यूपी के बेसिक शिक्षा मंत्री बोले- BSA ने मुझसे भी मांगी थी घूस
गोरखपुर। बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी ने अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि का उल्लेख और 20 साल पुराना अनुभव साझा करता हुए बताया कि एक समय उनसे भी एक बीएसए ने घूस मांगी थी। यह वाक्या तब का है जब सतीश द्विवेदी विद्यार्थी थे और उन्होंने बीटीसी प्रवेश परीक्षा पास कर ली थी। उन दिनों बीटीसी में प्रवेश को नौकरी की गारंटी माना जाता था। उन्होंने परीक्षा पास करने के बाद इंटरव्यू में तत्कालीन बीएसए रमेश कुमार द्वारा 20 हजार रुपए मांगे जाने की कहानी सुनाई।
'जितने
हजार
रुपए
दोगे,
उतने
ही
नंबर
मिलेंगे'
गोरखपुर के वैष्णवी लॉन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद अभिनंदन समारोह में उन्होंने कहा कि बीएसए ने कह रखा था कि जितने हजार रुपए दोगे उतने ही नंबर मिलेंगे। अपने ज्वेलर मामा की दुकान पर काम करने वाले मित्र ने दुकान से अपनी गारंटी पर रुपए उधार लेकर व्यवस्था की। आर्थिक तंगी के चलते नौकरी के लिए परिवार का दबाव इतना था कि वह इस भ्रष्टाचार के खिलाफ कुछ कर न सके।
'नहीं मिल पाई नौकरी'
परिवार में घोर गरीबी थी। पिताजी ने किसी शिक्षक के माध्यम से रुपए भिजवाए, इसका पता मुझे बाद में चला, लेकिन परिवार का दबाव इतना था कि कुछ कर ना सका। उस शिक्षक ने भी पिताजी को धोखा दिया और रुपए का इस्तेमाल अपने एक साथी शिक्षक का निलंबन वापस कराने के लिए कर लिया। उन्हें नौकरी नहीं मिल पाई। इस घटना के बाद उन्होंने अपने परिवार से कहा कि अब वह किसी दबाव में नहीं आएंगे।
नौकरी नहीं मिली तो पिता ने शादी का दबाव बनाया
डॉ. सतीश द्विवेदी ने कहा कि पिताजी विवाह कराना चाहते थे। उन्होंने कह दिया कि जब तक अपने पैर पर खड़े नहीं होंगे, विवाह नहीं करेंगे। किसी की नहीं सुनेंगे। इसके बाद नेट, पीएचडी की। जनरल टिकट लेकर ट्रेन से इलाहाबाद गए। एबीवीपी कार्यकर्ता होने की वजह से रहने और भोजन की व्यवस्था तब संगठन मंत्री रहे हरीश जी ने निशुल्क कर दी। 400 रुपए का फार्म भरा और असिस्टेंट प्रोफेसर बन गए। इसके बाद की कहानी सब लोग जानते हैं।
'सेवा में होते तो बीएसए को करता बर्खास्त'
बेसिक शिक्षा मंत्री ने कहा कि तत्कालीन बीएसए रमेश कुमार अब सेवानिवृत हो चुके होंगे। यदि सेवा में होते तो वह उनके द्वारा बर्खास्त किए जाने वाले पहले बीएसए होते। उन्होंने कहा कि उनके पिताजी से आसपास के किसी स्कूल-कालेज के प्रधानाचार्य उनकी (सतीश द्विवेदी) की पढ़ाई-लिखाई की तारीफ करते हुए चपरासी बनाने का ऑफर भी दे देते थे तो पिताजी उत्साहित होकर उन्हें फोन कर बुलाने लगते थे।
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