टैक्सी ड्राइवर, जिसने बेटी की स्कूल फीस के लिए अपनी थाली से रोटी कम कर दी
मुंबई। एक टैक्सी ड्राइवर जिसने अपनी थाली से रोटी कम कर दी, क्योंकि बेटी की फीस जमा करनी थी।
जानिए भारत के सर्जिकल स्ट्राइक पर शाहीद अफरीदी ने क्या कहा?
फेसबुक पर ह्यूमन ऑफ बॉम्बे नाम का पेज है। ये पेज मुंबई के किसी एक बंदे पर रोज एक स्टोरी करता है। ये पेज अपने बारे में लिखता है 'मुंबई के दिल की धड़कन'
इस पेज पर हर रोज किसी के बारे में एक स्टोरी होती है, 28 सितंबर को इस पेज पर एक टैक्सी ड्राइवर की कहानी है। इस ड्राइवर का नाम नहीं है, हां तस्वीर जरूर है। एक शख्स जिसकी मूंछे, दाढ़ी और सिर के बाल सफेद हो चुके हैं। जिंदगी का संघर्ष चेहरे से दिखता है।
ये शख्स जानता है कि तथाकथित बड़े लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं और ये भी कि वो आज किसी बड़े पद पर क्यों नहीं। वो जानते हैं कि पढ़ाई-लिखाई के जरिए ही हालात को बदला जा सकता है। वो अपनी बेटी को पढ़ाना चाहते हैं लेकिन गरीब आदमी की जिंदगी इतनी भी आसान नहीं होती।
इन्होंने अपनी बेटी की पढ़ाई के लिए क्या-क्या करना पड़ा, ये सब उन्होंने अपनी कहानी में बताया है। लीजिए उन्हीं के शब्दों में पढ़िए।
80 साल की मां के हाथ-पैर बांध बेटा करता था दरिंदगी, पत्नी देती थी साथ, बेटी बनाती थी वीडियो
मैं नहीं चाहता कि मेरी बेटी ये दिन देखे, जो आज मैं देख रहा हूं
''बहुत से लोगों को लगता है कि हम अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजते, उन्हें लगता है हमें अपने बच्चों को घर बैठाना अच्छा लगता है लेकिन वो नहीं जानते कि हमें कितनी तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। हमारे पेशे में कुछ हफ्ते काफी बेहतर कमाई हो जाती है तो कुछ हफ्ते काम एकदम ठंडा होता है।''
''एक वक्त ऐसा भी आया जब मैं अपनी 14 साल की बेटी की स्कूल फीस देने में असमर्थ था। मैं तो परिवार की रोज की जरूरतें ही पूरी नहीं कर पा रहा था। यहां तक कि खाने तक के लाले हो जाते थे। तब मुझे ख्याल आया कि क्यों ना उससे स्कूल को छोड़कर किसी सस्ते पब्लिक स्कूल में दाखिला लेने को कहूं।''
''तब क्या हुआ, मैंने कोशिश की कि उससे कहूं। मैं उसे ये ना कह सका। मैंने कुछ रुपये उधार लिए, मैने कम खाना शुरू कर दिया लेकिन वक्त पर उसकी फीस जमा की।''
सेना का हौंसला बढ़ाने को पठानकोट के घायल जवान ने भेजा संदेश
''मैं आठवीं में पढ़ता था, जब मेरी पढ़ाई छूट गई। मैं जानता हूं अनपढ़ रह जाने का दर्द क्या होता है। मुझे अपनी बच्ची को बेहतर शिक्षा देने लिए कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। मैं नहीं चाहता कि मेरी बेटी ये दिन देखे, जो आज मैं देख रहा हूं।''
''मैं जानता हूं कि मेरी बच्ची के गंदे जूते और पुराने कपड़े देखकर दूसरे बच्चे उसपर हंसते हैं लेकिन कभी उसने मुझसे शिकायत नहीं की, कोई फरमाईश नहीं की। मैं जानता हूं मैं उसकी सही परवरिश कर रहा हूं और मेरा यकीन है कि मेरी बच्ची एक दिन मेरा सिर को फख्र से ऊंचा करेगी।''