कोरोना से सुरक्षा के 10 ऐसे दावे, जिनके पोल खुले तो लोग भौचक्के रह गए?
बेंगलुरू। कोरोनावायरस महामारी से सुरक्षा, बचाव और इलाज के बारे में पिछले 4-6 महीनों में कई दावे किए गए, लेकिन उनमें से कोई भी दावे जमीन पर टिक नहीं पाए। कोरोना से सुरक्षा के लिए सबसे सुरक्षित माने जा रहे एन-95 मास्क का उदाहरण ताजा है, जिसे सरकार ने सबसे सुरक्षित हथियार के रूप में प्रचारित किया, लेकिन अभी सरकार ने एन-95 मास्क हो असुरक्षित करार देकर उन लोगों को भौचक्का कर दिया, जिन्होंने एन-95 मास्क के लिए 500 से 1500 रुपए चुकाए थे।
ऐसे ही कई दावे कोरोना से इलाज को लेकर भी किए गए, लेकिन हकीकत में इलाज के नाम पर अभी तक सारे मिथक ही साबित हुए हैं। इनमें ऐलोपैथिक, आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक दवाओं की हकीकत सामने आ चुकी हैं, जो कोरोना संक्रमित मरीज को स्वस्थ होने में एक सहायक दवा के रूप तक ही सीमित रहीं।
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क्योंकि स्वघोषित कोई भी दवा कोरोना संक्रमण से मरीजों को बाहर निकालने में अक्षम रही हैं, वे केवल मरीजों के लक्षणों को नियंत्रित करने तक सीमित थी, जिन्हें जीवन रक्षक उपाय जरूर कहा जा सकता है, लेकिन इलाज बिल्कुल नहीं, जैसा वैक्सीन को लेकर किया जा सकता है।
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हाइड्रोक्लोरोक्वीन, रेमडेसिवीर और डेक्सामेथासोन को बताया गया रामबाण
कोरोना संक्रमित मरीजों के लिए संजीवनी करार दी गई ऐलापैथिक दवा हाइड्रोक्लोरोक्वीन, रेमडेसिवीर और डेक्सामेथासोन ने खूब सुर्खियां बटोरीं और इसको लेकर खूब दावे भी किए गए। मलेरिया रोधी दवा हाइड्रोक्लोरोक्वीन को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बयानों को कौन भूल सकता है और रामबाण तक करार दिया जा चुका क्लोरोक्वीन, रेमडेसिवीर और डेक्सामेथासोन अंततः एक सप्लीमेंट्री दवा बनकर किनारे लग गए।
कोरोनिल नामक आयुर्वेदिक दवा को लेकर भी ऐसा ही दावा किया गया
योगगुरू बाबा रामदेव द्वारा बेहद ही तामझाम के साथ लांच किए गए कोरोनिल नामक आयुर्वेदिक दवा को लेकर भी ऐसा ही दावा किया गया कि यह रामबाण साबित होगा, लेकिन कोरोनिल भी सप्लीमेट्री यानी सहायक दवा साबित हुई। दवा की हकीकत को लेकर विवाद भी खूब हुआ और आयुष विभाग ने नोटिस देकर पतंजलि फार्मेसी से जवाब मांगा। अंततः कोरोनिल को एक सहायक दवा के रुप में बेंचने की मान्यता मिली, जिसमें गिलोय, अश्वगंधा और अतीश को रोग प्रतिरोधक के रूप में पहले से ही जाना जाता है। ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है कि CORONIL कोरोना को NIL (खत्म) कर देगा।
होम्योपैथी की दवा आर्सेनिक एलबम 30 को कोरोना का काल कहा गया
यही हाल होम्योपैथी की दवा आर्सेनिक एलबम 30 दवा को लेकर था, जिसको रामबाण की तरह प्रचारित किया गया, लेकिन यह भी भ्रम जल्द दूर हो गया, क्योंकि उपरोक्त सभी ऐलोपैथिक, आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक दवाओं का निचोड़ कोरोनावायरस पर निंयत्रण तक ही सीमित था, इनमें से किसी भी दवा का रामबाण बनने जैसे गुण नहीं थे, जैसा कि प्रचारित किया जा रहा था। इससे पहले, थूजा, इग्नेशिया, आर्सेनिक अल्ब और न्यूमोकोकिनम के कॉम्बिनेशन को जादुई बताया गया था।
N-95 मास्क को सबसे सुरक्षित मास्क के रूप में प्रचारित किया गया
कोरोनावायरस से सुरक्षा के लिए लोगों को मास्क लगाकर ही घर से बाहर निकलने के आदेश दिए गए, जिसमें N-95 मास्क को संक्रमण से सबसे सुरक्षित मास्क के तमगे से नवाजा गया, लेकिन अब N95 मास्क को उसके वॉल्व की वजह से असुरक्षित करार दे दिया गया हैं। सरकार का अब कहना है कि वॉल्व वाले एन-95 मास्क सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकते हैं। केंद्र सरकार ने बाकायदा इसको लेकर सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को चिट्ठी लिखी है, जिसमें चेतावनी जारी करते हुए कहा गया है कि N-95 महामारी को रोकने के लिए किए जा रहे प्रयासों के ‘विपरीत' है।
प्लाजा थैरेपी को गेमचेंजर कहा गया और 100 फीसदी इलाज का दावा किया
