इस भारतीय जवान की लाश को टुकड़ों में काट पाकिस्तान ने भेजा था घर
शहीद सौरभ कालिया के पिता को आज भी करगिल युद्ध के दौरान अपने बेटे से हुये अमानवीय व्यवहार पर इंसाफ का इंतजार है। सरकारें गईं और आईं लेकिन अठारह साल में उन्हें इंसाफ नहीं मिल पाया।
शिमला। कारगिल विजय के उल्लास के बीच हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिला के वीर सपूत सौरभ कालिया के साथ करगिल युद्ध में हुये बर्ताव को याद करते ही पाकिस्तानी सेना का वह क्रूर चेहरा सामने आ जाता है। जिसके लिये मानवता कोई मायने नहीं रखती। मानवता के नियमों को तार तार कर करगिल युद्ध के दौरान कैप्टन सौरभ कालिया के साथ पाकिस्तानी सेना ने इस कदर बुरा बर्ताव किया कि उन्हें न केवल बंदी बनाया बल्कि उन्हें क्रूरतापूर्ण अमानवीय यातनाएं देकर मौत के घाट उतारा और मरणोपरांत शरीर के अंग तक काट डाल गए थे। शहीद सौरभ कालिया के पिता को आज भी करगिल युद्ध के दौरान अपने बेटे से हुये अमानवीय व्यवहार पर इंसाफ का इंतजार है। सरकारें गईं और आईं लेकिन अठारह साल में उन्हें इंसाफ नहीं मिल पाया।
5 साथियों के साथ पाकिस्तान ने बनाया था बंदी
22 वर्षीय सौरभ कालिया भारतीय सेना की 4 जाट रेजीमेंट के अधिकारी थे। उन्होंने ही सबसे पहले कारगिल में पाकिस्तानी सेना के नापाक इरादों की सेना को जानकारी मुहैया कराई थी। कारगिल में अपनी तैनाती के बाद सौरभ कालिया 5 मई 1999 को वह अपने पांच साथियों अर्जुन राम, भंवर लाल, भीखाराम, मूलाराम, नरेश के साथ लद्दाख की बजरंग पोस्ट पर पेट्रोलिंग कर रहे थे, तभी पाकिस्तानी सेना ने सौरभ कालिया को उनके साथियों सहित बंदी बना लिया। करीब 22 दिनों तक इन्हें पाकिस्तानी सेना ने बंदी बनाकर रखा गया और अमानवीय यातनाएं दीं। उनके शरीर को गर्म लोहे की रॉड और सिगरेट से दागा गया। आंखें फोड़ दी गईं और निजी अंग काट दिए गए।
पाकिस्तान ने सौंपा क्षत-विक्षत शव
पाकिस्तान ने इन शहीदों के शव 22-23 दिन बाद 7 जून 1999 को भारत को सौंपे थे। लेकिन कैप्टन कालिया के साथ जो हुआ, उसे सुनकर रौंगटे खड़े हो जाते हैं। आंखों में आंसू आ जाते हैं। आज भी उनका परिवार गहरे सदमें में है। अपने 22 साल के बेटे कैप्टन सौरभ कालिया को देश के लिए कुर्बान करने वाले माता-पिता अपने बेटे से हुये इस अमानवीय व्यवहार पर आज भी इंसाफ हासिल करने की आस में अपनी बची हुई जि़न्दगी काट रहे हैं। सौरभ के परिवार ने भारत सरकार से इस मामले को पाकिस्तान सरकार के सामने और इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में उठाने की मांग की थी। दरअसल किसी युद्धबंदी की नृशंस हत्या करना जेनेवा संधि व भारत-पाक के बीच हुए द्विपक्षीय शिमला समझौते का भी उल्लंघन है।
सौरभ के पिता मांग रहे इंसाफ
विडंबना का विषय है कि कैप्टन सौरभ कालिया की शहादत शायद देश भुला चुका है। यही वजह है कि अपने बेटे के इंसाफ मांग रहे बुजुर्ग होते माता-पिता दर-दर भटक रहे हैं। ठोस प्रमाण के बावजूद सरकार आज तक शांत है और यह दु:ख की बात है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ने विपक्ष में रहते हुए इस मुद्दे को उठाया है, लेकिन सत्ता में रहने पर उनकी राजनीति व कार्यनीति में अंतर साफ नजऱ आता है। हैरानी की बात तो यह है कि सौरभ कालिया का नाम सीमा पर जान गंवाने वाले शहीदों की सूची में भी शामिल नहीं है।
भारतीय सेना के सम्मान का सवाल
पालमपुर में अपनी बची जिंदगी काट रहे शहीद सौरभ कालिया के पिता डॉक्टर एन.के. कालिया कहते हैं कि उनके बेटे के साथ किया गया व्यवहार साफ तौर पर जेनेवा समझौते का उल्लंघन है, परंतु भारत सरकार ने पाकिस्तान के समक्ष इस मामले को उठाने में संवेदनहीनता बरती। उन्होंने कहा, यह एक महत्वपूर्ण मसला है और यदि सरकार चाहे, तो वह इस मामले को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में ले जा सकती है और इसमें हमारे हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है। वह कहते हैं कि जब तक सांसें चलती रहेंगी, इस मुद्दे को उठाते रहेंगे। यह भारतीय सेना के मान सम्मान का सवाल है। आखिर जाधव के मामले में सरकार अंतरराष्टरीय न्ययायलय में जा सकती है तो सौरभ कालिया के मामले में क्यों नहीं।