हिमाचल की राजनीति के अब दबंग 'राणा', दांव-पेंच में उसी को हराया जिससे सीखा
राजेंद्र राणा ने भाजपा के मुख्यमंत्री उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल को हराकर भगवा दल को ना केवल एक नया चेहरा तलाशने के लिए मजबूर कर दिया बल्कि प्रदेश की राजनीति से धूमल युग के अंत की इबारत भी लिख दी है।
शिमला। हिमाचल भाजपा के वरिष्ठ नेता प्रेम कुमार धूमल इन दिनों शायद पानी पी पीकर एक शख्स को कोस रहे होंगे। ये शख्स कोई और नहीं बल्कि धूमल से ही राजनीतिक दांव-पेंच सीखने वाले उनके शिष्य सुजानपुर से चुनाव जीत कर आए विधायक राजेंद्र राणा हैं। जो हिमाचल की राजनीति के दबंग बन गए हैं। हालांकि हिमाचल भाजपा में इन दिनों चुनाव नतीजों के बाद खुशी है। पार्टी पांच साल बाद सत्ता में दो तिहाई बहुमत के साथ सत्ता में वापसी कर चुकी है लेकिन खुशी के इस महौल में राजेंद्र राणा ऐसे किरदार हैं कि जिनको लेकर बचैनी का महौल है। सुजानपुर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार राजेंद्र राणा ने भाजपा के मुख्यमंत्री उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल को हराकर भगवा दल को ना केवल एक नया चेहरा तलाशने के लिए मजबूर कर दिया बल्कि प्रदेश की राजनीति से धूमल युग के अंत की इबारत भी लिख दी है।
गुरु पर भारी पड़ा चेला
भाजपा नेताओं से लेकर खुद धूमल तक ने भी नहीं सोचा होगा कि वो राजेंद्र राणा के हाथों सुजानपुर से पराजित हो जाएंगे। पार्टी ने धूमल को सीएम के तौर पर चुनाव से पहले प्रोजेक्ट किया तो भी राणा ने हिम्मत नहीं हारी। वो चुनाव में पूरी हिम्मत से डटे रहे। राजेंद्र राणा ने कहा, मैंने पिछले 15 सालों में सुजानपुर विधानसभा में बहुत सारे सामाजिक कार्य किए हैं। इस क्षेत्र के लोगों की दुआओं ने यहां से भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होने के बावजूद मुझे जिम्मेदारी सौंपी। मेरी इस विधानसभा के लोगों के साथ निजी तौर पर अच्छे संबंध हैं। मैं यहां उनके साथ हर खुशी और गम के मौके पर उपस्थित रहा हूं। आज वो मेरे साथ खड़े हैं।
2009 में छोड़ा साथ और 2017 में किया खुद को साबित
धूमल
के
करीबी
रहे
राणा
ने
साल
2009
में
भाजपा
छोड़
दी
थी।
उन्होंने
कहा,
जब
धूमल
का
नाम
इस
सीट
के
लिए
चुना
गया,
मैंने
तभी
घोषणा
कर
दी
थी
कि
वो
हारेंगे।
मुझे
करीब
6
महीने
पहले
ही
पता
चल
गया
था
कि
धूमल
का
इस
चुनाव
क्षेत्र
में
बदला
जाएगा।
उन्हें
सुजानपुर
भेजा
जाएगा।
वो
सुजानपुर
आए
तो
उनके
कुछ
लोगों
ने
चुनाव
से
पहले
मुझ
तक
पहुंच
बनाने
की
कोशिश
की,
लेकिन
मैंने
उनसे
कह
दिया
था
कि
उन्हें
(धूमल)
सुजानपुर
से
खड़ा
नहीं
होना
चाहिए
था।
मुझे
पता
था
कि
लड़ाई
मुश्किल
रहने
वाली
है।
मैं
जानता
था
कि
मैंने
यहां
कई
अच्छे
काम
किए
हैं,
जिसका
प्रतिफल
मुझे
जरूर
मिलेगा।
सुजानपुर
के
जायंट
किलर
नाम
से
मशहूर
हो
चुके
51
वर्षीय
राणा
ने
73
वर्षीय
धूमल
को
1,919
मतों
से
शिकस्त
देकर
हिमाचल
प्रदेश
की
राजनीति
और
भाजपा
में
हलचल
मचा
दी
है।
राणा
की
जीत
इन
मायनों
में
भी
खास
हो
जाती
है,
जब
हिमाचल
में
एक
तरह
से
भाजपा
की
लहर
थी
और
पार्टी
ने
68
सदस्यीय
विधानसभा
में
44
सीटें
हासिल
की
हैं।
तो
उस
दौर
में
पार्टी
की
ओर
से
सीएम
पद
के
दावेदार
ही
चुनाव
हार
गए।
सुजानपुर सीट पर की महनत, अनुमान था यहां से लड़ेंगे धूमल
राणा ने कहा, भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व चुनावी गणित में फंस गया। उन्होंने धूमल को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर उन्हें सुजानपुर सीट से खड़ा कर दिया। उन्होंने ये सोचा कि भाजपा हमीरपुर की पांचों सीट जीत जाएगी, क्योंकि धूमल एक जाने-माने नेता हैं और मुख्यमंत्री चेहरा भी हैं। मगर ये जुआ उलटा पड़ गया। भाजपा के आंतरिक सर्वेक्षण में भी ये दर्शाया गया कि मुझे हराना मुश्किल होगा। राणा करोड़पति हैं, जिन्हें अपना निजी फंड क्षेत्र के गरीब घरों से ताल्लुक रखने वाली लड़कियों की शादी और छात्रों को छात्रवृत्ति देने के लिए जाना जाता है।
धूमल को हराकर कांग्रेस में बढ़ गया है कद
राणा वर्ष 2003 से 2009 तक धूमल के साथ रहे थे, मगर 2009 में उनसे अलग हो गए। राणा को 2012 चुनाव में सुजानपुर से भाजपा का टिकट नहीं मिला और वो निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे और 14 हजार के भारी अंतर से जीत दर्ज की। उस चुनाव में भाजपा तीसरे नंबर पर रही थी। राणा ने कहा कि मेरे दिमाग में कोई राजनीतिक दुश्मनी नहीं है। मेरा मकसद लोगों की सेवा और क्षेत्र का विकास है। पिछले पांच सालों में वीरभद्र सिंह ने मेरा बहुत समर्थन किया है और हमने सुजानपुर के लिए बहुत काम किया है। हालांकि अब नई भाजपा सरकार को क्षेत्र के विकास के लिए मदद करनी होगी। धूमल को हराकर कांग्रेस में अपनी पकड़ मजबूत कर चुके राणा ने कहा कि इस सीट पर नाम और काम के बीच टक्कर थी। मैंने धूमल से कहा था कि यहां की राजनीति वैसी नहीं है। ये इस क्षेत्र के लोगों की जीत है।
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