नई दिल्ली। उसकी किताबें किसी कोने में पड़ी धूल खा रही थीं, काश आज वो यहां होती और ये सब देखकर मुझे डांटती। वो कभी अपने स्कूल बैग और किताबों को इस तरह नहीं रखती थी। अस्पताल में भर्ती होने से पहले ही उसने अपने स्कूल का होमवर्क पूरा कर लिया था। शाम को घंटों तक खिड़की के पास बैठकर वो किताब पढ़ती रहती थी। लेकिन अब वक्त ने ऐसी करवट ली है कि ना तो वो है और ना ही उसकी खिलखिलाती हुई हंसी। मैं रोज़ उसका घर पर बिस्तर ठीक करता हूं कि पता नहीं कब वो घर लौट आए। इससे मुझे थोडी खुशी मिलती थी। विशाखा का छोटा भाई जब मुझसे सवाल पूछता है कि दीदी कब घर आएगी तो मैं उसका जवाब नहीं दे पाता हूं।
अब मुझमें इतनी ताकत नहीं बची है। हर रात वो सोने से मना कर देता है क्योंकि उसे अकेले सोने में डर लगता है। पूरे परिवार के साथ-साथ वो भी अपनी बहन का इंतज़ार कर रहा है। हम उसे रोज़ यही बोलते हैं कि सुबह उठते ही उसे उसकी बहन से मिलवाने ले जाएंगें। अब तो उसे भी पता चल गया है कि हम उससे झूठ बोलते हैं। वो भी अपनी बहन से मिलने के लिए बेचैन रहता है। अभी वो बहुत छोटा है और हम उसे सब सच नहीं बता सकते हैं। वो अपनी बहन को मशीन के सहारे जिंदा रहते हुए देख नहीं पाएगा और इतनी कम उम्र में ना जाने उसके दिल और दिमाग पर क्या असर पड़े।
विशाखा के माता-पिता कभी सोच भी नहीं सकते थे कि उसके स्कूल से एक दिन इस तरह फोन आएगा। लेकिन वो दिन कुछ अलग था। वो दिन विशाखा के माता-पिता के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं था जोकि सच का रूप ले चुका था। स्कूल के प्रशासन ने उन्हें जल्दी स्कूल आने को कहा। जब वो वहां पहुंचे तो विशाखा अधमरी हालत में थी और थकान के मारे बिस्तर पर लेटी हुई थी। उसका पूरा शरीर बुखार से तप रहा था।
डेंगू की वजह से उसे दो बार अस्पताल में भर्ती करवाया
बिना
कोई
देरी
किए
हम
तुरंत
उसे
अस्पताल
लेकर
गए।
पहले
भी
डेंगू
की
वजह
से
उसे
दो
बार
अस्पताल
में
भर्ती
करवाया
जा
चुका
था।
डेंगू
की
वजह
से
पहले
से
ही
उसकी
किडनी,
लिवर
और
फेफड़े
कमजोर
हो
चुके
थे।
अस्पताल
में
भर्ती
हुए
उसे
12
दिन
हो
चुके
हैं
और
अब
तो
ऐसा
लगता
है
कि
उस
नन्ही
सी
जान
को
ना
जाने
कितने
हफ्ते
और
महीने
यहीं
रहना
पड़ेगा।
उसे
मल्टीपल
ऑर्गन
फेल्योर
है।
उसकी
किडनी,
लिवर
और
फेफडे
पहले
ही
जवाब
दे
चुके
थे।
उसकी
हालत
को
देखते
हुए
पहले
दिन
से
ही
उसे
वेंटिलेटर
पर
रखा
गया
है।
मेडिकल
खर्चों
को
पूरा
करने
के
लिए
विशाखा
के
परिवार
ने
5
लाख
रुपए
उधार
लिए
थे।
उसके
पिता
आरटीओ
ऑफिस
में
एजेंट
हैं
और
महीने
में
सिर्फ
7
हज़ार
रुपए
ही
कमाते
हैं।
अब
उसका
परिवार
7
लाख
रुपए
जितनी
बड़ी
धनराशि
को
इकट्ठा
करने
में
लगा
हुआ
है।
विशाखा के पिता संजीव खुद को बहुत टूटा हुआ महसूस कर रहे हैं। उनकी दस साल की बच्ची जिंदगी और मौत के बीच झूल रही है। अब उसके परिवार के पास अपनी बच्ची के ईलाज के लिए जन सहयोग के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। आपकी छोटी सी भी मदद उनकी बहुत बड़ी सहायता कर सकती है।
अब विशाखा के पिता आपसे ये उम्मीद करते हैं कि आप उनकी बच्ची की जान बचाने के लिए थोड़ी ही सही आर्थिक मदद करेंगें। विशाखा के पिता का कहना है कि उनकी बच्ची को जिंदगी में दूसरा मौका मिलना ही चाहिए। अपने सभी पाठकों से मेरी तहे दिल से गुजारिश है कि वो लोग आगे आकर इस गरीब पिता की मदद करें। विशाखा ना सिर्फ संजीव की बेटी है बल्कि हम सभी की बेटी की तरह है। भगवान ना करे, कल को आपकी बेटी को ऐसा कुछ हो जाए तो आपके दिल पर क्या बीतेगी। आपके भी बच्चे होंगें और उन पर एक आंच भी आ जाती है तो आपका कलेजा चीख उठता है तो फिर जरा सोचिए विशाखा के पिता पर क्या गुजर रही होगी।
मेरी आपसे विनती है कि आप सभी अपनी सामर्थ्यानुसार विशाखा के ईलाज के लिए धन राशि का दान कर सहयोग करें। आपकी एक छोटी सी मदद भी उस नन्ही सी जान को उसकी जिंदगी के करीब लेकर जा सकती है। पुण्य कमाने के लिए आप तीर्थ जाते हैं, दान देते हैं और मंदिरों के चक्कर लगाते हैं लेकिन असल में पुण्य तो किसी जरूरतमंद की मदद करने और किसी मरते हुए इंसान की जान बचाने से मिलता है। आज विशाखा के रूप में आपको ये मौका मिला है तो इसे अपने हाथ से जाने ना दें।
विशाखा को इस मुश्किल घड़ी से बचाने के लिए आप सभी अपनी तरफ से जितना हो सके मदद करें। ना सिर्फ पैसों से बल्कि उसकी सलामती के लिए भगवान से दुआ भी मांगें क्योंकि जब दवा असर करना बंद कर देती है तो दुआ ही काम आती है।
दस साल की इस बच्ची की जान बचाकर कहीं ना कहीं आपके दिल को भी खुशी मिलेगी। आखिरकार हम सभी इंसान हैं और इंसान ही इंसान के काम नहीं आएगा तो और कौन आएगा। याद रखिए, भगवान भी उसी की मदद करते हैं जो इंसानियत दिखाता है और दूसरों की मदद के लिए तैयार रहता है।
माता-पिता होने के नाते आप समझ ही सकते हैं कि विशाखा के पिता और मां के दिल पर क्या बीत रही होगी। अपनी आंखों के सामने पैसों की कमी की वजह से अपनी बच्ची को दम तोड़ते हुए देखना शायद इस दुनिया का सबसे बड़ा दुख होगा। आप और हम तो इस दुख की पीड़ा को महसूस भी नहीं कर सकते हैं।
विशाखा को बचाने में हमारी मदद करें।वो हमारी उम्मीद और खुशी है। किसी भी बच्चे को वेंटिलेटर की नहीं बल्कि खेलकूद और किताबों की जरूरत होती है। उसके इलाज के लिए धनराशि जुटाने में हमारी मदद करें