झारखंड विधानसभा चुनाव में लालू फैक्टर कितना असरदार?
नई दिल्ली। महागठबंधन में सीएम पद के भावी उम्मीदवार माने जाने वाले हेमंत सोरेन ने शनिवार को सजायाफ्ता लालू प्रसाद से मुलाकात की। इससे झारखंड चुनाव में लालू प्रसाद की अहमियत का अंदाजा लगाया जा सकता है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन को अपने भावी ताज के लिए लालू यादव की मदद की दरकार है। लालू कभी झारखंड में बड़ी ताकत नहीं रहे लेकिन वे भाजपा विरोधी राजनीति का एक स्तंभ जरूर हैं। चारा घोटाले की सजा को लेकर जब से वे रांची जेल (रिम्स में इलाजरत) में हैं झारखंड के भाजपा विरोधी नेता उनकी परिक्रमा करते रहे हैं। उन्हें भरोसा है कि लालू यादव के आशीर्वाद से ही झारखंड में भाजपा को उखाड़ा जा सकता है। भाजपा के खिलाफ महागठबंधन बनाना लालू यादव का पुराना सपना है। शनिवार को जब हेमंत सोरेन लालू यादव से मिले तो उन्होंने विधानसभा चुनाव को लेकर करीब 40 मिनट तक बात की। हालांकि उन्होंने सीटों के बंटवारे पर कुछ नहीं कहा लेकिन इतना जरूर कहा कि लालू यादव ने सीट शेयरिंग का मसला जल्द जल्द सुलझाने के लिए कहा है ताकि सीटवाइज जीत की रणनीति बनायी जी सके।
झारखंड में राजद
2000 में जब बिहार से बंट कर झारखंड अलग राज्य बना तो विधायक भी बंट गये। सबसे अधिक भाजपा को 32 विधायक मिले । भाजपा ने समता पार्टी के 5, जदयू के 3 और 2 अन्य के साथ मिल कर सरकार बना ली। भाजपा के बाबूलाल मरांडी सीएम बने। इस बंटवारे में राजद को 9 विधायक मिले थे। राजद विपक्ष में था। 2005 में पहली बार विधानसभा के चुनाव हुए। भाजपा 30 सीटें जीत कर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी लेकिन किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। यह अस्थिर राजनीति का दौर था। मिलीजुली सरकारें बनती थीं और गिर जाती थीं। इस दौर में चार बार सत्ता बदली। शिबू सोरेन, अर्जुन मुंडा, मधु कोड़ा और फिर शिबू सोरेने मुख्यमंत्री बने। 2005 के चुनाव में राजद को 7 सीटों पर जीत मिली थीं। इसलिए जब भाजपा विरोधी मिलीजुली सरकार बनती तो उसकी अहमियत बढ़ जाती। राजद को मंत्री पद भी मिला। इस दौर में भ्रष्टाचार ने झारखंड की राजनीति को बहुत आघात पहुंचाया। जब निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा को मुख्यमंत्री बनाया तो लूटखसोट का बोलबाला हो गया। इसके बाद राजद की राजनीति का ग्राफ नीचे गिरने लगा।
राजद का ग्राफ नीचे गिरा
2009 के चुनाव में राजद सात से पांच सीटों पर आ गया। इस चुनाव में भी किसी दल को बहुमत नहीं मिला। सरकार बनने और गिरने का सिलसिला जारी रहा। तीन मुख्यमंत्री बने। झामुमो के शिबू सोरेन, भाजपा के अर्जुन मुंडा और फिर झामुमो के हेमंत सोरेन । झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार बनाने में राजद हमेशा मददगार रहा। लालू जैसे ताकतवर राजनेता के रहते हुए भी राजद झारखंड में पांव नहीं जमा सका। वह हमेशा गठबंधन की राजनीति पर निर्भर रहा। 2014 के विधानसभा चुनाव में मोदी की आंधी में राजद का झारखंड से सफाया हो गया। उसके खाते में एक भी सीट नहीं आयी। 2019 के लोकसभा चुनाव में उसने महागठबंधन से बगावत कर चुनाव लड़ा था लेकिन हार ही मिली।
2019 में राजद
राजद को झारखंड में नाकामी जरूर मिली लेकिन इसके वावजूद लालू यादव ही महागठबंधन में जोश भरने वाले नेता हैं। लालू की अनदेखी झारखंड मुक्ति मोर्चा या कांग्रेस के लिए आसान नहीं है। लालू की इसी ताकत का फायदा उठाने की कोशिश में है राजद। लालू यादव से मुलाकात के बाद हाल ही में राजद के प्रदेश अध्यक्ष अभय कुमार सिंह ने कहा था कि उनकी पार्टी महागठबंधन के तहत 14 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। ऐसा कह कर राजद ने झामुमो और कांग्रेस पर पहले से दबाव बढ़ा दिया है। अभी सीट शेयरिंग पर अपनी- अपनी तरफ से बातें हो रही है। झामुमो की तरफ से उसे 8-10 सीटें देने की बात कही जा रही है। राजद की महात्वाकांक्षा के कारण लोकसभा चुनाव के समय महागठबंधन में खूब तकरार हुई थी। चतरा से कांग्रेस और राजद, दोनो ने चुनाव लड़ा था और दोनों की हार हुई थी। अब देखना है विधानसभा चुनाव में भाजपा विरोधी दल कितना एकजुट हो कर चुनाव लड़ पाते हैं।
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