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योग के जनक कहे जाने वाले महर्षि पतंजलि की जन्मभूमि आज भी पहचान को मोहताज

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गोंडा। विश्व योग गुरू होने का दम भरने वाला भारत देश और देश की सरकार आज योग के गुरु यानी योग के प्रणेता महर्षि पतंजलि को ही भुलाकर बैठी है। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के जरिए मोदी और योगी सरकार ने विश्व को योग के मायने बताने की पहल तो कर दी, लेकिन योग के जनक को ही भुला बैठे। जी हां, अयोध्या से सटे गोंडा जिले के वजीरगंज क्षेत्र के कोडर गांव में जन्म विभूति महर्षि पतंजलि की जन्मभूमि आज भी पहचान की मोहताज है पेश है।

maharshi patanjali birthplace still neglected

पहचान को मोहताज गांव

जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर कोडर गांव आज विश्व के मानचित्र पर होना चाहिए, लेकिन आज भी यह असल पहचान का मोहताज है। दरअसल, भगवान श्रीराम की गायों के चरने के कारण अस्तित्व में आया और इसी जनपद के वजीरगंज क्षेत्र का कोंडर गांव लगभग 5000 साल पहले महर्षि पतंजलि की लीलाओं का केंद्र रहा। भगवान शेषावतार कहे जाने वाले महर्षि पतंजिल अयोध्या से सटे इसी गांव में मां गोंडिका के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। यहीं पर रहकर उन्होंने लोगों को योग की शिक्षा दी और कालांतर में अंतर्ध्यान हो गए।

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स्वामी भगवदाचार्य कर रहे कोशिशें

कोंडर गांव और यहां विशाल कोंडर झील आज भी उस विशालता को प्रदर्शित करने के लिए काफी है। पतंजलि की जन्मभूमि आज भी पहचान की मोहताज है और इसको पहचान दिलाने के लिए स्वामी भगवदाचार्य तमाम प्रयास कर रहे है और संयुक्त राष्ट्र संघ से लेकर, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और तमाम जिम्मेदार लोगों को पत्र लिख रहे है, लेकिन उनका यह प्रयास अभी भी सिर्फ पत्रों और फाइलों में दबा हुआ है।

क्या कहते हैं स्थानीय लोग

स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रधानमंत्री जी के अथक प्रयास से विश्व में महर्षि पतंजलि का नाम तो हुआ, लेकिन जो जन्मस्थली है आज भी उपेक्षित है। भारत सरकार को इसको पर्यटक स्थल में बदलना चाहिए और यहां पर कुछ अलग होना चाहिए। वहीं, जिला प्रशासन पर भी सवालिया निशान खड़े होते हैं। महर्षि पतंजलि जो योग के जनक थे 21 जून को जहां पूरे विश्व में योग दिवस मनाया जाता है। जिला प्रशासन को कम से कम महर्षि पतंजलि के जन्मस्थली पर योग दिवस के दिन योग कराना चाहिए, लेकिन जिला प्रशासन अपनी सुविधाओं को देखते हुए जिले के मुख्यालय पर ही यह कार्यक्रम करते हैं।

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