अभिनन्दन को सौंपने मात्र से शांतिदूत नहीं बन जाएंगे इमरान खान
नई दिल्ली। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने 'शांति के प्रतीक रूप में’ विंग कमांडर अभिनन्दन वर्धमान को भारत को सुपुर्द करने का एलान संसद में किया और उसी के अनुरूप अभिनन्द की भारत वापसी सम्भव हो पायी। इस कदम की अहमियत दो तरीकों से समझी जा सकती है-एक अगर ऐसा नहीं किया गया होता, तो क्या होता और दूसरा ऐसा होने के बाद क्या कुछ हो सकता है। इसी से जुड़ा सवाल ये है कि क्या इमरान ख़ान अपने इस 'उदार’ पहल से पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय छवि बदल पाएंगे? इसमें संदेह नहीं कि पुलवामा अटैक के बाद शोक और गुस्से में लहलहाते भारत की प्रतिक्रिया बालाकोट में एयरस्ट्राइक के रूप में सामने आया। भारतीय मन हल्का हुआ, मगर अगले ही दिन पाकिस्तानी एफ-16 के हमले को विफल करते हुए भारत ने मिग 21 खोया और एक पायलट भी पाकिस्तान के चंगुल में जा फंसा। इस घटना के बाद चिन्ता में डूब गया भारत। मगर, दो दिन के भीतर ही अभिनन्दन की भारत वापसी से देश में हर्ष का माहौल है।
इमरान के कदम से भारत में माहौल बदला
इमरान ख़ान ने अगर विंग कमांडर अभिनन्दन को लौटाया है तो उनके इस कदम से भारत का माहौल बदला है। दोनों देशों के बीच तनाव में भी कमी नज़र आ रही है। मगर, ये भाव स्थायी नहीं है। इसका प्रमुख कारण ये है कि पाकिस्तान ने दबाव और मजबूरी के बीच ऐसा कदम उठाया है। पाकिस्तान ने लगातार अभिनन्दन के मुद्दे पर भारत से बात करने की कोशिश की। इमरान ख़ान ने भी इस कोशिश और इसकी विफलता को संसद में स्वीकार किया। विदेश मंत्री कुरैशी की भाषा तो ऐसी रही मानो वह विंग कमांडर अभिनन्दन के बदले कोई डील करना चाह रहे हों। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इमरान ख़ान की घोषणा से पहले ही भारत के लिए ‘अच्छी ख़बर' की घोषणा कर दी थी। यह बात भी साबित करती है कि इमरान ख़ान की यह शांति पहल स्वैच्छिक नहीं है। अगर इमरान ख़ान ने विंग कमांडर अभिनन्दन को नहीं लौटाया होता, तो क्या होता? निश्चित रूप से तनाव और बढ़ता। पाकिस्तान को अपने अंतरराष्ट्रीय संबंधों का नुकसान उठाना पड़ता। भारत की ओर से और आक्रामक कार्रवाई की जाती। युद्ध की ओर स्थिति जाती। इसकी औपचारिक घोषणा से बचने की कोशिश के विफल होने का अंदेशा अधिक होता।
सेना के रहते इमरान का उदार चेहरा, क्या है मतलब?
