हिमाचल प्रदेश न्यूज़ के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
Oneindia App Download

डोकलाम पर चीन से तनाव के बीच थैंक्यू इंडिया कार्यक्रम शुरू, दलाई लामा के निर्वासन के 60 साल पूरे

By Rajeevkumar Singh
Google Oneindia News

शिमला। तिब्बतियों के अध्यात्मिक नेता दलाई लामा के निर्वासन के साठ साल पूरे हो गए। निर्वासन में रह रहे तिब्बती व उनके धर्मगुरु दलाई लामा भारत में पनाह देने के लिये थैंक्यू इंडिया कार्यक्रम के बहाने भारत का शुक्रिया अदा कर रहे हैं। थैंक्यू इंडिया कार्यक्रम पिछले दिनों उस समय सुर्खियों में आया था, जब भारत सरकार ने अचानक अपने नेताओं के लिये इस कार्यक्रम के बारे में एक एडवाइजरी जारी की। उसके बाद जो समारोह दिल्ली में होना था वह अब आज धर्मशाला में हो रहा है। इससे समारोह की चमक भले ही फीकी पड़ गई हो लेकिन तिब्बतियों में इसको लेकर उत्साह कम नहीं हुआ है। धर्मशाला में दलाई लामा के साथ मंच साझा करने के लिये केन्द्रीय मंत्री महेश शर्मा के साथ भाजपा नेता राम माधव पहुंचे। सांसद शांता कुमार भी यहां पहुंचे। भारतीय नेताओं ने तिब्बतियों को भारत के सर्मथन की प्रतिबद्धता दोहराई।

24 साल की उम्र में भारत आए थे दलाई लामा

24 साल की उम्र में भारत आए थे दलाई लामा

हलांकि भारत सरकार का मौजूदा रवैया जरूर उन्हें विचलित कर रहा है। डोकलाम में उपजे तनाव के बाद भारत का चीन के प्रति दृष्टिकोण बदला है जिससे तिब्बती अंदोलन में भी अनिश्चितता का माहौल देखने को मिल रहा है। तिब्बितयों के निर्वासन की कहानी तब शुरू हुई जब तिब्बत को स्वतंत्र घोषित करने के बाद से वहां पर चीनी सेना ने हमला कर दिया था। तिब्बती अपनी सम्प्रभुता की मांग करते रहे और इसी बीच 14वें दलाईलामा हजारों शरणार्थियों के साथ 30 मार्च, 1959 को भारत की सीमा में प्रवेश कर गए। तब दलाईलामा की उम्र मात्र 24 वर्ष थी। तब से वह विश्व के हर मंच पर शांति की राह पर चलते हुए वतन वापसी की कोशिशों में जुटे हुए हैं।

भारत ने दिया सहारा

भारत ने दिया सहारा

भारत ने दलाईलामा और तिब्बती शरणार्थियों को सहारा दिया। लगभग सवा लाख के करीब तिब्बती शरणार्थी भारत में रह रहे हैं जिनमें से हिमाचल प्रदेश में इनकी 25000 के करीब आबादी है और यहीं मैक्लॉडगंज में तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा का निवास है। तिब्बत की निर्वासित सरकार भी यहीं से चलती है। हिमाचल प्रदेश के बाद तिब्बतियों की सबसे ज्यादा आबादी कर्नाटक में है। भारत सरकार ने शरणार्थी तिब्बतियों को वोट का अधिकार भी दे दिया है लेकिन इस अधिकार के पात्र वही तिब्बती हैं जिनका जन्म भारत में हुआ है। नेपाल में भी 15000 के करीब तिब्बती शरणार्थी रह रहे हैं। इसके अलावा कुछ भूटान में भी हैं। इस आबादी में से आधी से अधिक आबादी उन तिब्बतियों की है जिन्होंने तिब्बत और ल्हासा की बातें सिर्फ अपने परिजनों से सुनी हैं। जीवन-यापन के लिए ज्यादातर तिब्बती शरणार्थी भारत के विभिन्न हिस्सों में खुलीं तिब्बती मार्केट पर निर्भर हैं।

