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#Rafale : हरियाणा में इस एयरबेस पर तैनात होंगे नए जेट, रूस-ब्रिटेन के विमानों का रहा है गढ़

चीन-पाक के खतरों से निपटने के लिए हमारे पास आ रहा है अब ये जहाज, 150 किलोमीटर दूर तक उड़ा देगा दुश्मन का धुंआ

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अंबाला। भारतीय वायुसेना के लिए गेमचेंजर माना जा रहा फ्रांस निर्मित 'राफेल' मल्टीरोल फाइटर-जेट जुलाई महीने में हमें मिल रहे हैं। न्यूज एजेंसी एएनआई ने बताया कि, हथियारों से लैस पांच राफेल विमानों ने 27 जुलाई के दिन फ्रांस से उड़ान भरी है। ये 29 जुलाई को भारत पहुंचेंगे। यूएई में एक जगह फ्यूल लोड़ कराकर इन्हें सीधे हरियाणा लाया जाएगा। सबसे पहले ये फाइटर जेट अंबाला स्थित एयरबेस पर तैनात होंगे। इन फाइटर जेट्स में 150 किमी रेंज वाली मीटियर (Meteor) मिसाइल लगी होगी। साथ ही स्कैल्प मिसाइल (SCALP) भी अटैच होंगी। इन दिनों लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर चीन से जारी तनाव के बीच राफेल की एंट्री से भारतीय वायुसेना की ताकत में काफी इजाफा हो जाएगा। इसके लिए, अंबाला एयरबेस पर तैयारियां की जा रही हैं।

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राफेल के लिए अपग्रेड हुआ 78 साल पुराना यह एयरबेस

राफेल के लिए अपग्रेड हुआ 78 साल पुराना यह एयरबेस

फ्रांस निर्मित बहुउद्देश्यीय युद्धक विमान (राफेल फाइटर जेट्स) के लिए भारतीय ​वायुसेना ने अंबाला एयरबेस को ही प्राथमिकता दी। मई 2017 में फ्रंटलाइन एयरबेस के रूप में इसका चयन किया गया। बताया जाता है कि, इससे पहले यूपी के सरसावा एयरबेस को चुना गया था, लेकिन वहां जमीन उपलब्ध न होने के कारण वायुसेना को योजना बदलनी पड़ी। देखा गया कि, राफेल के मेंटेनेंस के लिए अंबाला में पर्याप्त जगह है। तब यह तय हुआ कि, 78 साल पुराने अंबाला एयरबेस का अपग्रेडेशन किया जाएगा, जिसके लिए सरकार ने 220 करोड़ रुपए मंजूर कर दिए। अब यह एयरबेस लगभग तैयार है।

इसलिए बहुउद्देश्यीय युद्धक विमान के लिए चुना गया अंबाला

इसलिए बहुउद्देश्यीय युद्धक विमान के लिए चुना गया अंबाला

एक रिपोर्ट के मुताबिक, राफेल के लिए अम्बाला का चुनाव इसलिए भी किया गया, क्योंकि यह ब्रिटिश काल का है और यह सुरक्षा के लिहाज से अच्छी लोकेशन पर भी है। क्योंकि, राफेल को यदि पठानकोट जैसे एयरबेस में रखा जाता तो वो पाकिस्तान के काफी नजदीक होता। अंबाला एयरबेस भारत-पाकिस्तान बॉर्डर से करीब 220 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, यह पोजिशन स्ट्रैटजिक लिहाज से अहम है। वहीं, यूपी के सरवारा में एयरबेस को बढ़ाने के लिए 540 एकड़ और जमीन की जरूरत थी, लेकिन वहां किसानों से जमीन उपलब्ध होने में अधिक समय लग सकता था। वायुसेना इस विवाद में नहीं पड़ना चाहती थी। लिहाजा अंबाला को ही फाइनल किया गया।

ब्रिटेन से खरीदे गए लड़ाकू विमानों का गढ़ रहा है अम्बाला

ब्रिटेन से खरीदे गए लड़ाकू विमानों का गढ़ रहा है अम्बाला

अम्बाला एयरबेस अब तक जगुआर विमानों का गढ़ माना जाता रहा है। जगुआर की यहां पर दो स्क्वाड्रन तैनात हैं। साथ ही एक मिग-21 की स्क्वाड्रन है जिसे एयरफोर्स चरणबद्ध तरीके से अपने बेड़े से हटा रही है। जगुआर विमान मिराज-2000 विमानों से पहले खरीदे गए थे। इन्हें ब्रिटेन से मंगवाया गया था। इस बारे में एक एक्सपर्ट्स कहते हैं कि, सन् 1971 की भारत-पाक जंग के बाद वायुसेना को ऐसे आधुनिक विमानों की जरूरत थी, जो दुश्मन के क्षेत्र में गहराई तक वार कर सकें। उस समय हमारी जरूरतों पर ब्रिटेन निर्मित जगुआर विमान खरा उतरा था। इसके पाक सीमा के पास होने के कारण पहले अम्बाला के पायलटों को जगुआर विमान उड़ाने के लिए ब्रिटेन में ही प्रशिक्षण दिया गया।

