एशिया के इस ऐतिहासिक खेल की फिर लौटी रौनक, युवाओं में उत्साह
इस खेल के दीवाने अभी से इस रोमांच में अपना हाथ आजमाने में पीछे नहीं रहना चाहते। इस बार स्थानीय युवाओं में प्रसन्नता की खास वजह ये है कि यहां इस रोमांच भरे खेल की शुरुआत जल्दी हो गई है।
शिमला। शिमला में एशिया के सबसे पुराने ऐतिहासिक आइस स्केटिंग रिंक में रौनक लौट आई है। हालांकि अभी शिमला में बर्फबारी कम है लेकिन यहां आइस स्केटिंग रिंक में स्केटिंग के दीवाने अभी से इस रोमांच में अपना हाथ आजमाने में पीछे नहीं रहना चाहते। इस बार स्थानीय युवाओं में प्रसन्नता की खास वजह ये है कि यहां इस रोमांच भरे खेल की शुरुआत जल्दी हो गई है। ट्रायल सफल रहने के बाद रविवार को पहला सत्र आयोजित किया गया। आज से इसकी औपचारिक शुरूआत हो गई लेकिन सत्र कितना लंबा चलेगा, ये सब मौसम पर ही निर्भर रहेगा। चूंकि बीते साल भी दिसंबर में शिमला का तापमान 22 डिग्री के आसपास रहा था। जो कि इस खेल के लिए अनुकूल नहीं माना जा सकता।
आइस स्केटिंग का आकर देखिए रोमांच
सोमवार को सुबह के समय युवाओं ने रिंक में आइस स्केटिंग का भरपूर लुत्फ उठाया। पिछले साल की तुलना में इस साल आइस स्केटिंग का सत्र जल्दी शुरू हुआ है। हालांकि शाम का सत्र अभी शुरू नहीं हो पाया है। शाम का सत्र शुरू करने में अभी समय लगेगा, क्योंकि दिन के समय शिमला में तापमान अभी भी अधिक है, जिस वजह से दोपहर को ही रिंक में बर्फ की परत पिघल जा रही है और सुबह के सत्र के लिए शाम को बर्फ की परत जमाने के लिए दोबारा से पानी डालने की प्रक्रिया अमल में लानी पड़ रही है।
हर साल कार्निवाल का किया जाता है आयोजन
आगामी दिनों में रिंक में कार्निवाल भी आयोजित किया जाएगा। यहां बता दें कि वर्ष 2016-17 के सीजन के दौरान मात्र 8 आइस स्केटिंग के सत्र ही आयोजित हो पाए थे। स्वदेश दर्शन योजना में हिमाचल प्रदेश भी शामिल है। केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय ने ‘हिमालयन सर्किट ऑफ स्वदेश दर्शन योजना' के अंतर्गत हिमाचल प्रदेश के लिए 100 करोड़ रुपए की राशि भी स्वीकृत की है।
ऐतिहासिक है यहां आइस स्केटिंग
इसके अंतर्गत जो कार्य होंगे उसमें शिमला आइस स्केटिंग रिंक का पुन: विकास किया जाना भी शामिल है। आइस स्केटिंग क्लब के कार्यकारिणी सदस्य राजन भारद्वाज ने कहा कि आइस स्केटिंग रिंक में सुबह का सत्र शुरू हो गया है। 1972 में यहां 12 सत्र आयोजित किए गए थे। जबकि 1998 में सबसे अधिक 118 सत्र तो अब हर साल ये घटते जा रहे हैं। शिमला में बदलते मौसम, ग्लोबल वार्मिंग और बढ़ते प्रदूषण की वजह से अब इस खेल पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं।
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