एक सवाल और मौजूं है कि अगर इमरान ख़ान की जगह कोई दूसरा व्यक्ति प्रधानमंत्री होता, तो क्या होता? अगर वहा सैनिक शासन होता,तो क्या होता? ये सवाल इसलिए महत्वपूर्ण हैं कि इससे लोकतांत्रिक तौर पर चुने गये प्रधानमंत्री के रूप में इमरान ख़ान की अहमियत का पता चलता है। यह बात कही जाती रही है कि इमरान ख़ान अपने आप में कुछ नहीं हैं और वहां जो कुछ होता है उसका फैसला सेना करती है। सीआरपीएफ पर आतंकी हमले के लिए भी भारत में पाकिस्तानी सेना को ही जिम्मेदार माना जाता है। इमरान ख़ान को ‘बेचारा' समझा जाता है। अगर ये सच है तो निश्चित रूप से एफ-16 से हमला करने का विचार भी सेना का रहा होगा और इस फैसले में इमरान की भूमिका 'यस सर' वाली होगी। तब विंग कमांडर अभिनन्दन के साथ दोस्ताना सलूक कैसे सम्भव हुआ? क्या जेनेवा संधि इसकी वजह है? इस संधि के रहते हमने अजय आहूजा और सौरभ कालिया को खोया है। पाकिस्तान ने दोनों बंदियों के साथ क्रूरता की हदें पार कर दी थीं। यह बात करगिल युद्ध के दौरान की है। हालांकि नचिकेता को पाकिस्तान ने 8 दिन के बाद जरूर छोड़ दिया था। इसलिए ये साफ है कि अगर आक्रामक नीति पाकिस्तानी सेना का चेहरा है तो उदार नीति इमरान ख़ान की मौजूदगी की वजह से दिख रही है। अभिनन्दन वर्धमान की वापसी को इमरान ख़ान की ओर से शांति की पहल के रूप में तब दुनिया स्वीकार नहीं करेगी, जब तक कि पाकिस्तान तहे दिल से आतंकवादी संगठनों के ख़िलाफ़ एक्शन नहीं लेता। फिर सवाल वही उठता है कि क्या ऐसा करना इमरान ख़ान के वश की बात है? वे ऐसा बगैर सेना की सहमति के नहीं कर सकते। और, सेना का रुख बगैर दबाव के नहीं बदल सकता। भारत दबाव की नीति पर ही चलता दिख रहा है।
दुनिया में अलग-थलग पड़ा पाकिस्तान
सुरक्षा परिषद में मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने का साझा प्रस्ताव लेकर अमेरिका, फ्रांस और इंग्लैंड ने सामने आए। सीआरपीएफ पर हमले के बाद भारत को इन देशों ने खुलेआम बदला लेने का हक दिया। बालाकोट में एयर स्ट्राइक से पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने साफ तौर पर कहा था कि भारत कुछ बड़ा करने वाला है। इसका मतलब ये हुआ कि भारत की ओर से जो एयर स्ट्राइक हुई, उसकी भी जानकारी अमेरिका को थी। चीन की भाषा भी पाकिस्तान का समर्थन करने वाली नहीं दिखी, जबकि रूस खुलकर भारत के साथ आ खड़ा हुआ।
पाकिस्तानी धरती का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए करना बंद करें
इतना ही नहीं, सऊदी अरब, ईरान और अफगानिस्तान जैसे देश भी भारत के साथ खड़े दिखे। दबाव में कोई पहल 'शांति की पहल' का दर्जा नहीं ले सकती। मगर, यह शांतिपूर्ण उद्देश्यों के प्रति समर्पण के लिए टर्निंग प्वाइंट बन सकती है। इसके लिए आगे के कदमों का इंतज़ार करना होगा। पाकिस्तान की सरकार ने मान लिया है अजहर मसूद बीमार है यानी उसके देश में है। इसलिए, अगला कदम उसे सबूत मांगने के बजाए सीआरपीएफ हमले की ज़िम्मेदारी लेने के आधार पर ही उसे एक्शन लेकर दिखाना होगा। चूकि निर्दोष यात्रियों के अपहरण के बाद छूटा था अजहर, इसलिए भी उसके लिए भारत को सबूत देने की जरूरत नहीं है। अजहर मसूद को अगर भारत सौंपने को तैयार हो जाता है पाकिस्तान, तो शांति के लिए यह उसके रुख में आया बदलाव माना जा सकता है। इमरान ख़ान शांति दूत तभी कहे जा सकते हैं जब वे पाकिस्तानी धरती का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए बंद कराने में सफल होंगे।