हिमाचल का ओपीनियन पोल सही साबित होने की राह में बीजेपी के ये दो नेता हैं बड़ा रोड़ा
बता दें की इंडिया टुडे के एक सर्वे के मुताबिक हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी को बहुमत के साथ 43 से 47 सीटें मिलने की उम्मीद जताई जा रही है तो पार्टी के यहां दो बड़े नेता हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं, ऐसे में इस भविष्यवाणी पर बड़े सवाल खड़े हो रहे हैं।
शिमला। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व, हिमाचल प्रदेश पर दिए गए ओपीनियन पोल से राहत महसूस कर रहा होगा लेकिन प्रदेश में 25 अक्टूबर तक जमीनी हालात ऐसे नहीं हैं कि भाजपा यहां आसानी से सरकार बना पाए। हैरानी की बात है कि प्रदेश में अभी तक नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल अपनी उपेक्षा से केंद्रीय नेतृत्व से नाराज होकर अपने चुनाव क्षेत्र सुजानपुर से बाहर ही नहीं निकले हैं तो दूसरी ओर भाजपा के एक और बड़े नेता शांता कुमार पालमपुर में अपने आवास यामिनी में बंद होकर रह गए हैं। शांता कुमार की भी अपनी नाराजगी है। भाजपा ने तीन महीने पहले प्रदेश में जो महौल अपने हक में बनाया था, वो टिकट आबंटन के बाद कहीं दिखाई नहीं दे रहा है। शिमला की सत्ता का रास्ता कांगड़ा से होकर जाता है। ऐसे में 2012 के चुनावों में कांग्रेस सरकार कांगड़ा में मिले भारी समर्थन के बूते ही बन पाई थी। कांगड़ा जिला में 15 विधानसभा क्षेत्र हैं। पिछले चुनावों में यहां कांग्रेस ने दस सीटें जीती थीं और दो सीटें इंदौरा से मनोहर धीमान और कांगड़ा सदर से पवन काजल निर्दलीय चुनाव जीते थे। बाद में दोनों ने कांग्रेस सरकार को अपना समर्थन दिया था। मौजूदा चुनावों में आज की तारीख में कांगड़ा की जमीनी हकीकत का ही आंकलन किया जाए तो भाजपा के पक्ष में यहां कहीं कोई महौल बनता दिखाई नहीं दे रहा है।
'कांगड़ा' तय करेगा बीजेपी की दिशा!
हालांकि कांगड़ा का व्यापारी वर्ग जरूर जीएसटी को लेकर मोदी, शाह और अरुण जेटली को कोसता नजर आता है। इसे भाजपा नेता भी मान रहे हैं कि महौल उतना अनुकून नहीं है, जितना दिखाया जा रहा है। जिला के नूरपुर चुनाव क्षेत्र में हाल ही में भाजपा से लौटे राकेश पठानिया भले ही पार्टी का टिकट हासिल करने में कामयाब हो पाए हों, लेकिन उनके लिए चुनाव जीतना उतना आसान नहीं है। पठानिया को कांग्रेस से ज्यादा रणवीर निक्का, मालविका पठानिया जैसे नेता जब तक सहयोग बाहर आकर नहीं करेंगे, तब तक खतरा बना रहेगा। इंदौरा में रीता धीमान को भाजपा ने मैदान में उतारा है। यहां भाजपा को भीतरघात का खतरा है। चूंकि यहां मनोहर धीमान को टिकट की आस थी। इसी वजह से उन्होंने दो महीने पहले कांग्रेस सरकार का साथ छोड़ भाजपा ज्वाइन की थी। फतेहपुर में भाजपा प्रत्याशी कृपाल परमार के समीकरण भी भाजपा के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। यहां राजन सुशांत के तेवरों ने परमार के रास्ते में कांटे बिखेर दिए हैं।
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बगावत की मार झेल रही है बीजेपी
हालांकि फतेहपुर में बगावत को थामने के लिए भाजपा के संगठन मंत्री राम लाल बीते दिन से मैदान में हैं। ज्वाली चुनाव क्षेत्र में अर्जुन सिंह के पक्ष में महौल नहीं बन पाया है। सबसे खराब हालात तो देहरा में भाजपा के हैं। यहां भाजपा प्रत्याशी रविंदर सिंह रवि के नामांकन में खुद प्रेम कुमार धूमल आए थे लेकिन रवि और उनके समर्थकों की ओर से एक वोटर से की गई मारपीट का मामला रवि के गले की फांस बन गया है। वहीं यहां निर्दलीय चुनाव लड़ रहे होशियार सिंह ने चुनाव की फिजा ही बदलकर रख दी है। जिससे रवि का चुनाव जीतना मुश्किल नजर आ रहा है। हालांकि जसवां परागपुर में भाजपा प्रत्याशी ब्रिकम सिंह के लिए थोड़ी राहत जरूर है लेकिन कांग्रेस के सुरेंदर मनकोटिया की वजह से जीत का अंतर कम ही रहेगा। हालांकि ज्वालामुखी में अभी तक भाजपा प्रत्याशी रमेश धवाला के पक्ष में महौल दिखाई दे रहा है। जयसिंहपुर और सुलह में भी इस बार भाजपा बड़े अंतर के साथ चुनाव जीतने की स्थिती में नहीं है।
बागी मुसीबत और कद्दावर रोड़ा!
