विजय दिवस: कारगिल शहीदों की याद में की गई घोषणाएं आज भी अधूरी!
जिन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था उनकी शहादत को याद रखने के लिए कई घोषणाएं की गई जो आज अठारह साल बाद भी अपने अंजाम तक नहीं पुहंच पाई हैं।
शिमला। 26 जुलाई को कारगिल दिवस के अवसर पर युद्ध में वीरगति को प्राप्त होने वाले रणबांकुरों की यादें ताजा हो जाती हैं। आज पूरा राष्ट्र कारगिल दिवस मना रहा है। देवभूमि हिमाचल प्रदेश को वीरभूमि कहा जाए तो गलत नहीं होगा। 14 मई से 26 जुलाई, 1999 तक चले कारगिल युद्ध में हिमाचल प्रदेश के 52 रणबांकुर वीरगति को प्राप्त हुए थे। शहीदों को श्रद्धांजलि देने व उनके जज्बे को सलाम करने के लिए प्रदेश भर में 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस पर शहीदों को याद किया जा रहा है लेकिन दूसरी तरफ इस विजय दिवस का दुखद पहलू ये है कि कारगिल युद्ध के दौरान शहीद हुए प्रदेश के रणबांकुरों जिन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था उनकी शहादत को याद रखने के लिए कई घोषणाएं की गई जो आज अठारह साल बाद भी अपने अंजाम तक नहीं पुहंच पाई हैं।
हिमाचल प्रदेश के कई हिस्सों में ऐसे आयोजन सिर्फ एक कार्यक्रम तक ही सीमित रह जाते हैं। सरकार ने तब घोषणाएं तो बहुत कीं मगर धरातल पर कुछ नजर नहीं आ रहा। कारगिल के शहीदों की स्मृतियों को संजोने के लिए जगह-जगह शहीद पार्क बनाए गए, उनकी मूर्तियां लगाई गईं मगर उनको संजोकर नहीं रखा जा सका। शहीदों की याद में वॉर मेमोरियल बनाने की घोषणाएं हुईं, इन पर कभी कार्रवाई नहीं हो पाई। प्रदेश के कई जिलों में कारगिल शहीदों के नाम चौक व सड़कों के नाम रखे गए हैं। इन चौराहों के बीच शहीद के नाम का नोटिस बोर्ड टांगकर औपचारिकताओं को पूरा किया गया है। राज्य में सैनिक कल्याण निगम की स्थापना की गई है मगर ये सिर्फ सैनिक कल्याण के कार्यों में लगा है। जिसे शहीदों से कोई ज्यादा सरोकार नहीं।
धर्मशाला में शहीदों के नाम पर एक बड़ा स्मारक स्थल बनाया गया है। जिसके साथ अब वॉर मेमोरियल बनाया जाना है। यहां पर सरकार ने कई तरह की घोषणाएं कर रखी हैं मगर इनको अभी तक पूरा नहीं किया जा रहा। यहां पर भी कुछ पार्क शहीदों के नाम पर बने हैं जिनमें एक दुर्गामल दल बहादुर पार्क है, जिसकी हालत भी खस्ता है। यहां गोरखों ने भी कुछ पार्क बना रखे हैं। इसके अलावा बिलासपुर में एक शहीद स्मारक जनरल जोरावर सिंह के नाम पर बनाया गया है। कुछ स्थानों पर कॉलेजों व स्कूलों के नाम भी शहीदों के नाम पर रखे गए हैं। वहीं गांव के चौराहों के नाम भी शहीदों के नाम पर रखे हैं। इन सभी को सहेजने के लिए अलग से सरकार ने कोई प्रावधान नहीं किया है।
Read more: मछुआरे ने फेंका जाल और निकल आई दुपट्टे से बंधी प्रेमी-प्रेमिका की लाश