भारत के परिवेश में ढल चुके हैं तिब्बती

भारत के परिवेश में ढल चुके हैं तिब्बती

हलांकि इन्हें निजी क्षेत्र में रोजगार के अवसर मुहैया करवाने के भारत सरकार के निर्देश भी हैं। वहीं अधिकतम 20 वर्ष की लीज अवधि पर ही ये मकान या दुकान आदि ले सकते हैं। भारत में जन्मे और पले तिब्बती खुद को यहां के परिवेश में ढाल चुके हैं। लेकिन धर्मगुरु दलाईलामा की तिब्बत की स्वायत्तता की कोशिशों पर उन्हें पूरा भरोसा है। परंतु तिब्बत से आने वाले मानवाधिकारों के हनन, धार्मिक स्वतंत्रता पर पाबंदी और अभिव्यक्ति की आजादी पर बंदिशों के समाचार उन्हें जरूर विचलित करते आ रहे हैं। वहीं भारतीय परम्परा से विश्व में शांति की स्थापना की बात हर मंच पर कहने वाले 14वें दलाईलामा के उपदेशों पर चलकर तिब्बती शरणार्थी आज भी अपनी भाषा, संस्कृति, इतिहास और धर्म में बंधे हुए हैं। अगली पीढ़ी को इस राह पर चलाने के लिए विश्व के कई देशों की आर्थिक सहायता से हिमाचल प्रदेश सहित अन्य राज्यों में अनेकों प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान चलाए जा रहे हैं, यहां पर गुरु-शिष्य परंपरा के तहत बौद्ध मठों में तिब्बती धर्म ज्ञान पर शिक्षा प्रदान की जा रही है।

चीन ने कार्यक्रम को लेकर जताई आपत्ति

चीन ने कार्यक्रम को लेकर जताई आपत्ति

काबिले गौर है कि चीन ने हमेशा दलाई लामा के कार्यक्रमों को लेकर भारत सहित कई देशों के समक्ष कड़ी आपत्ति जताई है। भारत के साथ चीन के रिश्तों में खटास का मुख्य कारण भी तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा और उनके समर्थकों को यहां पर शरण देना माना जाता है। भारत के कुछ राज्यों के साथ तिब्बत की सीमाएं सटी हुई हैं। इन सभी सीमाओं पर पिछले कुछ वर्षों में चीन ने सामरिक दृष्टि से तेजी से रेल, सड़क और हवाई नेटवर्क स्थापित करने पर भी काम किया है क्योंकि चीन ने कभी भी भारत को एक मित्र देश के रूप में नहीं देखा है। इस सबके बावजूद भी भारत तिब्बती शरणार्थियों के प्रति अपने कर्तव्य बखूबी निभा रहा है। वहीं दलाईलामा भी विश्व के सभी मंचों पर भारतीय परंपरा की खुले दिल से प्रशंसा करते आ रहे हैं। तिब्बती धार्मिक परम्परा के मुताबिक वर्तमान दलाईलामा की एक निश्चित आयु अवधि के दौरान ही अगले दलाई लामा के पुनरावतार को मान्यता दी जाती है लेकिन 14वें दलाई लामा के पुनरावतार को लेकर भी संशय बना हुआ है। क्योंकि पहले भी पंचेन लामा के पुनरावतार को लेकर चीन अड़ंगा डाल चुका है क्योंकि इस धार्मिक प्रक्रिया को पूरा करने के लिए चीन तिब्बत के अंदर शायद अनुमति न दे।

तिब्बतियों की उम्मीदें अब भी कायम

तिब्बतियों की उम्मीदें अब भी कायम

लाखों शरणार्थी तिब्बतियों की वतन वापसी की उम्मीदें अब भी कायम हैं। दलाईलामा ने फिर से रिपब्लिक आफ चीन के साथ रहने की इच्छा जताई है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि तिब्बत के लिए चीन से संपूर्ण स्वतंत्रता नहीं, वह केवल अपनी मातृभूमि में रहने के लिए स्वायत्तता चाहते हैं । लंबे समय से तिब्बत की स्वायत्तता की मांग कर रहे तिब्बती धार्मिक गुरु दलाईलामा के साथ चीन ने वर्ष 2009 से वार्ता बंद कर रखी है। दलाई लामा की इस मांग पर चीन का क्या रुख रहेगा, इस पर चीन अभी खामोश है लेकिन वर्षों से वार्ता के सभी विकल्प बंद कर बैठे चीन के लिए उनकी इस मांग का शायद कोई मोल नहीं है क्योंकि चीन तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा और उनके समर्थकों को अलगाववादी मानता है।

Comments
English summary
Thank you India event of Dalai Lama started in Dharmshala.
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X