नगरोटा बगवां में कांग्रेस प्रत्याशी जीएस बाली को भाजपा के अरुण कूका मेहरा भले ही टक्कर दे रहे हों, लेकिन यहां मेहरा को अपनी जीत के लिए भाजपा से मुंह फुलाए बैठे मंगल चौधरी का समर्थन जरूरी है। उधर कांगड़ा में भाजपा के संजय चौधरी निर्दलीय उम्मीदवारों के तिकोने संघर्ष में फंसे हैं। यहां कांग्रेस ने भाजपा के बागी पवन काजल को टिकट दिया है। शाहपुर में भाजपा ने स्थानीय स्तर पर व्यापक विरोध के बावजूद सरवीण चौधरी को मैदान में उतार तो दिया है लेकिन यहां भाजपा काडर अभी सरवीण से दूर है। यहां अंदरखाने युवा नेता कार्निक पाधा से सरवीण को खतरा होने का अंदेशा जताया जा रहा है। धर्मशाला में अपने आंसुओं को निकाल किशन कपूर ने टिकट तो पक्की कर ली लेकिन यहां भी भाजपा के ही संजय शर्मा, उमेश दत्त और राकेश शर्मा के तेवर देखने होंगे। पालमपुर में पीएमओ की पसंद इंदु गोस्वामी चुनाव जीतने की स्थिति में नहीं हैं।। यहां बुटेल परिवार के प्रभाव को तोडऩा इंदु के बस की बात नहीं है। बैजनाथ में भी भाजपा प्रत्याशी को अपने आपको साबित करने के लिए किसी करिश्में का इंतजार है।
क्या कहता है ओपीनियन पोल?
बता दें की इंडिया टुडे के एक सर्वे के मुताबिक हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी को बहुमत के साथ 43 से 47 सीटें मिलने की उम्मीद जताई जा रही है तो वहीं सत्ता में बैठी कांग्रेस को इस बार नुकसान होने की उम्मीद है। इंडिया टुडे के सर्वे के मुताबिक कांग्रेस इस बार 25 सीटों के अंदर ही सिमट सकती है। हिमाचल प्रदेश में विधानसभा की कुल 68 सीटें हैं जिसमें 43-47 सीटें बीजेपी के खाते में जाना मतलब ये बीजेपी के लिए बड़ी जीत का संकेत है। वहीं बीजेपी अपने बागी नेताओं को मना रहा है, ऐसे में बीजेपी को भी शायद खुद पता है कि उसके लिए राह आसान नहीं होगी, जिस तरह से पार्टी के यहां दो बड़े नेता हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं, पार्टी के लिए ये ओपीनियन पोल एक व्यंग सरीखा है।
सीएम पद के लिए किसकी कितनी है संभावना?
सूबे में मुख्यमंत्री पद की कमान पर भी बीजेपी में गुटबाजी देखने को मिल रही है। धूमल धड़ा पार्टी आलाकमान से खिन्न चल रहा है तो नड्डा वर्ग उत्साहित है। ऐसे में पार्टी के वरिष्ठ नेता शांता कुमार भी ऐसे ही रोड़ा नहीं बने। बीजेपी के लिए उसके दो बड़े कद्दावर इसीलिए रोड़ा बने हुए हैं सूबे की कमान थामने के लिए शांता कुमार और धूमल की बेचैनी साफ जाहिर हो रही है। धूमल अपनी पुरानी साख के आगे कोई नया एक्सपेरिमेंट देखना नहीं चाहते तो ऐसे में नड्डा खुद पार्टी के बीच कई नेताओं की आंखों में किरकिरी बनते जा रहे हैं। इंडिया टुडे के सर्वे के मुताबिक सीएम पद पर बीजेपी की बड़ी पसंद नड्डा के ही बैठने के चांस पार्टी में सबसे ज्यादा हैं। सर्वे के मुताबिक नड्डा 24% मुख्यमंत्री उम्मीदवारी की पसंद हैं, तो धूमल 14% और शांता कुमार 9%। वहीं बात की जाए कांग्रेस की तो सूबे में वीरभद्र के सीएम पद संभालने की संभावना सबसे ज्यादा 31% है।
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