27 जुलाई को आंएगे राफेल, जगुआर भी इसी तारीख को आए

27 जुलाई को आंएगे राफेल, जगुआर भी इसी तारीख को आए

वर्ष 1979 में 27 जुलाई के दिन विंग कमांडर डीआर नंदकर्णी ब्रिटेन से अम्बाला एयरबेस तक जगुआर में उड़ान भरकर आए। फिर तो अगले छह महीने में अम्बाला में जगुआर विमानों की पहली नंबर-14 स्क्वाड्रन (बुल्स) खड़ी कर दी गई। उसके बाद एक अगस्त 1981 तक जगुआर विमानों की दूसरी नंबर-5 स्क्वाड्रन (टस्करस) भी तैयार हो गई। अब भी यही दोनों स्क्वाड्रन अम्बाला में तैनात हैं जोकि उन्नत जगुआर विमानों को संचालित करती हैं। हालांकि, आज की तारीख में जगुआर पुराने पड़ चुके हैं। जगुआर उड़ाने वाले पायलटों पर भी खतरा मंडरा चुका है।

अम्बाला के पायलट ही राफेल उड़ाने वाले पहले पायलट होंगे?

अम्बाला के पायलट ही राफेल उड़ाने वाले पहले पायलट होंगे?

बहरहाल, डिफेंस एक्सपर्ट् दावा कर रहे हैं कि अत्याधुनिक उपकरणों व हथियारों से लैस राफेल फाइटर के अम्बाला एयरबेस पर तैनात होने से हमारी वायुसेना की मारक क्षमता में जबरदस्त इजाफा होगा। कहा यह भी जा रहा है कि अम्बाला एयरबेस के पायलट ही राफेल को उड़ाने वाले सबसे पहले पायलट होंगे।

रूस निर्मित मिग-21 की जगह लेंगे

रूस निर्मित मिग-21 की जगह लेंगे

यहां वर्ष 2012 में भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर रहे जेरार्ड ग्लावे ने कहा था कि, राफेल विमानों की स्क्वाड्रन एयरफोर्स बेड़े से बाहर हो रहे मिग-21 की जगह लेगी। दरअसल, अम्बाला में मिग-21 विमानों की नंबर-3 स्क्वाड्रन (कोबरा) फरवरी 1997 से तैनात है। अब राफेल फाइटर की तैनाती का निर्णय वायुसेना के मुख्यालय की ओर से लिया गया है।

क्या हैं राफेल फाइटर जेट की खासियतें?

क्या हैं राफेल फाइटर जेट की खासियतें?

फ्रांस की डेसाल्ट कंपनी द्वारा बनाया गया राफेल फाइटर जेट 2 इंजन वाला लड़ाकू विमान है। भारत ने सिंगल सीट वाले जेट भी खरीदे हैं। यह जेट एक मिनट में 60,000 फीट की ऊंचाई तक पहुंच सकता है। इसकी रेंज 3700 किलोमीटर है। साथ ही यह 2200 से 2500 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ सकता है। खास बात यह भी है कि इसमें मॉडर्न ‘मिटिअर' मिसाइल और इजराइली सिस्टम भी है।

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सुखोई-30 के मुकाबले इसलिए बेहतर

सुखोई-30 के मुकाबले इसलिए बेहतर

राफेल रूस निर्मित सुखोई-30 एमकेआई फाइटर जेट की तुलना में ज्यादा एडवांस है। अभी तक सुखोई-30 को भारतीय वायुसेना की रीढ़ माना जाता है। मगर, जो राफेल आने वाला है, वो सुखोई के मुकाबले 1.5 गुना अधिक कार्यक्षमता से लैस है। राफेल की रेंज 780 से 1055 किमी प्रति घंटा है, जबकि सुखोई की 400 से 550 किमी प्रति घंटे। राफेल प्रति घंटे 5 सोर्टीज लगा सकता है, जबकि सुखोई की क्षमता 3 की है।

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English summary
Rafale fighter jets taking off from France today for delivery in India. They will arrive in Ambala on the 29th of July.
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