गोवा चुनाव में भी जातिगत राजनीति की एंट्री? जानिए भंडारी समाज का महत्त्व
पणजी, 24 जनवरी: गोवा में आमतौर पर धार्मिक और जातिगत आधारों पर चुनाव नहीं होते हैं। जानकार बताते हैं कि 1972 में पहली बार जाति कार्ड खेलने की कोशिश हुई थी,लेकिन उससे फायदा नहीं हुआ था। लेकिन, इस बार आम आदमी पार्टी ने जिस उम्मीदवार को पार्टी का सीएम फेस बनाया है, उनकी जाति की जनसंख्या सबसे ज्यादा बताई जाती है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने अमित पालेकर को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनाया है, जो भंडारी जाति से हैं। आइए जानते हैं कि इस समाज का गोवा की राजनीति में कितना प्रभाव है और क्या एक प्रभावशाली जाति से सीएम उम्मीदवार बनाना आम आदमी पार्टी के लिए मास्टर स्ट्रोक साबित हो सकता है?
गोवा चुनाव में भी जातिगत राजनीति की एंट्री?
2017 के गोवा विधानसभा चुनाव में 40 में से 39 सीटों पर प्रत्याशी उतारने वाली आम आदमी पार्टी को 6.27% वोट मिले थे और 38 पर उसके उम्मीदवारों की जमानतें जब्त हो गई थीं। इस बार फिर से अरब सागर के तट पर बसे गोवा में दिल्ली की सत्ताधारी पार्टी अपने भविष्य को चमकाने की कोशिशों में जुटी हुई है। पार्टी ने राजनीति के लिए नए 45 वर्षीय अमित पालेकर को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किया है। पालेकर पेशे से वकील हैं, लेकिन उनकी चुनावी सीवी इसलिए अहम है, क्योंकि वे भंडारी जाति से ताल्लुक रखते हैं। गोवा में बहुसंख्यक हिंदू आबादी में इस ओबीसी जाति की जनसंख्या सबसे ज्यादा बताई जाती है। वैसे आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने पिछले 19 जनवरी को जब पालेकर के नाम की घोषणा की थी तो यह दावा जरूर किया था कि उनका चुनाव उनकी जाति की वजह से नहीं, बल्कि उनके समाज के साथ हुए कथित 'अन्याय' को सुधारने के लिए किया गया है।
भंडारी कौन हैं ?
गोवा में भंडारी समाज के लोगों का परंपरागत पेशा ताड़ी निकालने और शराब निकालने जैसे कार्यों से जुड़ा रहा है। साथ ही साथ यह खेतों में हल जोतने के अलावा बागों में भी काम करते रहे हैं। प्रदेश में यह अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में आते हैं। इस समाज के लोग पूरे गोवा में फैले हैं और कम कम 30 सीटों पर इनकी उपस्थिति महत्वपूर्ण मानी जाती रही है। गोवा के अलावा इस समाज के लोग की जनसंख्या महाराष्ट्र के कोंकण के इलाकों, खासकर रत्नागिरि और सिंधुदुर्ग में भी मौजूद है।
गोवा में भंडारी जाति की जनसंख्या ?
गोवा विधानसभा में एक लिखित सवाल के जवाब में राज्य के सामाजिक कल्याण मंत्री मिलिंद नाइक ने अक्टूबर, 2021 में कहा था कि 2014 में गोवा प्रदेश पिछड़ा वर्ग आयोग ने ओबीसी का एक सर्वे किया था। 'इस सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक ओबीसी की जनसंख्या 3,58,517 थी, जो कि कुल आबादी का 27% है। इस सर्वे के मुताबिक भंडारी समुदाय की कुल संख्या 2,19,052 है, जो कि ओबासी आबादी का 61.10% होता है।' वैसे कुछ दावे में तो अकेले भंडारी जाति की जनसंख्या ही कुल आबादी की करीब 30% बताई जाती है। गोमांतक भंडारी समाज के अध्यक्ष अशोक नाइक के हवाले से इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में भंडारियों की आबादी न सिर्फ ओबीसी में सबसे ज्यादा है, बल्कि वह हिंदुओं में भी बहुसंख्यक हैं।
गोवा में धर्म के आधार पर जनसंख्या का गणित
2011 की जनगणना के अनुसार गोवा की कुल आबादी तब 14.59 लाख थी। इसमें 66.08% हिंदू थे। इनके बाद दूसरे नंबर पर क्रिश्चियनों की जनसंख्या थी जो कि 25.10% है और फिर मुसलमानों की आबादी है, जो कि 3.66% है। बाकी दूसरे धर्म के लोग भी गोवा में रहते हैं।
गोवा में पहले भंडारी मुख्यमंत्री रवि नाइक बने थे
गोवा में राजनीतिक संभावनाएं तलाश रहे दिल्ली के सीएम केजरीवाल ने भंडारी समाज के नेता को अपनी पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर क्यों पेश किया है, अबतक यह बात खुद ही आपकी समझ में आ गई होगी। जाहिर है कि इतनी आबादी की वजह से इस समाज को विधानसभा में अलग-अलग पार्टियों से प्रतिनिधित्व भी मिलता रहा है। लेकिन, भंडारी जाति का गोवा में अबतक सिर्फ एक मुख्यमंत्री ही बना है। रवि नाइक इस समाज के पहले नेता हैं, जो मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे हैं। वह पहले कांग्रेस में थे, लेकिन अभी भारतीय जनता पार्टी में हैं।
क्या आम आदमी पार्टी का चुनावी दांव काम करेगा ?
गोमांतक भंडारी समाज के अध्यक्ष अशोक नाइक तो आम आदमी पार्टी की ओर से उनके समाज से सीएम चेहरा पेश किए जाने से गदगद हैं और कहा है कि पहली बार किसी ने इस समाज की ओर ध्यान दिया है। लेकिन, पहली बात तो ये है कि जिस सेंट क्रूज सीट से 'आप' ने अमित पालेकर को टिकट दिया है, वहीं पर भंडारियों की आबादी बहुत ज्यादा नहीं है। दूसरा राजनीतिक जानकारों का कहना है कि भले ही गोमांतक भंडारी समाज पालेकर के पक्ष में लॉबिंग करे, पूरा समाज उसकी बातों पर अमल करेगा, इसकी कम ही संभावना है। इनके मुताबिक पिछले दो दशकों से गोवा का भंडारी समाज भाजपा का समर्थक रहा है।
क्या गोवा के वोटर जाति और धर्म से प्रभावित होते हैं ?
जानकार मानते हैं कि परंपरागत तौर पर पर गोवा के वोटर जाति और धर्म के आधार पर वोट मांगने वालों को मायूस करते रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक संदेश प्रभुदेसाई का कहना है कि 1972 में पहली बार वहां जाति के नाम पर वोट मांगने की कोशिश हुई थी, लेकिन दांव उलटा पड़ गया था। उनकी हाल ही में 'अजीब गोवा की गजब पॉलिटिक्स' नाम से एक किताब भी रिलीज हुई है। जानकारी मानते हैं कि गोवा में उम्मीदवार आमतौर पर जनसांख्यिकीय आधार पर वोट मांगते हैं। हो सकता है कि एक क्रिश्चियन उम्मीदवार ईसाई बहुल सीट से जीत जाए और भंडारी जाति का उम्मीदवार उनकी ज्यादा जनसंख्या वाली सीट से जीते, लेकिन वे उस नाम पर वोट नहीं मांगेगे। (समुद्र तटों की तस्वीरें- फाइल)