तेजाब की 'छपाक' में खो गईं गोरखपुर की तीन बेटियां, इस मां को आज भी सोने नहीं देतीं बच्चियों की चीखें
गोरखपुर। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शहर गोरखपुर के इस घर की फिजां में आज भी तेजाब की गंध महसूस की जा सकती है। ये वही घर है जहां 12 साल पहले नफरत के तेजाब ने तीन बेटियों को ऐसी जगह पहुंचा दिया, जहां से वापस आ पाना भी नामुमकिन है। उस घटना ने तीन बेटियों के सपनों को मौत के आगोश में पहुंचा दिया। वहीं, इस परिवार के सपनों को भी अंधेरी काली रात के खौफ की तरह स्याह कर दिया। एक सिरफिरे ने रात में सोते समय तेजाब फेंक दिया। तीनों की अस्पताल में डेढ़ माह के अंतराल पर मौत हो गई। माता-पिता की पथराई आंखें और चेहरे का खौफ आज भी उस पल को बयां करता है।
'छपाक' से उभरा दर्द
तेजाब का शिकार होने के बाद भी जिंदगी को पूरी ताकत और हिम्मत के साथ जी रही मालती बनी दीपिका पादुकोण की फिल्म ‘छपाक' शुक्रवार को रिलीज हो गई। इस फिल्म की वजह से देश भर में एसिड अटैक की घटनाएं और उनकी शिकार लड़कियों की कहानियां चर्चा के केंद्र में हैं, लेकिन 2007 में ऐसी ही त्रासदी का शिकार गोरखपुर शहर का यह परिवार मुसीबतों के अंधेरे में डूबा हुआ है। मधुसूदन गुप्ता के परिवार का दर्द आज फिर उभर आया है। नफरत के तेजाब में अपनी तीन बेटियों को खो चुके मधुसूदन गुप्ता और उनकी पत्नी मीरा 12 साल बाद भी उस दर्द को नहीं भूल पाएं हैं। कमरे में रखीं तस्वीरों से चमकती मरहूम बिंदू, छोटी और बबली की आंखें आज भी मानों पूछती हों, 'हमारा कसूर क्या था?'
'सोने नहीं देतीं बच्चियों की चीखें'
लकवा मारने के चलते पांच साल से मजबूर बिंदू, छोटी और बबली के पिता मधुसूदन गुप्ता और उनकी पत्नी मीरा हर पल उनकी तस्वीरों में उन्हें ही निहारा करते हैं। वे कहते हैं कि तेजाब की जलन से उठने वाली बच्चियों की चीखें उन्हें सोने नहीं देतीं हैं। आखिरी सांस लेने तक अस्पताल में पल-पल तड़पती रहीं, जिंदगी के लिए संघर्ष करतीं बेटियों को बचा न पाने की बेबसी आंसुओं की शक्ल में बूढ़ी आंखों से निकलकर गालों की झुर्रियों पर ढलक जाती है। जुबां खामोश रहती है, लेकिन चेहरे की मायूसी, हालात से पस्त होती हिम्मत की कहानी खुद ब खुद बयां कर देती है। वारदात के वक्त 15, 14 और सात साल की रहीं, इन तीनों बहनों को साल 2007 जुलाई माह की उस रात घर के पीछे खिड़की के रास्ते से घुसे एक सिरफिरे ने तेजाब से जला डाला था। बच्चियों की मां मीरा को वो मनहूस काली रात आज भी बखूबी याद है।
आरोपी को उम्रकैद, लेकिन सजा भुगत रहा बच्चियों का परिवार
वह बताती हैं कि वो सिरफिरा किराएदार के घर आता-जाता था। उसके हाव-भाव देखकर वह उससे सतर्क रहती थीं। एक-दो बार उसने पानी मांगने के बहाने बात करने की कोशिश की तो मना कर दिया गया। बस इतनी सी बात से चिढ़े सिरफिरे ने घर में सोती बच्चियों पर तेजाब फेंक दिया। घरवालों ने तड़पती बच्चियों को आनन-फानन में जिला अस्पताल पहुंचाया। इस घटना ने शहर को आक्रोश से भर दिया था। तत्कालीन सांसद और वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पीड़ित परिवार की मदद की। आरोपी गिरफ्तार हुआ और बाद में उसे उम्रकैद हो गई, लेकिन असली सजा तो मीरा के परिवार को मिली। बिंदू, छोटी और बबली ने इलाज के दौरान डेढ़ महीने में एक-एक कर दम तोड़ दिया।
सरकारी मदद नाकाफी
परिवार को आर्थिक मदद मिली। ये रुपए परिवार को सम्भालने के लिए नाकाफी थे। पति की तबीयत खराब रहने लगी। दिव्यांग बेटा शादी-ब्याह में डीजे बजाने जैसे कामों से जिंदगी चलाने की कोशिश करता रहा, लेकिन मुफलिसी में बाकी बेटियों की पढ़ाई छूट गई। नौ में से तीन बेटियां तेजाब की भेंट चढ़ गईं। चार शादी के बाद अपने-अपने घर गईं, लेकिन उनमें से एक की कुछ समय पहले बीमारी से मौत हो गई। अब घासीकटरा के मकान में मीरा और उनके पति के अलावा, दो अविवाहित बेटियां, दिव्यांग बेटा और दिवंगत बेटी की चार बच्चियां रहती हैं। बेटियों को बचा और पढ़ा न पाने के गम से पीड़ित मीरा कहती हैं, 'चाहती हूं चारों नातिनों की पढ़ाई न छूटे। फिलहाल वे बगल के एक स्कूल में जाती हैं, लेकिन यह सोचकर चिंता होती है कि इन हालात में परिवार और इनकी पढ़ाई कब तक चल पाएगी'