अपना पहला चुनाव हारने वाले प्रमोद सावंत दूसरी बार बने सीएम, जानें क्यों कहे जाते हैं 'डॉक्टर साहब'
पणजी। सोमवार को यानी कि आज भाजपा नेता प्रमोद सावंत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में दूसरी बार सीएम पद की शपथ ली। प्रमोद सावंत राज्य के 14वें सीएम बन गए। बेहद सरल स्वभाव के माने जाने वाले प्रमोद सावंत की नेतृत्व में गोवा में हुए विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की और सरकार बनाने में सफल हुई। हालांकि सीएम पद को लेकर काफी चर्चा चली थी लेकिन बाद में पार्टी ने प्रमोद सावंत के नाम पर मुहर लगा दी। बता दें कि प्रमोद सावंत आयुर्वेदिक डॉक्टर हैं।

1973 में प्रमोद सावंत को हुआ जन्म
वर्ष 1973 में 24 अप्रैल को डॉ. प्रमोद सावंत का जन्म हुआ। उनका पूरा नाम डॉ. प्रमोद पांडुरंग सावंत है। उनकी माता का नाम पद्मिनी सावंत और पिता का नाम पांडुरंग सावंत है। महाराष्ट्र के कोल्हापुर की गंगा एजुकेशन सोसायटी से प्रमोद सावंत ने आयुर्वेदिक चिकित्सा में ग्रेजुएशन किया। इसके बाद पुणे की तिलक महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी से सोशल वर्क में मास्टर किया। प्रमोद सावंत किसान और आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के प्रैक्टिशनर हैं।

साल 2007 में हार गए थे पहला चुनाव
प्रमोद सावंत ने अपनी राजनीतिक यात्रा आरएसएस के सदस्य के तौर पर की। बता दें कि सीएम रहते हुए भी प्रमोद साव संघ के वार्षिक संचालन कार्यक्रम में हिस्सा लेते रहे हैं। साल 2007 में भाजपा ने प्रमोद सावंत को सांखली सीट से मैदान में उतारा हालांकि कांग्रेस प्रत्याशी प्रताप गौंस ने उन्हें हरा दिया।

2012 से लगातार जीत रहे हैं चुनाव
फिर साल 2012 में सकेलिम विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। साल 2017 में भी वो इसी सीट से चुनाव लड़े और जीत हासिल की। बता दें कि जब साल 2017 में दिवंगत नेता मनोहर पर्रिकर मुख्यमंत्री थे तब प्रमोद सावंत विधानसभा अध्यक्ष थे। प्रमोद सावंत मनोहर पर्रिकर के काफी करीबी थे। साल 2017 में ही जब मनोहर पर्रिकर का निधन हुआ तो उन्हें ही राज्य की जिम्मेदारी सौंप दी गई।

प्रमोद सावंत की पत्नी भी राजनीति में सक्रिय हैं
बता दें कि प्रमोद सावंत की पत्नी सुलक्षा केमिस्ट्री की टीचर के साथ-साथ सक्रिय भाजपा नेत्री भी हैं। वह भाजपा महिला मोर्चा की गोवा इकाई की अध्यक्ष हैं। प्रमोद सावंत बेहद सरल स्वभाव के माने जाते हैं। उनकी गिनती मृदुभाषी और सौम्य राजनेता के तौर पर होती है। वे कभी भी आलोचनाओं से विचलित नहीं होते। उनकी सरलता ही उनकी बड़ी मजबूती यानी ताकत है। यही कारण है कि जब उनके नाम पर मुहर लगी तो कोई भी इस पर ऐतराज नहीं जता सका।
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