हिमाचल चुनाव: कांगड़ा में कांग्रेस को भितरघात का है खतरा!
हिमाचल की सत्ता को हासिल करने के लिए बिसात बिछ चुकी है लेकिन कांगड़ा का किला पहले फतेह करना होगा। कांगड़ा में भाजपा को जहां बागियों ने घेरा है तो कांग्रेस को भीतरघात से खतरा है। जिससे कांग्रेसी कैंप भी नर्वस है।
शिमला। हिमाचल की सत्ता को हासिल करने के लिए बिसात बिछ चुकी है लेकिन कांगड़ा का किला पहले फतेह करना होगा। कांगड़ा में भाजपा को जहां बागियों ने घेरा है तो कांग्रेस को भीतरघात से खतरा है। जिससे कांग्रेसी कैंप भी नर्वस है। पिछले चुनावों में कांगड़ा ने कांग्रेस को 15 में से दस विधायक दिेए और दो भाजपा के बागी भी निर्दलीय चुनाव जीते। जिससे वीरभद्र सरकार बनने का रास्ता साफ हुआ। निसंदेह शिमला की सत्ता का रास्ता कांगड़ा से होकर ही जाता है लेकिन इस बार कांग्रेस के हालात ऐस नहीं हैं कि उसके 15 में से 12 विधायक चुनाव जीत जाए।
अपने गढ़ में भितरघात का शिकार कांग्रेस!
टिेकट आबंटन में हालांकि वीरभद्र सिंह का सिक्का चला और उन्होंने दस में से आठ विधायकों का टिकट पक्का करा दिया। विधानसभा अध्यक्ष बीबीएल बुटेल ने अपने पुत्र अशीश बुटेल को फिट करने के लिए खुद ही दावेदारी छोड़ दी। अपने बेटे को पालमपुर से टिकट दिलवा दिया। इसी तरह ज्वाली में विधायक सीपीएस नीरज भारती ने लोगों में बढ़ते आक्रोश को भांपते हुए अपनी दावेदारी छोड़ अपने पिता चंदर कुमार को टिकट दिलवा दिया। दो निर्दलीय विधायकों में एक मनोहर धीमान भाजपा में जा चुके हैं, तो दूसरे पवन काजल को कांगड़ा से विरोध के बावजूद कांग्रेस का टिकट मिला है।
वीरभद्र विरोधी कैंप को साधने की चुनौती
इसी तरह सांसद विप्लव ठाकुर को देहरा से उतारकर पार्टी ने नया प्रयोग किया है। लेकिन यहां विप्लव निर्दलीय होशियार सिंह और भाजपा के रविंदर रवि के बीच फंस कर रह गई हैं। यहां योगराज कांग्रेस के लिए कितने कारगर सिद्ध हो पाते हैं ये देखने वाली बात होगी। इसके अलावा शाहपुर से पर्यटन बोर्ड के उपाध्यक्ष मेजर विजय सिंह (रि.) मनकोटिया ने निर्दलीय पर्चा भरके पार्टी की मुसीबतें बढ़ाई हैं। यहां पार्टी के लिए अब सबसे बड़ी चुनौती वीरभद्र विरोधी कैंप को साधने की है। यहां कांग्रेस ने वीरभद्र सिंह के खास केवल पठानिया को मैदान में उतारा है। पठानिया मेजर से मुकाबले में पहले भी एक बार अपनी जमानत गंवा चुके हैं।
पढ़िए क्या है अंतर का हाल?
शाहपुर में मनकोटिया फैक्टर तो पालमपुर में बुटेल परिवार की खींचतान को नियंत्रित करना आसान नहीं रहेगा। पालमपुर में सीएम के आईटी सलाहकार गोकुल बुटेल की भी दावेदारी थी, लेकिन अशीष बुटेल बाजी मार गए। इंदौरा में सिटिंग विधायक निर्दलीय मनोहर धीमान का क्या रुख रहता है, इस पर बहुत कुछ निर्भर करता है। इंदौरा में कांग्रेस प्रत्याशी की जीत आसान नहीं है। सबसे खराब हालात ज्वालामुखी में हैं, जहां संजय रतन भाजपा के रमेश धवाला के साथ मुकाबले में पिछड़ते जा रहे हैं। यहां कांग्रेस के बागी विजेंद्र धीमान संजय रतन की राहों में कांटे बिछा चुके हैं। वहीं पूरा संगठन भी संजय रतन से मुंह फुलाए बैठा है। यहां भितरघात का खतरा बरकरार है।
कांगड़ा से ही जीती जाएगी राजधानी
चूंकि वीरभद्र सिंह विरोधी खेमे के संजय रतन को सबक सिखाने के मूड में हैं। अगर संजय यहां हारते हैं तो साथ लगती देहरा और जसवां परागपुर में भी कांग्रेस के समीकरण बिगड़ेंगे। कांगड़ा जिला में टिकट की आस लगाए बैठे सुक्खू खेमे के नेता क्या गुल खिलाते हैं, ये भी देखने वाली बात होगी। फिलहाल भीतरघात की आशंका पर विराम लगाने के लिए पार्टी ने अन्य राज्यों से कई दिग्गजों को जिम्मेदारी सौंप दी है।
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