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तरकुलहा माता मंदिर : सात बार टूट गयी थी फांसी,तरकुल के पेंड से जब बहने लगी रक्त की धार

शारदीय नवरात्र के अवसर पर मां दु्र्गा के मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिल रही है।गोरखपुर में एक ऐसा ही मंदिर है जो भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है।हम बात कर रहे हैं गोरखपुर-देवरिया मार्ग पर मुख्यालय से 25

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गोरखपुर,28सितंबर: शारदीय नवरात्र के अवसर पर मां दु्र्गा के मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिल रही है।गोरखपुर में एक ऐसा ही मंदिर है जो भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है।हम बात कर रहे हैं गोरखपुर-देवरिया मार्ग पर मुख्यालय से 25किलोमीटर दूर स्थित तरकुलहा माता मंदिर की।इसका अपना इतिहास व महत्व है।स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले शहीद बंधु सिंह ने पिंडी स्‍थापित कर यहां पर आच्छादित जंगल और तरकुल के पेड़ के बीच मां तरकुलहा देवी की पूजा शुरू की थी।

जंगल में स्थापित थी पिंडी

जंगल में स्थापित थी पिंडी

जानकारी के मुताबिक,स्वतंत्रता आंदोलन में क्रांतिकारी शहीद बाबू बंधु सिंह बहुत सक्रिय थे और अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था।वह अंग्रेजों से बचने के लिए जंगल में रहने लगे। जंगल में तरकुल के पेड़ों के बीच में पिंडी स्थापित की। उन्होंने यहां पर गुरिल्ला युद्ध कर कई अंग्रेज अफसरों की बलि दी।

जब तरकुल के पेड़ से निकलने लगी थी रक्त की धारा

जब तरकुल के पेड़ से निकलने लगी थी रक्त की धारा

मंदिर प्रबंधन से जुड़े अशोक बताते हैं कि जब अंग्रेजो ने बाबू बन्धु सिंह को पकड़ा, तो फांसी की सजा सुनाई और सात बार फांसी टूट गई। आठवीं बार जब फांसी लगी, तो बाबू बन्धु सिंह ने मां का आह्वान किया कि हे मां! अब उन्हें अपने चरणों में जगह दें। उधर फांसी हुई, इधर तरकुल का पेड़ टूटा और रक्त की धार बहने लगी। तबसे इस मंदिर पर लोगों की आस्था जुड़ गई और श्रद्धालुओं की भीड़ माता रानी के दरबार में जुटने लगी।

मुरादें पूरी करती हैं मां

मुरादें पूरी करती हैं मां

मां तरकुलहा देवी के मंदिर पर मुराद मांगने दूर-दराज से लोग आते हैं। भक्‍त और श्रद्धालुजन मनोकामना पूरी होने की मन्नत मांगते हैं। मां सबकी मनोकामना पूरी करती हैं।शारदीय नवरात्र पर भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिल रही है।श्रद्धालु शिवांश कहते हैं कि वे कई बरसों से तरकुलहा माता मंदिर में दर्शन करने के लिए आ रहे हैं। लोगों की काफी आस्‍था है। यहां पर जो भी मुराद श्रद्धालु माता से मांगते हैं, वो उसे पूरा करती हैं।वह बताते हैं कि ये ऐतिहासिक मंदिर है। 1857 की क्रांति के बाद शहींद बाबू बंधु सिंह यहां पर पूजा-अर्चना करते रहे हैं।

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English summary
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