गरीबों के लिए खर्च कर दी बेटे की पढ़ाई के लिए जुटाई रकम, रोज 3 हजार भूखों को भोजन बांटा
सूरत। गुजरात में सूरत के पटेल नगर की हेडगेवार बस्ती में एक कमरे के घर में रह रहे एक शख्स ने कोरोना वॉरियर के रूप में मिसाल पेश की। यहां धनेश्वर जेना नामक शख्स ने अपने बेटे को पढ़ाने के लिए जुटाई रकम को लॉकडाउन में भूखों के पेट भरने में खर्च कर दिया। उन्होंने रोज करीब 3500 लोगों के खाने का प्रबंध किया। लॉकडाउन फेज-4 में जब प्रवासियों की वापसी के लिए ट्रेनें चलने लगीं तो वे घर लौटते प्रवासी श्रमिकों को भी खाना-पानी बांटने लगे।
एक कमरे वाले घर में रहते हैं जेना
धनेश्वर जेना कहते हैं- ''हम मूलत: ओडिशा के रहने वाले हैं। गुजरात आए तो उधना में आकर बस गए। जहां हमारी मनी ट्रांसफर की एक छोटी सी दुकान है। उस दुकान के पीछे ही पटेल नगर में हेडगेवार बस्ती में ही एक कमरे वाला घर है। जिसममें मैं, मेरी पत्नी और 4 साल का बेटा रहते हैं। अब तो जो पैसा कमाया, मैं चाहता था कि उससे बेटे की अच्छी परवरिश करते हुए अच्छे स्कूल में पढ़ाउूं। क्येांकि, अभी तक बेटा आदित्य छोटे से स्कूल में पढ़ रहा था। मैंने उसे उच्च शिक्षा देने के लिए रकम जुटाई थी। इस साल उसका सूरत के टॉप स्कूल में एडमिशन करवाता, मगर कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन लागू हो गया।'
15-20 लोगों को खाना बांटते थे, फिर संख्या बढ़ी
''लॉकडाउन में बहुत लोगों की मुश्किलें बढ़ गईं। गरीबों को खाना नहीं मिल रहा था तो बाहर के रहने वाले कई बेघर हो गए। ऐसे में मुझे गरीबों को खाना खिलाने का आईडिया आया। मैंने अपनी पत्नी चिन्मयी के साथ अपने ही घर पर खाना बनाकर भूखे-गरीब लोगों को बांटना शुरू किया। शुरू में हम रोज 15 से 20 लोगों को खाना बांटते थे, लेकिन जैसे-जैसे लोगों को पता चला, यह संख्या बढ़ती चली गई। हमारा एक कमरे का घर छोटा पड़ा, तो किराए का हॉल लेकर खाना बनवाने लगे। हमने उस हॉल को प्रतिदिन 60 रुपये किराए पर लिया।''
श्रमिकों को पानी और लंच पैकेट पहुंचाने लगे
''हमें खाना बांटते देख कुछ दोस्तों और आरएसएस कार्यकर्ताओं ने मदद पहुंचानी शुरू कर दी। जिसके चलते किचन में लगभग 3500 लोगों का रोज खाना पकने लगा। चौथे लॉकडाउन तक रोज लोगों को खाना खिलाया। उसके उपरांत गुजरात में ट्रेनें चलने लगीं तो बड़ी संख्या में लोग अपने गृहराज्यों को लौटने लगे। हमने जब प्रवासी श्रमिकों को देखा तो उनके लिए खाने की व्यवस्था करने की सोचने लगे। तब सूरत से निकलने वाली ट्रेनों में श्रमिकों को पानी और लंच पैकेट पहुंचाने लगे। हम अब गरीब बच्चों को पीने के लिए दूध भी देते हैं।''
ओडिशा सरकार ने की तारीफ
'हमारी इस पहल के बारे में पता चलने पर ओडिशा के मंत्रालय से फोन आया और तारीफ की गई।हमने मंत्रालय से कहा कि गरीब श्रमिकों को फ्री में ले जाने की व्यवस्था करें। जिसके बाद ओडिशा सरकार ने प्रवासी श्रमिकों को फ्री में राज्य तक ले जाने की व्यवस्था की। यहां वहां के मजदूरों को फ्री में टिकट बांटने का काम भी हमें ही दे दिया गया।'
बेटे के बारे में सोचते हैं, लेकिन खुशी होती है
जेना अब यह भी सोचते हैं कि, बच्चे का बड़े स्कूल में एडमिशन नहीं हो पाएगा, लेकिन कोई न कोई रास्ता जरूर निकल आएगा। फिलहाल उन्हें खुशी इस बात की है कि उन्होंने बच्चे के सामने गरीबों को खाना खिलाकर उसे अच्छी शिक्षा देने का प्रयास किया है।
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