PICS: प्रधानमंत्री मोदी के इजरायल दौरे से क्या यहां के सुधरेंगे रिश्ते?
कुल्लू से करीब 42 किलोमीटर दूर यहां पर आकर ऐसा लगता ही नहीं है कि हम भारत में हैं बल्कि लगता है कि हम इजरायल में आ गए हैं।
शिमला। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में कसोल भी आज इजरायली पर्यटकों की पंसदीदा जगह है। धर्मशाला के धर्मकोट की तरह यहां भी इजरायली रहते हैं। 1640 मीटर की उंचाई पर स्थित कसोल पर्वती नदी के किनारे भुंतर से मणिकर्ण के रास्ते पर स्थित है। कसोल की वादियों में आज शलोम की गूंज सुनाई देती है तो पल भर के लिए सोचना पड़ता है कि हम है कहां। सेक्स, ड्रग्स, मस्ती और चैन की बानगी यहां महसूस की जा सकती है।
कसोल उस समय कुछ अरसा पहले सुर्खियों में एकाएक आ गया था, जब यहां एक रेस्तरां में भारतीय पर्यटक को प्रवेश करने की इजाजत नहीं मिली थी। इस पर खूब बखेड़ा हुआ। लेकिन हालात यहां आज भी वही है। यहां रहने वाले इजरायली अपने जीवन में भारतीयों का खलल बिल्कुल भी पसंद नहीं करते। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इजरायल दौरे पर उनकी पूरी नजर है। 29 वर्षीय बेन जो कि इजरायल के नेहारिया के रहने वाले हैं वो इन दिनों कसोल में हैं। उन्होंने बताया कि मोदी के दौरे से दोनों देशों के संबधों में मजबूती आएगी और पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। चूंकि भारत इजरायली पर्यटकों का पंसदीदा है। हाल्फा के इलियन दूसरी बार कसोल घूमने आए हैं। हालांकि भारतीय राजनीति में उनकी कोई खास दिलचस्पी नहीं है। लेकिन वो मोदी के मुरीद हैं। चूंकि उन्हें अपने देश के मीडिया से मोदी के इजरायल दौरे की जानकारी मिली है।
कुल्लू से करीब 42 किलोमीटर दूर यहां पर आकर ऐसा लगता ही नहीं है कि हम भारत में हैं बल्कि लगता है कि हम इजरायल में आ गए हैं। इसीलिए इसे मिनी इजराइल भी कहा जाता है। यहां प्रवेश करते ही आपको तंबुओं की कतारें और उनके सामने खड़ी मोटरसाइकिलें दिखती हैं। यहां के रेस्तरां में सारे मैन्यू हिब्रू भाषा में हैं। नमस्कार की जगह आपको शलोम सुनाई पड़ेगा और यूं ही घूमते-फिरते कई इजरायलियों से आपका सामना होगा।
स्थानीय लोग बताते हैं कि शुरुआत में इजरायली कसोल आए तो उन्होंने जगह किराए पर लीं। इजरायलियों ने यहां करीब दो दशक पहले आना शुरू किया था। शुरुआत में पुराना मनाली उनका पसंदीदा ठिकाना हुआ करता था। अपने देश में अनिवार्य सैन्य प्रशिक्षण और सेवा के बाद वे यहां की पहाड़ियों में मौज-मस्ती करने आया करते थे। उस समय ये इलाका अनछुआ सा और पूरी तरह प्राकृतिक रूप में था। भारतीय पर्यटकों की बाढ़ आने के बाद जब छोटी कुटिया और घर कांच और चमकीले वॉलपेपरों वाले भद्दे कंक्रीट होटलों में बदलने लगे तो इजराइली सैलानी पार्वती नदी की घाटी में बसे कसोल की ओर बढ़ गए। इस क्षेत्र के आस-पास के गांवों में इजरायली झंडे नजर आते हैं और यहां बजने वाले संगीत में तेल अवीव की महक साफ महसूस की जा सकती है।
इजरायलियों ने बाद में यहां अपने गेस्ट हाउस, कैफे चलाए और खुद में मस्त रहे। उन्होंने स्थानीय लोगों के साथ बातचीत की और लोगों ने उन्हें अपनी जगह दे दी क्योंकि उन्हें यकीन था कि इससे वहां व्यापार बढ़ेगा। पहले यहां एक भी गाड़ी नहीं थी लेकिन अब ये छोटा सा गांव समृद्ध दिखता है। अब यहां स्थानीय लोग भी अपने खुद के कैफे, गेस्ट हाउस चलाने लगे हैं लेकिन ये ख्याल जरूर रखते हैं कि इजरायलियों को नाराज न करें। यानी भारतीय भी इजराइलियों के रंग में रंग गए हैं। यहां किसी भी समय इस घाटी में कम से कम एक हजार इजराइली मिल सकते हैं।
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थोड़ी दूर आगे जाने पर आपको एक खबद हाउस यानी यहूदियों का सांस्कृतिक स्थल भी दिखता है। इस खूबसूरत इमारत में लकड़ी के फर्श और बेंच हैं। एक युवा रब्बी (यहूदी पुजारी) है। इन्हें खासतौर पर इजरायल से भेजा गया है ताकी वे यहूदियों को पूजा करने में मदद करें और उनकी छुटिट्यों का ध्यान रखें। पूरे भारत में 23 खबद हाउस हैं। यहां बना खबद हाउस इस छोटे पहाड़ी गांव कसोल को सांस्कृतिक दिशा देता है। इजराइली ज्यादा अंग्रेजी नहीं समझते। स्थानीय लोग इजरायलियों के लिए बने कैफे में नहीं जाते। उनका कहना है कि इजरायलियों का खाना अलग तरह का है। इसके अलावा वे बीफ भी खाते हैं। स्थानीय लोग इजायलियों से होने वाले व्यवसाय से ही खुश हैं। रात में यहां बॉनफायर का इंतजाम होता है। तीन सौ रुपए रोजाना किराए के कमरे वाले छोटे होटलों में भी म्यूजिर सिस्टम बाहर रखा मिल जाता है।
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