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मिसाल : दिव्यांग शिक्षक घोड़े पर सवार होकर जाते हैं स्कूल, 7 किमी के सफर में नदी-नाले भी करते हैं पार

By संजय पाण्डेय
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ग्वालियर/डिंडौरी। आज के युग में जहां मास्साब, सर का रूप धारण कर शिक्षा जगत में बिजनेसमैन होते जा रहे हैं। वहीं मप्र के डिंडाैरी में एक शिक्षक या यूं कहें कि मास्साब ने संघर्ष और कर्तव्यनिष्ठा की अनोखी मिसाल पेश की है। मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य डिंडौरी जिले के शिक्षक रतनलाल नंदा को सड़क न होने की वजह से घोड़ा खरीदना पड़ा और वो उसी घोड़े पर बैठकर हर रोज 14 किलोमीटर का लंबा सफर तय कर इलाके में शिक्षा की अलख जगाने का काम कर रहे हैं।

15 साल से घोड़े पर तय कर रहे सफर

15 साल से घोड़े पर तय कर रहे सफर

शिक्षक रतनलाल नंदा जन्म से ही दिव्यांग हैं और डिंडौरी जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर लुढरा गांव के निवासी हैं। गांव प्राथमिक शाला संझौला टोला से 7 किलोमीटर दूर स्थित एक स्कूल में बतौर शिक्षक पदस्थ हैं। लेकिन स्कूल तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं है। जंगली ऊबड़खाबड़ रास्तों एवं नदी नालों को पार करके ही स्कूल तक पहुंचा जा सकता है। परन्तु यह दुविधा भी शिक्षक रतनलाल नंदा के हौसले और हिम्मत को कम नहीं कर पाई। लिहाजा शिक्षक नंदा जी ने एक घोड़ा खरीद लिया और घर से स्कूल का सफर वो पिछले 15 सालों से घोड़े पर बैठकर ही तय कर रहे हैं।

कई मंचों पर हुआ सम्मान

कई मंचों पर हुआ सम्मान

हैरत की बात तो यह है कि शिक्षा की अलख जगाने वाले शिक्षक रतनलाल नंदा जैसे ही मीडिया की सुर्खियों में आए तो अधिकारी और नेता भी खुलकर सामने आ गए, लेकिन सड़क निर्माण कराने नहीं बल्कि शिक्षक को सम्मानित करने। प्राथमिक शाला संझौला टोला में पदस्थ दिव्यांग शिक्षक रतनलाल नंदा का एक पैर जन्म से ही कमजोर है। लेकिन अपने कर्तव्यों को पूरा करने के लिए उन्होंने कभी अपनी दिव्यांगता को आड़े नहीं आने दिया। तमाम चुनौतियों को मात देते हुए घोड़े के सहारे वे प्रतिदिन स्कूल पहुंचकर बच्चों को पढ़ाते हैं, ताकि नौनिहालों का भविष्य संवर सके।

दो घंटे पहले निकलते हैं घर से

दो घंटे पहले निकलते हैं घर से

घर से स्कूल तक 7 किलोमीटर का दुर्गम सफर तय करने के लिये उन्हें घर से दो घंटे पहले निकलना पड़ता है और स्कूल की छुट्टी के बाद वो देर शाम घर पहुंच पाते हैं। सफर के दौरान कई बार ऐसे स्थान भी मिलते हैं, जहां घोड़े की हिम्मत भी जवाब दे जाती है। तब शिक्षक घोड़े का सहारा बनकर उसे पार लगाते हैं। शिक्षक रतनलाल नंदा का कहना है कि उन्होंने और ग्रामीणों ने कई बार सड़क बनाए जाने की गुहार नेता और अधिकारियों से लगाई है लेकिन अब तक किसी ने उनकी सुध नहीं ली।

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English summary
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