प्लाजा थैरेपी कोई पहला नहीं था, जिसको लेकर ऐसा दावा किया गया। इससे पहले हाइड्रोक्लोरोक्वीन, रेमडिसिवर जैसे कईयों को रामबाण की तरह पेश किया गया, लेकिन कोरोना से बचाव में सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क ज्यादा प्रभावी कदम आज भी बने हुए हैं। प्लाज़्मा थैरेपी में कोरोना से ठीक हो चुके एक व्यक्ति के शरीर से निकाले गए खून से अन्य चार अन्य लोगों का इलाज किया जाता है। प्लाज्मा थेरेपी इस धारणा पर काम करता है कि जो मरीज उबर चुके हैं उनके शरीर में वायरस के संक्रमण को बेअसर करने वाले प्रतिरोधी एंटीबॉडीज विकसित हो जाती हैं। सच्चाई यह है कि डाक्टर आज भी रोग प्रतिरोधक क्षमता की मजबूती को आधार बनाकर मरीजों को ठीक कर पा रहे हैं।
एमएमआर वैक्सीन को कोरोना किलर बताया गया और लोग टूट पड़े थे
एमएमआर वैक्सीन (खसरा, रुबेला और गलसुआ से बचाव), जो 9 महीने के नवजात शिशुओं को दी जाने वाली वैक्सीन है, उसे कोरोना के खिलाफ कवच के रूप में प्रचारित किया गया। यहां तक वैज्ञानिकों दावे तक कर डाले, जिससे एमएमआर वैक्सीन लेने की होड़ मच गई है। पुणे स्थित वैक्सीन बनाने वाली प्रमुख सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) को अंततः बयान जारी करके कहना पड़ा कि यह साबित करने के लिए अभी तक कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है कि खसरा-मम्प्स-रूबेला यानी MMR वैक्सीन कोरोनावायरस संक्रमित को सुरक्षा प्रदान करता है।
वैक्सीन लांच को लेकर पूरी दुनिया में थोक के भाव में किए जा रहे हैं दावे
कोरोना वैक्सीन को लेकर सबसे पहले इजरायल ने दावा किया कि उसने वैक्सीन बना ली है। इजरायल के रक्षा मंत्री नफ्ताली बेनेट ने दावा किया कि देश के मुख्य जैविक अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने एक एंटीबॉडी विकसित करने में महत्वपूर्ण सफलता हासिल कर ली है, लेकिन अभी तक धरातल पर वैक्सीन नहीं उतर पाया है। इसी तरह चीन और रूस ने भी दावा कर चुकी हैं, लेकिन बाजार में कब आएगा, इस पर चुप्पी लगी हुई है। इस क्रम में आस्ट्रेलिया, चीन, अमेरिका, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, ब्रिटेन और भारतीय भारत बॉयोटक कंपनी भी अंतिम चरण में हैं, लेकिन कोई दावा नहीं कर सकता है कि कब वैक्सीन बाजार में लोगों के लिए उपलब्ध होगा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन बोला, शायद ही कभी बन पाए कोरोना का टीका?
इस बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अधीर हो रहे लोगों के सांसें यह कहकर फुला दिया कि हो सकता है कि दुनिया में कोविड-19 का वैक्सीन ही न मिले। डब्ल्यूएचओ द्वारा ऐसी आशंका इसलिए जताई गई है कि एचआईवी और यहां तक कि डेंगू की भी वैक्सीन कई सालों के रिसर्च के बाद भी नहीं मिल पाई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन में कोविड-19 के विशेष दूत डॉ.डेविड नैबोरो ने कहा, 'यहां कुछ वायरस हैं, जिनकी कोई वैक्सीन नहीं है, हम यह नहीं मान कर चल सकते कि वैक्सीन आ जाएगी और अगर यह आती भी है, तो क्या सभी तरह की सुरक्षा और क्षमता के मानकों पर खरा उतरती है या नहीं?
दावा किया गया कि नोवल कोरोना वायरस गर्मी के मौसम खत्म हो जाएगा
कोरोना वायरस के खात्मे को लेकर रामबाण दवाओं के साथ-साथ भविष्यवाणियां भी कम रोचक नहीं थीं। दावा किया गया कि गर्मी का मौसम शुरु होते ही नोवल करोना वायरस का प्रभाव खत्म हो जाएगा और यह खुद ब खुद मर जाएगा, जबकि सच्चाई यह है कि गर्मी खत्म होने को है और कोरोना का तांडव डबल और ट्रिपल गति से लोगों को संक्रमित ही नहीं, जिंदगी भी छीन रही है। दुनिया में पौने दो करोड़ लोगों के संक्रमित होने और साढ़े 6 लाख से अधिक की मौत इसकी तस्दीक के लिए काफी हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार अभी तक मिले साक्ष्य बताते हैं कि कोविड-19 वायरस सभी मौसम और इलाकों में फैल सकता है, जिसका गरमी या सर्दी से लेना-देना नहीं है।
कोरोना के खात्मे को लेकर एक दर्जन से अधिक भविष्यवाणियां फेल हुईं
सिंगापुर यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी एंड डिजाइन के शोधकर्ताओं ने ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ड्रिवेन डाटा एनालिसिस के जरिए बाताया है कि दुनिया भर में कोरोनावायरस कब तक खत्म होगा। इस अध्ययन के अनुसार 8 दिसंबर 2020 को दुनिया भर में कोरोनोवायरस 100 फीसदी तक खत्म हो जाएगा। इसी तरह नीति आयोग ने भविष्यवाणी की थी कि देश में नए मामले 16 मई तक खत्म हो जाएगा। फिर भविष्यवाणी की गई कि 26 जुलाई तक भारत में कोरोना 100 फीसदी खत्म हो जाएगा, जोलुओ जियानक्सी 2020 की थ्योरी और कार्यप्रणाली पर आधारित हैं। आश्यर्य यह है कि अभी तक एक भी भविष्यवाणी सच साबित नहीं हो सकी हैं और 8 दिसंबर, 2020 की भविष्यवाणी के साथ भी यही होना तय है।