ा फैसला भी इसी समस्या से जुड़ा हुआ है। सरकार के लिए सबसे बड़ी चेतावनी अर्थव्यस्था की गिरती विकास दर से देखने को मिली है, जहां चालू वित्त वर्ष में जीडीपी की विकास दर सिर्फ 5% दर्ज किया गया है जो 2013 के बाद 6 साल में सबसे कम है। जबकि, इसी साल की पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था की विकास दर 8% दर्ज की गई थी। इसके बाद देश में एक बहुत बड़ी मंदी की आशंका जताई जा रही है। उपभोक्ताओं की ओर से मांगें घटने के चलते मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के बेपटरी होने की आशंका है और निवेश पर भी बुरा असर पड़ता दिख रहा है। इन संकेतों को हाल में कई बार सेंसेक्स के ऐतिहासिक गोते लगाने से भी जोड़कर देखा जा सकता है। आरबीआई की ओर से मौजूदा वित्त वर्ष में सरकार के लिए 1.76 लाख करोड़ रुपये जारी करना और वित्त मंत्री की ओर से आने वाले दिनों में कुछ और सेक्टर्स के लिए और राहत पैकेज की घोषणा की बात कहना भी इन्हीं चुनौतियों में शामिल है।