गुजरात: डिप्टी सीएम बोले- पहले यहां 55% बच्चों की मौत होती थी, अब मृत्युदर 25% ही रह गई है
अहमदाबाद. गुजरात के सरकारी अस्पतालों में एक माह में सैकड़ों नवजात बच्चों की मौत हुई। अकेले राजकोट के सिविल हॉस्पिटल में 134 बच्चे मरे। बच्चों की हालिया मौत से जुड़े सवालों पर मुख्यमंत्री विजय रूपाणी कोई जवाब नहीं दे सके। वहीं, उप मुख्यमंत्री एवं स्वास्थ्य मंत्री ने भी बात काटते हुए दूसरे तर्क पेश कर डाले। उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल ने कहा, एक वक्त ऐसा भी था जब राज्य में 55 फीसदी बच्चों की मौत हो जाती थी। किंतु अब मृत्युदर 25 फीसदी के आसपास रह गई है।
'गुजरात
में
हर
साल
12
लाख
बच्चों
का
जन्म
लेते
हैं'
नितिन
पटेल
ने
यह
भी
कहा
कि
हमारे
राज्य
के
अस्पतालों
में
बड़ी
संख्या
में
बच्चों
की
मौत
हुई,
ये
सही
नहीं
है।
गुजरात
में
हर
साल
12
लाख
बच्चों
का
जन्म
होता
है,
लेकिन
मृत्युदर
30
प्रतिशत
से
भी
है।
यानी,
अब
कम
बच्चों
की
मौत
होती
है।
बकौल
नितिन
पटेल,
''भारत
सरकार
के
आंकड़ों
के
मुताबिक
वर्ष
1997
में
गुजरात
में
बच्चों
की
मृत्युदर
62%
थी।
वहीं,
2003
में
57%,
2007
में
52%,
2013
में
36%
और
2017
में
30%
बच्चों
की
मौत
हुई।
अब
बीते
वर्ष
2019
में
ये
आंकड़ा
25
प्रतिशत
के
भी
नीचे
रहा
(1
हजार
बच्चों
के
जन्म
पर)।
'राजस्थान
से
ध्यान
भटकाने
की
कोशिश
हो
रहीं'
नितिन
पटेल
यहीं
नहीं
रुके,
उन्होंने
कहा
कि
गुजरात
के
अस्पतालों
में
राजस्थान
की
तरह
बच्चे
नहीं
मरते।
बल्कि
अब
कोटा
में
जो
हुआ,
उस
घटना
से
ध्यान
भटकाने
के
लिए
राजकोट
को
बढ़ा-चढ़ाकर
बताया
जा
रहा
है।
मालूम
हो
कि
राजस्थान
में
कोटा
में
107
से
ज्यादा,
उदयपुर
में
145
से
ज्यादा
बच्चों
की
मौत
एक
महीने
के
अंदर
हुई
हैं।
नवजात
बच्चों
की
अधिक
मौतों
के
पीछे
की
वजह
अस्पतालों
में
सुविधा
कम
होना
रहा
है।
कई
अस्पतालों
में
शिशु
की
देखरेख
के
लिए
नर्स
भी
नहीं
हैं।